यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या इसरो का मिशन चंद्रयान 3 सफल हो पाएगा! चंद्रयान-3 14 जुलाई को लॉन्च होने के बाद से चांद के सफर पर निकल चुका है। इस मिशन को लॉन्च हुए 9 दिन हो गए हैं, ऐसे में देश ही नहीं पूरी दुनिया की नजरें हैं। सबको 23 अगस्त का इंतजार है जब चंद्रयान-3 चांद की सतह पर लैंड करेगा। अभी जो जानकारी इसरो ने दी है उसके हिसाब से चंद्रयान चौथे ऑर्बिट में प्रवेश कर चुका है और यह 25 जुलाई को पांचवी कक्षा में प्रवेश करेगा। पृथ्वी के चक्कर लगाने के बाद चंद्रयान-3 चांद के चक्कर लगाएगा जिसके बाद वह चांद की सतह पर कदम रखेगा। इसके साथ ही इसरो के लिए चुनौतियां भी कम नहीं हैं। चांद के करीब पहुंचते ही इसरो के लिए चुनौती और बढ़ जाएगी। सबसे पहली चुनौती यह है कि चंद्रयान-3 पृथ्वी के ऑर्बिट से सफलतापूर्वक आगे निकल जाए। दूसरी चुनौती यह है कि वह बिना परेशानी के पृथ्वी से चांद तक दूरी तय हो जाए और किसी तरह की समस्या न हो। तीसरी चुनौती यह है कि चंद्रयान-3 पृथ्वी की कक्षी से निकलकर चांद की कक्षा में पहुंच जाए। राहत की बात यह है कि अभी तक के सफर में चंद्रयान-3 को किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई है।
इसरो के अनुसार, अभी चंद्रयान-3 धरती की चौथी कक्षा में प्रवेश कर चुका है और चक्कर लगा रहा है। पृथ्वी की कक्षा में चंद्रयान-3 अंडाकार मार्ग पर चक्कर लगा रहा है। इसरो के वैज्ञानिक धीरे-धीरे इसकी गति और धरती से इसकी दूरी को बढ़ा रहे हैं। 25 जुलाई यानी मंगलवार को चंद्रयान-3 की दोपहर 2-3 पांचवी कक्षा में भेजा जाएगा।
इसके बाद चंद्रयान-3 को 31 जुलाई और 1 अगस्त की रात धरती की कक्षा से निकलकर चांद की कक्षा की तरफ बढ़ेगा। बता दें कि चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 35 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था। यह लॉन्च के दूसरे ही दिन धरती की दूसरी कक्षा में प्रवेश कर गया था। आपको बता दें कि जिस चंद्रमा को हम दूर से देखते हैं उसमें अब भारत का चंद्रयान-3 मिशन भेजा जा रहा है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो का बहुप्रतीक्षित मिशन शुक्रवार को लॉन्चिंग के लिए तैयार है। इसका उद्देश्य चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग का है। अमेरिका के नील आर्मस्ट्रॉन्ग चंद्रमा पर उतरने वाले पहले व्यक्ति थे उसके बाद से गैर-मानव मिशनों की होड़ सी लग गई। पृथ्वी और ब्रह्मांड के इतिहास का अध्ययन करने के लिए चंद्रमा वैज्ञानिकों का एक लक्ष्य बन चुका है।
भारत का यह मिशन चंद्रयान-2 की क्रैश लैंडिंग के चार साल बाद भेजा जा रहा है। चंद्रयान-3 मिशन सफल होता है, तो अंतरिक्ष के क्षेत्र में ये भारत की एक और बड़ी कामयाबी होगी। इस बीच जानना जरूरी है कि चंद्रयान-3 मिशन क्या है? इसका उद्देश्य क्या है? आखिर चंद्रमा पर खोज क्यों की जा रही है? चंद्र मिशनों से मनुष्यों को क्या हासिल होगा? इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरेगा और परीक्षण करेगा। इसमें एक प्रणोदन मॉड्यूल, एक लैंडर और एक रोवर होगा। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया है।
चंद्रयान-3 को मिलाकर अकेले भारत के ही तीन चंद्र मिशन हो जाएंगे। हालांकि, इसके अलावा भी दुनिया की तमाम राष्ट्रीय और निजी अंतरिक्ष एजेंसियां लूनर मिशन भेज चुकी हैं या भेजने की तैयारी में हैं। इन मिशनों को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है। यही कारण है कि आज भी चंद्रमा पर खोज एक चुनौती मानी जाती है। 1969 में नील आर्मस्ट्रांग अमेरिका के अपोलो 11 मिशन के दौरान चंद्रमा पर चलने वाले पहले व्यक्ति थे। इस ऐतिहासिक मिशन के दशकों बाद भी चंद्रमा का पता लगाना मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण हो गया। विशेषज्ञों का कहना है कि जब पृथ्वी और ब्रह्मांड के इतिहास का अध्ययन करने की बात आती है तो चंद्रमा एक खजाना है।
चंद्रमा पर मिशन भेजने के उद्देश्यों को लेकर नासा की वेबसाइट कहती है कि चंद्रमा पृथ्वी से बना है और यहां पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास के साक्ष्य मौजूद हैं। हालांकि, पृथ्वी पर ये साक्ष्य भूगर्भिक प्रक्रियाओं की वजह से मिट चुके हैं। नासा के मुताबिक, चंद्रमा वैज्ञानिकों को प्रारंभिक पृथ्वी के नए दृष्टिकोण प्रदान करेगा। पृथ्वी-चंद्रमा प्रणाली और सौर मंडल कैसे बने और विकसित हुए जैसे सवालों के जवाब वैज्ञानिकों मिल सकते हैं। इसके साथ ही पृथ्वी के इतिहास और संभवतः भविष्य को प्रभावित करने में क्षुद्रग्रह प्रभावों की भूमिका के बारे में भी पता लगाया जा सकता है।