RSS क्यों नहीं दे रहा नितिन गडकरी का साथ?

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नितिन गडकरी आर एस एस का हिस्सा रह चुके हैं! वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आरएसएस के सबसे भरोसेमंद सिपाही हैं। यों कहें कि संघ के दुलरुआ हैं। खाकी नेकर में संघ के कार्यक्रमों में उनकी तस्वीरें आपको हर बार दिख जाएंगी। तो फिर आखिर संघ अपने इस सिपाही को मझधार में क्यों छोड़ दिया? आखिर क्या वजह रही कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) संसदीय दल से गडकरी की छुट्टी पर संघ ने वीटो नहीं लगाया? नागपुर के सांसद का संघ से नजदीकी के बाद भी पार्टी में कद घट गया। दरअसल, ये घटना अचानक नहीं हुई है। आइए समझते हैं कि आरएसएस ने अपने इस मजबूत कार्यकर्ता के ऊपर से हाथ क्यों उठा लिया।

माना जा रहा है कि नितिन गडकरी की टिप्पणियों से संघ असहज था। गडकरी के बयान को पकड़कर विपक्षी बीजेपी पर निशाना साध रहे थे। संघ ने गडकरी को अपने बयानों को लेकर आगाह भी कर दिया था। पर ऐसा लगता है कि गडकरी ने संघ के सुझाव पर भी ध्यान नहीं दिया।

संघ का साफ मानना है कि कोई भी नेता चाहे किसी भी कद का क्यों न हो, वह पार्टी लाइन के बाहर जाकर बयान नहीं दे सकता है। बीजेपी के कुछ सूत्रों ने बताया कि गडकरी सार्वजनिक रूप से नहीं बल्कि निजी रूप पर भी पार्टी लाइन से बाहर जाकर बयान दे देते थे। इससे पार्टी के लिए मुश्किल हो जाती थी।

मौजूदा फेरबदल को विश्लेषक गडकरी और पीएम नरेंद्र मोदी के साथ-साथ गृह मंत्री अमित शाह के बीच मनमुटाव को भी एक कारण मान रहे हैं। कई अन्य लोगों का मानना है कि ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) में बदले समीकरण के कारण भी हैं। विश्लेषकों का मानना है कि गडकरी की आरएसएस के साथ नजदीकी की बात अब उतनी सही नहीं लग रही है। दत्तात्रेय होसबोले के सरकार्यवाह बनने के बाद चीजें बदलने लगी थीं। संघ प्रमुख के बाद सरकार्यवाह दूसरे नंबर पर होते हैं और वे अहम फैसले भी लेते हैं।

गडकरी का एक वक्त बीजेपी और संघ में जलवा हुआ करता था। आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि एक वक्त उन्हें दोबारा बीजेपी का अध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी का संविधान बदल दिया गया था। लेकिन इस बार न तो संघ का हाथ उनके सिर पर था न ही पार्टी ने उन्हें तवज्जो दी। 2009 में गडकरी सबसे कम उम्र के बीजेपी चीफ बनने वाले नेता थे। वह 52 साल में ही इस पद पर पहुंच गए थे। माना जा रहा है कि पिछले 8 साल में पार्टी के अंदर गडकरी का कद छोटा हो गया है।

कुछ समय पहले गडकरी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि वह 20 फीसदी पॉलिटिक्स करते हैं और 80 प्रतिशत सामाजिक काम। नागपुर में तो एक कार्यक्रम में गडकरी ने कहा था कि महात्मा गांधी के समय राजनीति देश, समाज और विकास के लिए होती थी। अब राजनीति सिर्फ सत्ता के लिए होती है। कई बार तो उनका मन राजनीति छोड़ने को करता है।

यानी गडकरी के लिए पिछला कुछ वक्त खराब चल रहा था। संघ में फेरबदल, पीएम मोदी से तल्खी।गडकरी का एक वक्त बीजेपी और संघ में जलवा हुआ करता था। आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि एक वक्त उन्हें दोबारा बीजेपी का अध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी का संविधान बदल दिया गया था। लेकिन इस बार न तो संघ का हाथ उनके सिर पर था न ही पार्टी ने उन्हें तवज्जो दी। 2009 में गडकरी सबसे कम उम्र के बीजेपी चीफ बनने वाले नेता थे। वह 52 साल में ही इस पद पर पहुंच गए थे। माना जा रहा है कि पिछले 8 साल में पार्टी के अंदर गडकरी का कद छोटा हो गया है। उसपर से अबज-गजब बयान ने गडकरी की मुश्किलें बढ़ा दी थीं। उसपर से संघ की सलाह को नजरअंदाज करना भी पूर्व बीजेपी चीफ के लिए भारी पड़ा। यही वजह रही कि संघ अपने इस लाडले नेता को बचाने खुलकर सामने नहीं आया। 2009 में गडकरी सबसे कम उम्र के बीजेपी चीफ बनने वाले नेता थे। वह 52 साल में ही इस पद पर पहुंच गए थे। माना जा रहा है कि पिछले 8 साल में पार्टी के अंदर गडकरी का कद छोटा हो गया है। उसपर से अबज-गजब बयान ने गडकरी की मुश्किलें बढ़ा दी थीं। उसपर से संघ की सलाह को नजरअंदाज करना भी पूर्व बीजेपी चीफ के लिए भारी पड़ा। यही वजह रही कि संघ अपने इस लाडले नेता को बचाने खुलकर सामने नहीं आया। ये जरूरी है कि केंद्र सरकार में उनके मंत्री पद पर कोई असर नहीं पड़ेगा। साथ ही आगे उन्हें और नाराज नहीं किया जाएगा। ये जरूरी है कि केंद्र सरकार में उनके मंत्री पद पर कोई असर नहीं पड़ेगा। साथ ही आगे उन्हें और नाराज नहीं किया जाएगा।