Saturday, May 10, 2025
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क्या नासा की मदद करेगा भारतीय इसरो?

भारतीय इसरो अब नासा की मदद कर सकता है! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजकीय दौरे से पहले अमेरिका और भारत के बीच कई क्षेत्रों में आपसी सहयोग की रूपरेखा तय हो रही है। इसके लिए दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय बैठकें हुईं जिनमें द्विपक्षीय एवं पारस्परिक हितों के बहुपक्षीय मुद्दों को साथ-साथ हल करने के तरीकों पर विचार-विमर्श हुए। इसी क्रम में अब अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा नैशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन भी भारत की स्पेस एजेंसी इसरो इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन से लगातार संपर्क साध रही है। अधिकारियों का एक दल नासा के आर्टेमिस अकॉर्ड्स में भारत को शामिल करने को लेकर काफी उत्सुकता से बातचीत कर रहा है। आर्टेमिस अकॉर्ड्स एक पहल है जिसके तहत वर्ष 2025 तक इंसानों की मंगल पर वापसी सुनिश्चित करवाने के लिए विभिन्न देशों के बीच सरकार के स्तर पर समझौते हो रहे हैं। इस पहल की अगुवाई अमेरिका कर रहा है। इसका मकसद अंतरिक्ष अनुसंधानों को मंगल ग्रह और उससे भी इतर ले जाना है। एक अमेरिकी अंतरिक्ष विशेषज्ञ ने उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 21 से 25 जून के बीच अमेरिका के आधिकारिक दौरे पर होंगे तब वाइट हाउस में राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ होने वाली उनकी बातचीत में अंतरिक्ष अनुसंधान का विषय काफी महत्वपूर्ण होगा। नासा एडमिनिस्ट्रेटर ऑफिस में टेक्नॉलजी, पॉलिसी और स्ट्रैटिजी की असोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर भव्या लाल ने हाल ही में कहा कि अब तक 25 देशों ने आर्टेमिस अकॉर्ड्स पर दस्तखत कर दिया है। उन्होंने बताया कि भारत इस समझौते पर दस्तखत करने वाला 26वां देश होगा।

भव्या लाल भारतीय मूल की हैं। उन्होंने दिल्ली से अपनी स्कूलिंग की है और एमआईटी मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से न्यूक्लियर इंजीनियरिंग में बैचलर और मास्टर डिग्री ली है। भव्या ने पहले नासा में ऐक्टिंग चीफ टेक्नॉलजिस्ट की भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि भारत और अमेरिका को आर्टमिस प्रोग्राम में बहुत सी चीजों पर साथ-साथ काम करना चाहिए। एक अमेरिकी अंतरिक्ष विशेषज्ञ ने उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 21 से 25 जून के बीच अमेरिका के आधिकारिक दौरे पर होंगे तब वाइट हाउस में राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ होने वाली उनकी बातचीत में अंतरिक्ष अनुसंधान का विषय काफी महत्वपूर्ण होगा। नासा एडमिनिस्ट्रेटर ऑफिस में टेक्नॉलजी, पॉलिसी और स्ट्रैटिजी की असोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर भव्या लाल ने हाल ही में कहा कि अब तक 25 देशों ने आर्टेमिस अकॉर्ड्स पर दस्तखत कर दिया है। उन्होंने बताया कि भारत इस समझौते पर दस्तखत करने वाला 26वां देश होगा।अमेरिका के स्पेस एक्सपर्ट और नासा में स्पेस पॉलिसी एंड पार्टनरिशप्स के पूर्व असोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर माइक गोल्ड ने कहा कि ‘अमेरिका और भारत के बीच संबंध पृथ्वी पर तो बहुत महत्वपूर्ण हैं ही, उनके संबंधों का उससे भी ज्यादा महत्व अंतरिक्ष में है।’ उन्होंने भारत को ‘सोया हुआ शेर’ बताया जिसके लिए कुछ कर गुजरने की अब कोई सीमा नहीं रह गई है। यानी, भारत में वो दमखम है जिसकी बदौलत वो जो चाहे, कर सकता है। गोल्ड के इस बयान का खासा महत्व है क्योंकि वो ही आर्टेमिस अकॉर्ड्स के नीति-नियंता माने जाते हैं। उन्होंने भारत से अमेरिका के चंद्र अभियान से जुड़ने की अपील की है। गोल्ड ने उम्मीद जताई है कि इसरो के गगनयान कार्यक्रम में नासा भी मदद करेगा और भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों का गंतव्य इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन होगा।

अगर मोदी और बाइडेन के बीच नासा के आर्टेमिस प्रोग्राम के साथ-साथ ह्यूमन स्पेस एक्सप्लोरेशन से भारत के जुड़ने के विषय पर चर्चा हुई तो इससे इसरो के अंतरिक्ष अन्वेषण कार्यक्रमों को बड़ी मदद मिलेगी। भारत अगले कुछ हफ्तों में ही चंद्रयान 3 मिशन और आदित्य एल 1 सन मिशन लॉन्च करने वाला है।एक अमेरिकी अंतरिक्ष विशेषज्ञ ने उम्मीद जताई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब 21 से 25 जून के बीच अमेरिका के आधिकारिक दौरे पर होंगे तब वाइट हाउस में राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ होने वाली उनकी बातचीत में अंतरिक्ष अनुसंधान का विषय काफी महत्वपूर्ण होगा। नासा एडमिनिस्ट्रेटर ऑफिस में टेक्नॉलजी, पॉलिसी और स्ट्रैटिजी की असोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर भव्या लाल ने हाल ही में कहा कि अब तक 25 देशों ने आर्टेमिस अकॉर्ड्स पर दस्तखत कर दिया है। उन्होंने बताया कि भारत इस समझौते पर दस्तखत करने वाला 26वां देश होगा। इसरो और नासा ने अब तक 1.5 अरब डॉलर की लागत वाले निसार सैटलाइट प्रॉजेक्ट पर साथ काम किया है। निसार दुनिया का सबसे महंगा अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटलाइट प्रोग्राम है जो अगले साल लॉन्च होने के बाद पृथ्वी के बदलते पारिस्थितिक तंत्र, डाइनैमिक सर्फेसेज और बर्फ के पहाड़ पिघलने आदि पर नजर रखेगा। नासा ने भारत के चंद्रयान 1 से अपना उपकरण चंद्रमा पर भेजा थे जिसने पहली बार चांद पर पानी का सबूत ढूंढा था।

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