भारत अब हजारों फीट की ऊंचाई से चीन पर नजर रखने वाला है! भारतीय सेना चालबाज चीन को हर मोर्चे पर मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी कर रही है। लद्दाख में स्थित लेह एयर बेस पर एक नया रनवे बनाया जा रहा है। ये वही हवाई क्षेत्र है जहां पिछले कुथ सालों में भारत और चीन की सेना के बीच कई टकराव हुए हैं। यहां अब दूसरा रनवे बनाया जा रहा है। यह हवाई क्षेत्र भारत और चीन के बॉर्डर यानी एलएसी और सियाचिन पर सैन्य गतिविधियों को जारी रखने के लिए बेहद जरूरी है। यह एयर बेस रात के वक्त भी लड़ाकू विमानों और सामान ले जाने वाले एयरफोर्स के जहाजों के लिए उड़ान भरने के लिए उपयुक्त है। चीन के साथ संबंध खराब होने के बाद से राफेल, मिग-29, सुखोई-30 और अपाचे जैसे विमान इसी एयरबेस से नियमित रूप से उड़ान भर रहे हैं। जब कड़ाके की ठंड में इलाके के सभी सड़क मार्ग बंद हो जाते हैं, तब यही एयर बेस सैनिकों और जरूरी सामान को लाने-जाने का इकलौता जरिया बचता है। 10,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित लेह देश का पहला ऐसा ऊंचाई वाला एयर बेस होगा जहां दो रनवे होंगे। साल 2020 में पूर्वी क्षेत्र में भारत की स्थिति को मजबूत करने के लिए इस एयर बेस से 68 हजार सैनिकों और टैंकों को हवाई जहाजों द्वारा पहुंचाया गया था, जो इस क्षेत्र के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हुआ। एक अखबार ने एक अधिकारी का हवाला देते हुए लिखा कि पिछले कुछ सालों में लेह एयर बेस पर सैन्य और नागरिक उड़ानों की संख्या काफी बढ़ गई है, लेकिन यहां के मौसम और वातावरण की वजह से उड़ान भरने का समय सुबह के कुछ घंटो तक ही सीमित रहता है।
अप्रैल 2024 में सामने आई सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला कि चीन से लगने वाली सीमा के पास पूर्वी कमान के अंतर्गत आने वाले महत्वपूर्ण चाबुआ एयर बेस पर बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का विकास किया जा रहा है। इन तस्वीरों में एयर बेस पर हो रहे बड़े स्तर के डेवलेपमेंट और निर्माण कार्यों को देखा जा सकता है। सैटेलाइट तस्वीरों में एक्स्ट्रा टैक्सीवे (विमानों के आने-जाने के रास्ते), लड़ाकू विमानों के लिए मजबूत शरणस्थल और भूमिगत हथियारों के भंडार बनाने का काम देखा गया। अतिरिक्त रनवे और टैक्सीवे चीन के साथ गतिरोध के युद्ध में बदल जाने की स्थिति में हवाई अभियानों को सुचारू रूप से चलाने में मदद कर सकते हैं। तस्वीरों में एक बेहतरीन टैक्सीवे को भी दिखाया गया है जिसका इस्तेमाल ड्रोन के लिए किया जा सकता है।
एयर बेस के बुनियादी ढांचे के डेवलेपमेंट का कांट्रेक्ट 2020 में ही दे दिया गया था, लेकिन चीन के साथ बढ़े तनाव के कारण इसे तेजी से पूरा करने वाले प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया गया। टाटा पावर एसईडी (टीपीएसईडी) के साथ 1200 करोड़ रुपये की लागत वाली आधुनिकीकरण हवाई क्षेत्र बुनियादी ढांचा (MAFI) प्रोजेक्ट के तहत वायुसेना, भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल