पिछले 10 सालों में नीतीश कुमार की लोकप्रियता काफी हद तक कम हुई है! बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का साथ छोड़ने के बाद से 2024 को लेकर राजनीतिक चर्चा उफान पर है। कई विपक्षी नेता और विश्लेषक नीतीश को अगले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष विपक्ष के चेहरे के तौर पर देखने लगे हैं।इसको लेकर बहुत ज्यादा बयानबाजी हो रही है। ऐसा लग रहा है कि मानो अब भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष मुश्किल की घड़ी आ गई है, जबकि फिलहाल ऐसा कुछ नहीं है। इतना जरूर है कि यह विपक्ष के लिए संभावनाएं पैदा कर रहा है और यह विपक्षी दलों को संदेश दे रहा है कि अगर 2024 में भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को रोकना है तो उन्हें साथ आना पड़ेगा।
अगर 2013-14 का दौर होता तो विपक्षी दल नीतीश को अपना नेता आसानी से मान लेते क्योंकि उस दौरान नीतीश को लेकर लोगों में आकर्षण था, लोगों को उनकी खूबियां दिख रही थीं। उस वक्त ममता बनर्जी का इतना बड़ा कद नहीं था। मेरे कहने का मतलब यह है कि नीतीश की तुलना में कई प्रमुख विपक्षी नेताओं की लोकप्रियता बढ़ी है। नीतीश के पक्ष में यह बात जाती है कि वह हिंदी भाषी क्षेत्र से आते हैं, लंबा राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव है तथा भ्रष्टाचार एवं परिवारवाद जैसे आरोपों से मुक्त हैं।
फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी की तुलना में नीतीश कुमार कमजोर दिखाई देते हैं। इसकी वजह यह है कि मोदी पूरे देश में लोकप्रिय हैं तो नीतीश की लोकप्रियता फिलहाल बिहार या कुछ अन्य हिंदी भाषा क्षेत्रों तक सीमित है। पिछले 10 वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का ग्राफ लगातार बढ़ा है तो नीतीश की लोकप्रियता घटी है। यह जरूर है कि नीतीश की छवि ईमानदार नेता की है। वह किसी राजनीतिक परिवार से नहीं हैं और परिवारवाद को भी आगे नहीं बढ़ा रहे हैं। आज के समय में ये बातें जनता को आकर्षित करती हैं। यह नीतीश के लिए बड़ी राजनीतिक पूंजी भी है।
कांग्रेस हमेशा इसकी पैरवी करेगी कि चुनाव हो जाने दीजिए और फिर संख्याबल के आधार पर तय होगा कि नेता कौन होगा। कांग्रेस के लिए यह असंभव है कि वह चुनाव से पहले नीतीश को अपना नेता मान ले। कांग्रेस पहले की तुलना में कमजोर हुई है, लेकिन उसके पास अभी भी लोकसभा में 50 से अधिक सीट हैं, जबकि नीतीश के 16 सांसद हैं। अगर नीतीश को चेहरा बनाने की बात आती है तो कांग्रेस के भीतर इसका बहुत विरोध होगा।फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी की तुलना में नीतीश कुमार कमजोर दिखाई देते हैं। इसकी वजह यह है कि मोदी पूरे देश में लोकप्रिय हैं तो नीतीश की लोकप्रियता फिलहाल बिहार या कुछ अन्य हिंदी भाषा क्षेत्रों तक सीमित है। पिछले 10 वर्षों के दौरान प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का ग्राफ लगातार बढ़ा है तो नीतीश की लोकप्रियता घटी है। यह जरूर है कि नीतीश की छवि ईमानदार नेता की है। वह किसी राजनीतिक परिवार से नहीं हैं और परिवारवाद को भी आगे नहीं बढ़ा रहे हैं। आज के समय में ये बातें जनता को आकर्षित करती हैं। यह नीतीश के लिए बड़ी राजनीतिक पूंजी भी है।
कांग्रेस हमेशा इसकी पैरवी करेगी कि चुनाव हो जाने दीजिए और फिर संख्याबल के आधार पर तय होगा कि नेता कौन होगा। कांग्रेस के लिए यह असंभव है कि वह चुनाव से पहले नीतीश को अपना नेता मान ले। कांग्रेस पहले की तुलना में कमजोर हुई है, लेकिन उसके पास अभी भी लोकसभा में 50 से अधिक सीट हैं, जबकि नीतीश के 16 सांसद हैं। अगर नीतीश को चेहरा बनाने की बात आती है तो कांग्रेस के भीतर इसका बहुत विरोध होगा।
अगर ये विपक्षी दल नेता चुनने के चक्कर में पड़े तो नेता कभी नहीं चुना जा सकेगा और न ही समन्वय स्थापित हो पाएगा। समन्वय जरूरी है, नेता की जरूरत उतनी नहीं है। अगर समन्वय नहीं रहा तो विपक्ष के लिए 2024 का मामला पहले ही खत्म हो जाएगा।
अगर ये विपक्षी दल नेता चुनने के चक्कर में पड़े तो नेता कभी नहीं चुना जा सकेगा और न ही समन्वय स्थापित हो पाएगा। समन्वय जरूरी है, नेता की जरूरत उतनी नहीं है।अगर ये विपक्षी दल नेता चुनने के चक्कर में पड़े तो नेता कभी नहीं चुना जा सकेगा और न ही समन्वय स्थापित हो पाएगा। समन्वय जरूरी है, नेता की जरूरत उतनी नहीं है। अगर समन्वय नहीं रहा तो विपक्ष के लिए 2024 का मामला पहले ही खत्म हो जाएगा। अगर समन्वय नहीं रहा तो विपक्ष के लिए 2024 का मामला पहले ही खत्म हो जाएगा।