यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या रूस वाले मामले में अमेरिका से भारत झुकेगा या नहीं! पीएम मोदी की रूस यात्रा के बाद से ही अमेरिका बौखलाया हुआ है। अमेरिका ने भारतीय अधिकारी से मिलकर पहले कोशिश की कि पीएम मोदी की मास्को यात्रा को स्थगित किया जाए। भारत ने अमेरिका की इस मांग को खारिज कर दिया और पीएम मोदी ने यूक्रेन युद्ध के बाद मास्को की यात्रा की। इस यात्रा के बाद अमेरिका अब धमकाने में जुट गया है। भारत में अमेरिका के राजदूत ने कहा कि ‘कोई भी युद्ध अब दूर नहीं है’ और संघर्ष के दौरान रणनीतिक स्वायत्ता जैसी कोई चीज नहीं होती है। अमेरिकी राजदूत की इस धमकाने वाली भाषा के बाद अब विश्लेषकों ने करारा जवाब दिया है और कहा कि अमेरिका भारत के खिलाफ ठीक वही भाषा बोल रहा है जो 1950 के दशक में सोवियत संघ से नजदीकी रखने पर अमेरिका चर्चिल के शब्दों में धमकाता था।अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत और विश्लेषक हुसैन हक्कानी एरिक गार्सेटी के बयान पर कहते हैं कि यह कुछ उसी तरह से लग रहा है जैसे जॉन फोस्टर डुलेस (तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री) चर्चिल का भारतीयों को लेकर दिए बयान का हवाला देकर सोवियत जमाने में अमेरिका का साथ देने के लिए कहते थे। जॉन फोस्टर चाहते थे कि सोवियत संघ के खिलाफ भारत अमेरिका का पूरा साथ दे। चर्चिल कहते थे, ‘मैं आग और फायर ब्रिगेड के बीच निष्पक्ष रहने से पूरी तरह से इंकार करता हूं।’ हक्कानी ने कहा कि यह अमेरिकी बयान उस समय भी कारगर नहीं हुआ था और अब आगे भी इसके कारगर होने की कोई संभावना नहीं है।
बता दें कि गार्सेटी ने इस बात पर जोर दिया कि देशों को न सिर्फ शांति के लिए खड़ा होना चाहिए, बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम भी उठाने चाहिए कि जो लोग शांतिपूर्ण तरीके से काम नहीं करते, उनकी युद्ध मशीनें “बे रोकटोक जारी नहीं रहें।’ अमेरिकी राजदूत ने कहा, ‘और यही बात अमेरिका और भारत दोनों को मिलकर जानने की जरूरत है।’ उन्होंने दिल्ली और वाशिंगटन के बीच एक मजबूत साझेदारी की भी वकालत की। उनकी यह टिप्पणी यूक्रेन-रूस और इजराइल-गाजा सहित विश्व में चल रहे अनेक संघर्षों की पृष्ठभूमि में आई है।
अमेरिकी राजदूत ने कहा कि आपात स्थिति में, चाहे वह प्राकृतिक आपदा हो या मानव-जनित युद्ध हो, ‘अमेरिका और भारत एशिया और दुनिया के अन्य भागों में आने वाली समस्याओं के खिलाफ एक शक्तिशाली अवरोधक साबित होंगे।’ उन्होंने कहा, ‘हम सभी जानते हैं कि हम दुनिया में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, अब कोई युद्ध किसी से दूर नहीं है। हमें सिर्फ शांति के लिए खड़े नहीं होना चाहिए बल्कि हमें यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए कि जो लोग शांतिपूर्ण नियमों का पालन नहीं करते, उनकी युद्ध मशीनें बेरोकटोक जारी न रह सकें। यह बात अमेरिका और भारत दोनों को जाननी चाहिए।’बता दे कि 81 वर्षीय अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की यह हालिया गलती कुछ घंटों के अंतराल पर हुई, जब वे नाटो शिखर सम्मेलन की मेज़बानी कर रहे थे। ऐसे में उनसे फिर से चुनाव अभियान से हटने की मांग की जा रही है। नवंबर में होने वाले चुनावों में रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप का सामना करने से पहले डेमोक्रेटिक उम्मीदवार बाइडन को शासन करने की अपनी मानसिक क्षमता पर सवालों का सामना करना पड़ा है।
वाल्टर ई. वाशिंगटन कन्वेंशन सेंटर को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा: “अब मैं यूक्रेन के राष्ट्रपति को सौंपना चाहता हूं, जिनमें दृढ़ संकल्प के साथ-साथ उतना ही साहस भी है। देवियो और सज्जनो, राष्ट्रपति पुतिन।” बाइडन ने मंच पर जेलेंस्की का अभिवादन करते हुए तुरंत खुद को सही किया, जो उनके पीछे खड़े थे। बाइडन ने आगे कहा, “राष्ट्रपति पुतिन को हराने जा रहा हूं, राष्ट्रपति जेलेंस्की। मैं पुतिन को हराने पर बहुत ध्यान केंद्रित कर रहा हूं।”
शाम को एक अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस में बोलते हुए, बाइडन ने अपने उप राष्ट्रपति हैरिस को अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी ट्रंप के साथ मिला दिया। यह पूछे जाने पर कि उन्हें उनकी सेकेंड इन कमांड (उपराष्ट्रपति हैरिस) को लेकर क्या चिंताएं होंती अगर वह उनकी जगह चुनाव मैदान में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के खिलाफ चुनाव लड़तीं। उन्होंने भ्रमित करते हुए कहा: “देखिए, मैं उपराष्ट्रपति ट्रंप को उपराष्ट्रपति के रूप में नहीं चुनता… क्या मुझे लगता है कि वह राष्ट्रपति बनने के योग्य नहीं हैं… तो चलिए यहीं से शुरू करते हैं।”