भारत कब आने वाले समय में चीन को भी आंख दिखा सकता है! पिछले कुछ हफ्तों में चीन के प्रति भारत के रवैये में बदलाव आया है। ये इस बात का संकेत देता है कि अपने तीसरे कार्यकाल में, मोदी सरकार चीन के खिलाफ सख्त रुख अपना सकती है। 2020 में सीमा पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प के बाद से ही दोनों देशों के संबंधों में तनाव बना हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी जुलाई के पहले हफ्ते में कजाकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में शामिल हो सकते हैं, जहां उनकी मुलाकात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हो सकती है। दोनों नेताओं के बीच संभावित बैठक से कुछ समय पहले ही, भारत चीन के खिलाफ अपना रुख सख्त करता हुआ दिखाई दे रहा है। बता दें कि 2022 में बाली में हुए जी20 शिखर सम्मेलन और एक साल बाद दक्षिण अफ्रीका में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में गलवान झड़प के बाद मोदी और शी के बीच हुई दो बैठकों में कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकल पाए थे। भारत-चीन सीमा पर दोनों तरफ अभी भी हजारों सैनिक तैनात हैं।
चीन भारत सरकार पर पिछले चार सालों से बंद पड़ी सीधी यात्री उड़ानों को दोबारा शुरू करने का दबाव डाल रहा है, लेकिन भारत सीमा विवाद के चलते इससे इनकार कर रहा है। रॉयटर्स की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, चीन की सरकार और एयरलाइंस ने पिछले एक साल में कई बार भारत के नागरिक उड्डयन प्राधिकरण से सीधी हवाई संपर्क बहाल करने का अनुरोध किया है। सूत्रों के मुताबिक चीन इसे एक बड़ा मुद्दा मानता है। चीन के विदेश मंत्रालय ने रॉयटर्स को एक बयान में कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि भारत सीधी उड़ानों को जल्द से जल्द फिर से शुरू करने के लिए चीन के साथ काम करेगा।” साथ ही यह भी कहा कि उड़ानों को फिर से शुरू करना दोनों देशों के हित में होगा। लेकिन भारत-चीन मामलों के जानकार एक सीनियर भारतीय अधिकारी ने सीधी उड़ानें फिर से शुरू करने की चीन की इच्छा के बारे में कहा, ‘जब तक सीमा पर शांति और अमन न हो, तब तक बाकी रिश्ते आगे नहीं बढ़ सकते।’
चीन के साथ रिश्ते तभी सामान्य होंगे, जब सीमा विवाद का हल निकल आएगा, भारत इस पर अड़ा हुआ है। कोरोना महामारी फैलने के चार महीने बाद भारत और चीन के बीच सीधी उड़ानें बंद कर दी गई थीं। हालांकि भारत ने एक साल बाद अंतर्राष्ट्रीय हवाई मार्गों पर कोरोना पाबंदियां हटा लीं और चीन ने 2023 की शुरुआत में सभी कोरोना यात्रा प्रतिबंध हटा दिए, फिर भी ये उड़ानें दोबारा शुरू नहीं हुईं, सिर्फ कुछ खास कोरोना वापसी उड़ानों को छोड़कर। 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद, ताइवान के राष्ट्रपति लाई चिंग-ते ने मोदी को लगातार तीसरी चुनाव जीत पर बधाई दी और दोनों देशों के बीच तेजी से बढ़ते संबंधों को और मजबूत करने की इच्छा जताई। उन्होंने व्यापार, प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों में भारत-ताइवान सहयोग बढ़ाने पर भी जोर दिया ताकि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति बनी रहे।
ताइवान के राष्ट्रपति ने एक्स पर पोस्ट करते हुए कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव में जीत पर मेरी हार्दिक बधाई। हम तेजी से बढ़ रही ताइवान-भारत साझेदारी को और मजबूत करने, व्यापार, तकनीक और अन्य क्षेत्रों में हमारे सहयोग का विस्तार करने की उम्मीद करते हैं ताकि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति और समृद्धि में योगदान दे सकें।’ मोदी ने जवाब दि, ‘आपके गर्मजोशी भरे संदेश के लिए धन्यवाद, हम परस्पर लाभकारी आर्थिक और तकनीकी साझेदारी की दिशा में काम करते हुए और घनिष्ठ संबंधों की आशा करते हैं।’ इन दोनों नेताओं के इस औपचारिक संवाद ने चीन को नाराज कर दिया, जिसने मोदी द्वारा ताइवानी राष्ट्रपति के बधाई संदेश को स्वीकार करने पर भारत के खिलाफ विरोध दर्ज कराया। चीनी विदेश मंत्रालय ने भारत से ताइवान की राजनीतिक गणनाओं का विरोध करने और वन-चाइना सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करने का आग्रह किया। चीन ने कहा कि वो “वन चाइना पॉलिसी” के तहत ताइवान के अधिकारियों और अन्य देशों के बीच सभी प्रकार की आधिकारिक बातचीत का विरोध करता है। बता दें कि भारत अन्य देशों की तरह वन चाइना पॉलिसी का पालन करता है। हालांकि भारत ने 2010 के बाद से कभी भी इसका सार्वजनिक रूप से जिक्र नहीं किया है। ऐसे में भारत और ताइवान के बढ़ते संबंध को चीन विद्रोह के रूप में देखता है।
करीब दो हफ्ते पहले, खबर आई थी कि भारत कुछ ऐसा करने की योजना बना रहा है जिससे चीन गुस्से में आ सकता है। एक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत चीन के अरुणाचल प्रदेश में जगहों के नाम बदलने के जवाब में, चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में 2 दर्जन से ज्यादा जगहों के नाम बदलने की योजना बना रहा है। जिन जगहों के नाम बदले जाएंगे, सेना ने उनकी लिस्ट तैयार कर ली है और जल्द ही जारी कर दी जाएगी। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि नए नामों को चुनते वक्त इतिहास की अच्छी तरह से जांच की गई है और साथ ही उन इलाकों में रहने वाले लोगों की राय भी ली गई है, जिनमें से कई चीनी नामों का विरोध करते हैं। नाम बदलने की इस मुहिम का मकसद भारत की तरफ से सीमा पर एक अलग कहानी दुनियाभर में फैलाना है। ये कहानी मजबूत ऐतिहासिक रिसर्च और उन इलाकों में रहने वाले लोगों की राय पर आधारित होगी। इसे क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में फैलाया जाएगा।
कुछ दिनों पहले, भारत ने अमेरिका की संसद के कई बड़े नेताओं को दलाई लामा से मिलने की इजाजत दे थी। इन नेताओं में अमेरिका के पूर्व स्पीकर नैंसी पेलोसी भी शामिल थीं। दलाई लामा तिब्बत के धर्मगुरु हैं, जो फिलहाल भारत में रहते हैं। चीन की सरकार ने इस मुलाकात का पहले ही विरोध किया था। चीन दलाई लामा को तिब्बत को चीन से अलग करने की कोशिश करने वाला मानता है। इसी दौरान, अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान भी भारत में थे। वे भारत के साथ सुरक्षा और टेक्नॉलॉजी पर मिलकर काम करने की बातचीत कर रहे थे।