देश में प्रदूषण बिल्कुल भी कम नहीं हो रहा है! राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1947 में आजादी के लिए एक अहिंसक आंदोलन के दौरान कहा था ‘राजनीतिक स्वतंत्रता से ज्यादा जरूरी स्वच्छता है।’ केंद्र की मोदी सरकार ने बापू के इन्हीं विचारों को आदर्श मानते हुए 2014 में उनके जन्मदिन यानी 2 अक्टूबर को स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया। स्वच्छता की इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए 2019 में नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) शुरू किया गया। ये अभियान केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तहत शुरू किया गया। इस प्रोग्राम के तहत देश के 122 शहरों में हवा के स्तर को सुधारने का लक्ष्य रखा गया था, अभियान को 4 साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है लेकिन लगभग किसी भी शहर ने अपने टारगेट को पूरा नहीं किया। नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत सरकार ने 122 शहरों को चुना और इनकी हवा को साफ करने का टारगेट रखा। इन शहरों में हवा साफ करने के लिए अब तक 6897.06 करोड़ रुपये का फंड जारी किया जा चुका है। इन 131 शहरों में से 82 शहरों को NCAP के तहत फंडिग दी गई वहीं 50 शहरों को 15वें वित्त आयोग ने फंड दिया। करोड़ों रुपये की फंडिंग के बाद भी हवा की क्वालिटी में कोई खास सुधार नहीं देखा गया। ऐसा भी कहा गया कि जिन शहरों में हवा की गुणवत्ता में सुधार नहीं होगा उनकी फंडिंग को भी कम कर दिया जाएगा।
नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के तहत 2024 तक देशभर के 122 शहरों में सालाना PM2.5 और PM10 स्तर को 20 से 30 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य दिया गया। लेकिन सितंबर 2022 तक ये सभी शहर टारगेट से दूर दिखे। इसके बाद सरकार ने टारगेट को साल 2026 तक के लिए बढ़ा दिया। लेकिन समय के साथ हवा को सुधारने का लक्ष्य भी बढ़ा दिया गया। अब 2026 तक इन शहरों को PM2.5 और PM10 स्तर को 40 फीसदी तक कम करना है।
हवा की गुणवत्ता के मामले में राजधानी दिल्ली का सबसे बुरा हाल है। नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के डेटा के अनुसार दिल्ली 2022 में सबसे प्रदूषित शहर बन गया। 2019 में जब ये प्रोग्राम शुरू किया गया तब दिल्ली प्रदूषित हवा के मामले में तीसरे नंबर पर था। लेकिन पिछली साल दिल्ली शहर दूसरे नंबर पर आ गया। ऐसा नहीं है कि दिल्ली की हवा के स्तर में सुधार नहीं हुआ है। दिल्ली में सालाना PM2.5 स्तर में 7.4 फीसदी सुधार हुआ। वहीं प्रदूषण के मामले में दिल्ली से आगे रहने वाले गाजियाबाद में 22.2 फीसदी और नोएडा में 29.8 फीसदी सुधार हुआ।
आपको बता दें कि PM का मतलब हवा में मिली धूल के कणों से है। PM का मतलब पार्टिकुलेट मैटर होता है। वहीं 2.5 से लेकर 10 तक धूल या गंदगी के कणों का आकार दर्शाता है। PM2.5 से लेकर PM10 तक के प्रदूषण में पार्टिकल बेहद छोटे होते हैं। ये इतने छोटे कण होते हैं कि इन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। इन्हें देखने के लिए माइक्रोस्कोप की जरूरत पड़ती है। लेकिन ये काफी खतरनाक होते हैं और हमारी सेहत के लिए घातक साबित हो सकते हैं।
जिस कोरोना महामारी ने दुनियाभर में तबाही मचाई उसने नेशनल एयर क्लीन प्रोग्राम को काफी मदद की। कोरोना के बाद लगे लॉकडाउन में नेशनल क्लीम एयर प्रोग्राम के 95 फीसदी टारगेट केवल 74 दिन में पूरे हो गए। इन दिनों सभी फैक्ट्री और ट्रांसपोर्ट बंद थे, इसी के चलते हवा की गुणवत्ता में सुधार हुआ। लॉकडाउन के वक्त का डेटा को देखें तो ज्यादातर शहरों की हवा साफ हुई। लेकिन 2021 में एक बार फिर से हवा के स्तर में कमी आई।
CSE की एक रिपोर्ट के अनुसार, जिन शहरों को NCAP के लिए चुना गया और करोड़ों रुपये खर्च किए गए उनमें अन्य शहरों के की तुलना में कोई खास अंतर नहीं है। राष्ट्रीय स्तर पर तो इनमें अंतर खोजना मुश्किल है हालांकि क्षेत्रीय स्तर पर थोड़ा अंतर देखने को मिल सकता है।PM का मतलब पार्टिकुलेट मैटर होता है। वहीं 2.5 से लेकर 10 तक धूल या गंदगी के कणों का आकार दर्शाता है। PM2.5 से लेकर PM10 तक के प्रदूषण में पार्टिकल बेहद छोटे होते हैं। ये इतने छोटे कण होते हैं कि इन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता। इन्हें देखने के लिए माइक्रोस्कोप की जरूरत पड़ती है। लेकिन ये काफी खतरनाक होते हैं और हमारी सेहत के लिए घातक साबित हो सकते हैं। पश्चिम भारत में गैर एनसीएपी शहर औसतन अधिक प्रदूषित हैं। वहीं उत्तरी राज्यों में के गैर एनसीएपी शहर भी प्रदूषित हैं लेकिन ये अंतर काफी कम है। वहीं पूर्व और दक्षिण भारत के इलाकों में गैर NCAP शहरों में प्रदूषण काफी कम है। वहीं देश में सबसे ज्यादा प्रदूषिक शहर पूर्वी इलाकों के हैं।