यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कांग्रेस महाराष्ट्र और झारखंड में अपनी जगह बन पाएगी या नहीं! कछुए ने खरगोश को हरा दिया। यह कहानी तो बचपन में ही बता दी जाती है। लेकिन इस पाठ के सबक हममें से कितने को याद रहते हैं? यूं कहें कि जिंदगी की पटरी पर आगे बढ़ते हुए हममें से कितने लोग कुछए और खरगोश की रेस वाली यह कहानी को याद रखते हैं? इन सवालों के जवाब जो भी हों, लेकिन इतना तो तय है कि हरियाणा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने तो इस कहानी के सबक का जरा भी ध्यान नहीं रखा। फिर 8 अक्टूबर के नतीजों ने कांग्रेस पार्टी को बताया कि सबक भूलने का नतीजा क्या होता है। हरियाणा में कांग्रेस पार्टी ने रेस वाले खरगोस की भूमिका निभाई। ‘जीत ही रहे हैं’ के भाव से ओत-प्रोत कांग्रेस पार्टी के नेता सुस्त पड़ गए और हार के डर से बीजेपी ने चुस्ती दिखाई और जमीन पर काम किया। बीजेपी की मातृ संस्था आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) ने हजारों बैठकें कीं। इधर, बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व की तरफ से नियुक्त प्रदेश प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान और विप्लब देव के दिशा-निर्देश में नेताओं-कार्यकर्ताओं ने जी-जान लगा दिया।
उधर, कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर आंख मूंदकर भरोसा किया और सारे अंडे उनकी ही टोकरी में रख दिए। पार्टी ने प्रदेश की एक अन्य दिग्गज नेता कुमारी शैलजा को भाव नहीं दिया। वहीं टिकट वितरण में भी बहुत हद तक भाई-भतीजावाद हावी रहा। ये सब ‘खरगोशी प्रवृत्ति’ के कारण ही हुआ। उधर, कछुआ (बीजेपी) धीरे-धीरे ही सही, लेकिन कदम-दर-कदम बढ़ता गया। काम के दौरान नींद आना आश्चर्यजनक नहीं है। लेकिन उतना ही स्वभाविक है रुला देने वाला परिणाम आना। हरियाणा के चुनाव परिणाम ने कांग्रेस की चीख निकाल दी, इसमें कोई संदेह नहीं। तो क्या अब वह सतर्क हो जाएगी? होना तो यही चाहिए। महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनाव सामने हैं। कांग्रेस को अपनी गलती सुधारकर हिसाब चुकता करने का मौका जल्द ही मिल गया है। लेकिन क्या हारती हुई बाजी को जीत में बदलने वाली बीजेपी इन चुनावों में कांग्रेस वाली गलती करेगी? क्या बीजेपी पर जीत का नशा छा जाएगा और वह महाराष्ट्र-झारखंड में हरियाणा के कांग्रेस जैसी गलती करेगी?
संभव है कि बीजेपी ऐसा कुछ नहीं करे, लेकिन एक बात तो सही है कि महाराष्ट्र और झारखंड में उसे हरियाणा वाली बढ़त तो नहीं मिल पाएगी। क्यों? क्योंकि हरियाणा में जीत ने बीजेपी की चुपचाप चली गई चालों को उजागर कर दिया। तब उसकी रणनीति को कोई तवज्जो नहीं दी जा रही थी, इसलिए गुप्त ही रही। अब हरियाणा में बीजेपी की एक-एक चाल पर लंबी-चौड़ी चर्चा हो रही है।कांग्रेस के पास सीखने का आसान रास्ता है, साथ ही ‘खरगोशी प्रवृत्ति’ का खामियाजा उठाने का सबक भी। वह महाराष्ट्र-झारखंड के विधानसभा चुनावों में खरगोश की फुर्ती और कछुए की निरंतरता, दोनों गुणों को साधने की कोशिश करेगी ताकि दोनों प्रदेशों में जीत पक्की की जा सके। ऐसे में बीजेपी के पास क्या चारा रह जाएगा? क्या वह कोई नई चाल चलेगी? क्या उसकी नई रणनीति खरगोश और कछुए के संयुक्त गुणों से लबालब कांग्रेस को भी मात दे देगी?
महाराष्ट्र में 288 और झारखंड में 81 विधानसभा सीटें हैं। ये कुल मिलाकर हरियाणा और झारखंड की 90+90 कुल 180 सीटों से बहुत ज्यादा (288+81 = 369) हैं। कांग्रेस के पास अकेले महाराष्ट्र में ही बीजेपी से बदला लेने का मौका है। हरियाणा में कांग्रेस ने किसी से गठबंधन नहीं किया, लेकिन महाराष्ट्र में उसका शरद पवार के गुट वाली एनसीपी और उद्धव गुट की शिवसेना के साथ गठबंधन है। वहीं, झारखंड में भी वह जेएमएम और आरजेडी के साथ गठबंधन में ही चुनाव मैदान में उतरेगी।महाराष्ट्र में बीजेपी गठबंधन की सरकार है जबकि झारखंड में कांग्रेस गठबंधन की। बीजेपी चाहेगी के कम-से-कम यही स्थिति चुनाव परिणाम आने के बाद भी बनी रहे। वैसे झारखंड की सत्ता में वापसी के लिए भी उसने पूरा दम-खम लगाया है। कांग्रेस भी ऐसा ही सपना अपने लिए देख रही होगी। बता दें कि कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर आंख मूंदकर भरोसा किया और सारे अंडे उनकी ही टोकरी में रख दिए। पार्टी ने प्रदेश की एक अन्य दिग्गज नेता कुमारी शैलजा को भाव नहीं दिया। देखना होगा कि दोनों पार्टियां चुनावों में जो सपने दिखाएगी, जनता उनमें से किस पर ज्यादा यकीन करती है।