यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पाकिस्तान आने वाले समय में भारत को न्योता देगा या नहीं! पाकिस्तान इस्लामाबाद में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए भारत को आमंत्रित करेगा। इस साल पाकिस्तान अक्टूबर में शंघाई सहयोग संगठन की मेजबानी करने जा रहा है। वह इस समय सम्मेलन की तैयारियों में जुटा हुआ है। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने एक निजी चैनल पर यह बयान उन अटकलों के बीच दिया, जिसमें यह कहा गया था कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी SCO बैठक में शामिल नहीं होंगे। रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ से जब पूछा गया कि क्या पाकिस्तान SCO शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री को आमंत्रित करेगा। इस पर आसिफ ने कहा, हां, निश्चित रूप से इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए। आसिफ ने यह भी कहा कि भारत ने जुलाई, 2023 में क्षेत्रीय शिखर सम्मेलन की मेजबानी करते समय तत्कालीन विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी को आमंत्रित किया था। आइए-समझते हैं कि क्या मोदी पाकिस्तान जा सकते हैं? शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा संगठन है। वैसे तो इसकी स्थापना साल 2001 में चीन और रूस ने की थी, जो अब दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन बन चुका है। भारत और पाकिस्तान 9 जून 2017 को अस्ताना में ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन में आधिकारिक तौर पर पूर्ण सदस्य के रूप में एससीओ में शामिल हो गए।
SCO में यूरेशिया के लगभग 80% क्षेत्र और इसके दायरे में दुनिया की 40% आबादी है। SCO के 9 सदस्य देश हैं- चीन, भारत, पाकिस्तान, कजाखस्तान, किर्गिजस्तान, ताजिकिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान। ईरान वर्ष 2023 में इसका सदस्य बना। अफगानिस्तान, बेलारूस और मंगोलिया पर्यवेक्षक का दर्जा रखते हैं। संगठन के वर्तमान और आरंभिक संवाद भागीदारों में अजरबैजान, आर्मेनिया, मिस्र, कतर, तुर्किए, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका शामिल हैं।
SCO का मकसद सदस्य देशों के बीच विश्वास और पड़ोसी व्यवहार बढ़ाना है। तकनीकी, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तरों पर सहयोग बढ़ाना है। परिवहन, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा, ऊर्जा और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना है। यूरेशियाई क्षेत्र में सुरक्षा, स्थिरता और शांति के स्तर को बढ़ाया जाएगा। एक लोकतांत्रिक और नियम आधारित वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक वातावरण के निर्माण को बढ़ावा देना इसका अन्य अहम मकसद है। एससीओ का मुख्य उद्देश्य सदस्य देशों बीच शांति, सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखना है।
पूरी दुनिया की जीडीपी में एससीओ देशों की 20 फीसदी हिस्सेदारी है। दुनिया भर के तेल रिजर्व का 20 फीसदी हिस्सा इन्हीं देशों में है। एससीओ का कहना है कि इसका एक अहम मकसद ‘तीन बुराइयों’ यानी आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद से लड़ना है। ब्रिटेन स्थित विदेश मामलों के थिंक टैंक चैथम हाउस के एनेट बोर के अनुसार, संगठन का जो मकसद है, उसे पूरा करने में चीन ही आड़े आ रहा है, क्योंकि उसके उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र शिनजियांग में अलगाववाद की आवाजें उठ रही हैं। चीन के इस इलाके में उइघुर मुस्लिम राष्ट्रवादी, स्वतंत्र शिनजियांग या पूर्वी तुर्किस्तान की संयुक्त राष्ट्र में मांग कर चुके हैं। चीन इसके लिए उठ खड़े हुए उग्रवादियों को दबाना चाहता है। ये मुस्लिम और नस्ली तौर पर तुर्की मूल के लोग हैं।
रूस भी इस्लामिक स्टेट-खोरासन और हिज्ब उत-तहरीर जैसे इस्लामी आतंकी संगठनों को रोकने में दिलचस्पी रखता है। रूस चाहता है कि ये संगठन उसकी जमीन पर हमला न करें। एससीओ ने इन चुनौतियों से निपटने के लिए ‘क्षेत्रीय आतंक विरोधी ढांचा’ तैयार किया है। इसके तहत आतंक विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान होता है। चीन एससीओ को मध्य एशिया में अपने व्यापारिक संपर्क को बढ़ावा देने के जरिये के तौर पर भी देखता है। चीन, कजाखस्तान जैसे देशों से ज्यादा से ज्यादा तेल और गैस खरीदना चाहता है। उसने यहां से तेल और प्राकृतिक गैस की सप्लाई हासिल करने में सफलता हासिल की है। चीन पाकिस्तान से होकर जाने वाले अपने ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ के जरिये पश्चिमी देशों के साथ जो संपर्क कायम करना चाहता है, वे इन मध्य एशियाई देशों से ही होकर गुजरेंगे। चीन अपने निर्यात के लिए रूसी रेलवे पर निर्भर रहा है। ऐसे में वो पूरे मध्य एशिया में ऐसा रेल नेटवर्क बनाना चाहता है जो ईरान में समुद्र तक इसके सामान को पहुंचाने में मदद करे।
राजीव रंजन गिरि के अनुसार, भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध उतार चढ़ाव भरे रहे हैं। फरवरी 2019 में पुलवामा में हमले के बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों में आई तल्खी भारत के जम्मू-कश्मीर का विशेष संवैधानिक दर्जा समाप्त करने के बाद और बढ़ गई है। पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों से कश्मीर का मुद्दा उठाता रहा है जबकि भारत इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दे के बजाए दो देशों के बीच का द्विपक्षीय मुद्दा मानता है। अगर मोदी पाकिस्तान जाते हैं तो बातचीत के मौके जरूर खुलेंगे।