के 37 हवाई क्षेत्रों को डेवलेप किया जाएगा। लद्दाख में स्थित न्योमा एयर बेस पर चीन की सीमा से सिर्फ 23 किलोमीटर की दूरी पर 2.7 किलोमीटर लंबे रनवे का निर्माण अक्टूबर 2024 में पूरा हो जाएगा। यह नया 13,700 फीट लंबा रनवे उस क्षेत्र में वायुसेना के अभियानों को और मजबूत बनाएगा। न्योमा एयर बेस पर बनाए जा रहे बुनियादी ढांचे में विमानों को खड़ा करने के लिए शेड (हैंगर), एयर ट्रैफिक कंट्रोल और पक्के रास्ते (जहां वाहन और विमान खड़े हो सकें) शामिल हैं, ये सब 2025 के अंत तक बनकर तैयार हो जाएंगे।
यह न्योमा हवाई पट्टी 1962 में भी चालू थी, उसी साल भारत और चीन के बीच एक छोटा खूनी संघर्ष हुआ था। युद्ध के बाद जल्द ही इस हवाई पट्टी का इस्तेमाल बंद हो गया, लेकिन 2009 में एक एएन-32 विमान के यहां उतरने के बाद इसे फिर से चालू कर दिया गया। तब से सी-130जे सुपर हरक्युलेस विमान इस हवाई पट्टी से उड़ान भरते रहे हैं। चीन के साथ 2020 में गतिरोध के चरम पर, वायुसेना ने अपने मध्यम क्षमता वाले Mi-17 हेलीकॉप्टर, भारी क्षमता वाले CH-47F चिनूक हेलीकॉप्टर और आक्रमण करने वाले AH-64E अपाचे हेलीकॉप्टरों को सैनिकों की तैनाती में मदद करने और निगरानी और खुफिया जानकारी जुटाने के लिए न्योमा भेज दिया था।
शिगात्से शांति हवाई अड्डे पर J-20 विमानों की तैनाती महत्वपूर्ण है। यह हवाई अड्डा पश्चिम बंगाल में हाशिमारा वायुसेना स्टेशन से 300 किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित है, जहां भारतीय वायुसेना के राफेल लड़ाकू विमान तैनात हैं। सेना से जुड़े जानकारों ने सीमा के पास इतने लड़ाकू विमानों की तैनाती पर चिंता जताई है। चीन के विपरीत, भारत के पास अभी तक पांचवीं पीढ़ी का कोई लड़ाकू विमान नहीं है। शिगात्से हवाई क्षेत्र चीन-भारत सीमा के मध्य भाग में स्थित है और 2017 के डोकलाम गतिरोध वाले विवादित क्षेत्र के सबसे नजदीक हवाई अड्डा है। 2017 में, चीन ने वहां पहले से मौजूद रनवे के साथ ही एक नया 3,000 मीटर लंबा सहायक रनवे बनाया था, जिसमें सात हेलीपैड भी शामिल हैं। गौर करने वाली बात ये है कि नया रनवे पुराने रनवे के समानांतर नहीं बल्कि अलग एंगल पर बनाया गया है। इससे दुश्मन ताकतों के लिए एक ही हमले में दोनों रनवे को निष्क्रिय करना मुश्किल हो जाता है।
अमेरिका के सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज की चाइना पावर प्रोजेक्ट के अनुसार, चीन अपने पश्चिमी क्षेत्रों तिब्बत और शिनजियांग में दर्जनों हवाई अड्डों और हेलीपोर्टों को डेवलेप कर रहा है। चाइना पावर ने तिब्बत और शिनजियांग के भीतर 37 हवाई अड्डों और हेलीपोर्टों की पहचान की है, जिनका 2017 से जब चीन और भारत के बीच डोकलाम पठार पर 73 दिनों का गतिरोध हुआ था या तो निर्माण किया गया है या डेवलेप किया गया है। ये नए हवाई क्षेत्र भारतीय सीमा के साथ उन बड़े क्षेत्रों को भी भर देते हैं, जहां पहले कोई हवाई अड्डा नहीं था। इससे पीएलए वायुसेना को भारत के खिलाफ हवाई शक्ति प्रदर्शित करने के लिए नए ठिकाने मिल जाएंगे।