यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अब एक देश एक चुनाव लागू हो पाएगा या नहीं! लोकसभा चुनाव-2024 में BJP के नेतृत्व में NDA ने बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है लेकिन बीजेपी को 240 सीटें ही आईं और वह अपने दम पर बहुमत से आंकड़े 272 से पीछे रह गई। इस कारण सरकार को अब सदन में संविधान संशोधन जैसे प्रस्ताव को पारित कराने के लिए विपक्ष को साथ लेना जरूरी होगा। दरअसल, संविधान संशोधन के लिए कुल संख्या का दो तिहाई बहुमत चाहिए जो बिना विपक्ष के सहयोग के संभव नहीं होगा। पिछले दो आम चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी की अगुआई में NDA की सरकार बनी थी तो दोनों ही बार बीजेपी की सीटें बहुमत के पार थीं। लेकिन इस बार हालात अलग हैं। अन्य बिल पास कराने के लिए भी बीजेपी को अपने तमाम सहयोगी पार्टियों को विश्वास में लेना होगा। ‘एक देश एक चुनाव’ पर अमल के लिए भी बीजेपी को अपने घटक दलों के साथ-साथ विपक्ष का भी सहयोग लेना होगा। ऐसे में एक देश एक चुनाव का रास्ता अब आसान नहीं होगा। लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल पीडीटी आचारी कहते हैं कि नंबर गेम का फर्क तो पड़ेगा। लोकसभा में बहुमत के लिए 272 का आंकड़ा है जबकि बीजेपी की अपनी सीटें 240 ही हैं। इस कारण बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार को कोई भी बड़ा फैसला लेने के समय तमाम सहयोगियों को भरोसे में लेना होगा। कुल सीटें 543 सीटों के लिहाज से दो तिहाई का आंकड़ा 362 है। सत्ताधारी दल को 362 या उससे ज्यादा सीटें आतीं तो संविधान संशोधन में आसानी होती और उसे लोकसभा में कोई बिल पास कराने के लिए दूसरी पार्टी का मान-मनौव्वल नहीं करना होता, क्योंकि संविधान संशोधन के लिए दोनों सदन में दो तिहाई बहुमत चाहिए। कई ऐसे संविधान संशोधन जो राज्यों से जुड़े हैं, वहां राज्य विधानसभा के आधे से ज्यादा सदस्यों की भी मंजूरी लेनी होती है। लोकसभा चुनाव में जो रिजल्ट आया है उससे साफ है कि कोई भी बिल सदन में आने पर विस्तार से डिबेट की संभावना बनेगी और संविधान संशोधन अगर जरूरी हुआ तो सत्ता पक्ष को विपक्ष का साथ लेना होगा। विपक्ष के बिना कोई भी संविधान संशोधन संभव नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट एमएल लाहौटी बताते हैं कि केंद्र सरकार की योजना ‘एक देश एक चुनाव’ के लिए संविधान संशोधन का रास्ता अब थोड़ा कठिन हो गया है। इसके लिए तमाम पार्टियों से आम राय बनानी होगी। इंडिया गठबंधन का सहयोग लिए बगैर दो तिहाई बहुमत नहीं मिल पाएगा और ऐसे में राह आसान नहीं होगी। दरअसल, 14 मार्च को एक देश एक चुनाव के परीक्षण के लिए बनाई गई हाई लेवल कमिटी ने देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की सिफारिश की थी। रिपोर्ट में कमिटी ने एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश करते हुए कुछ संविधान संशोधन की भी सिफारिश की थी। वहीं कॉमन सिविल कोड का मामला भी सरकार के अजेंडे में है। लॉ कमिशन ने पिछले साल इसके लिए केंद्र सरकार के कहने पर कंसल्टेशन पेपर जारी किया था। यह मुद्दा भी राजनीतिक तौर पर काफी संवेदनशील है। ऐसे में बीजेपी को अपने घटक दलों का इसके लिए साथ चाहिए होगा तभी इस ओर वह आगे बढ़ सकेगी।
नेता प्रतिपक्ष के लिए कितनी सीटों की जरूरत है, यह सवाल बेहद अहम रहा है। इस बार कांग्रेस को करीब 100 सीटें मिली हैं। कानूनी जानकार बताते हैं कि विपक्षी दलों में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को विपक्षी दल के नेता का दर्जा मिलता है। हालांकि चलन में है कि नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए सबसे बड़े विपक्षी दल को कम से कम कुल सीटों का 10% यानी 55 सीटें चाहिए। पिछले दो कार्यकाल में कांग्रेस का नंबर 55 से कम था और नेता प्रतिपक्ष का दर्जा उनके नेता को नहीं मिला था। उससे साफ है कि कोई भी बिल सदन में आने पर विस्तार से डिबेट की संभावना बनेगी और संविधान संशोधन अगर जरूरी हुआ तो सत्ता पक्ष को विपक्ष का साथ लेना होगा। विपक्ष के बिना कोई भी संविधान संशोधन संभव नहीं होगा।इस बार कांग्रेस 100 के आसपास पहुंच चुकी है। ऐसे में उनके नेता को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद भी मिलेगा और उसके बाद वह मजबूती से सदन में अपनी बात रख भी पाएंगे। CBI डायरेक्टर की नियुक्ति के लिए बनी कलीजियम हो या फिर चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयोग की नियुक्ति के लिए बनाई गई हाई पावर कमिटी, उनमें नेता प्रतिपक्ष भी एक सदस्य होते हैं।