यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अब बांग्लादेश में पाकिस्तानी परमाणु हथियार आएगा या नहीं! बांग्लादेश में चल रही उथल-पुथल ने पाकिस्तान के परमाणु बम को चर्चा में ला दिया है। हाल ही में ढाका यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने बांग्लादेश को परमाणु संपन्न बनाने की बात कही है। प्रोफेसर शाहिदुज्जमां ने इसके लिए पाकिस्तान से परमाणु संधि करने की बात कही है। प्रोफेसर ने पाकिस्तान को बांग्लादेश को सबसे भरोसेमंद सहयोगी बताया। इस बयान ने इन चर्चाओं को हवा देनी शुरू कर दी है कि क्या बांग्लादेश परमाणु शक्ति बनने की राह पर चल रहा है? साथ ही एक सवाल सवाल भी उठता है कि जिस बांग्लादेश की जमीन पर पाकिस्तान को शर्मनाक हार मिली, क्या आज उसी बांग्लादेश को पाकिस्तान परमाणु संपन्न बनाने में मदद करेगा। लेकिन आज बात पाकिस्तान-बांग्लादेश संबधों की नहीं, बल्कि पाकिस्तान के परमाणु बम की करेंगे कि इस्लामाबाद ने किस तरह से एटमी हथियार हासिल किया और बांग्लादेश के निर्माण ने इसमें क्या भूमिका अदा की। व्यापक रूप से यह माना जाता है कि 1971 की अपमानजनक हार ही मुख्य कारण था जिसके कारण पाकिस्तान ने परमाणु हथियार बनाने के फैसला किया। ‘अब दोबारा ऐसा अपमान नहीं सहना पड़ेगा’- पाकिस्तान के परमाणु बम को हासिल करने के पीछे ये मुख्य भावना बन गई। लेकिन बस इतनी ही वजह नहीं थी। पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने और जनवरी 1972 में उन्होंने मुल्तान में पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग के वैज्ञानिकों की बैठक बुलाई। साफ है कि भु्ट्टो ने ये कदम पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश में हार के बाद उठाया था।बांग्लादेश की हार को मुख्य वजह बताते समय हमें जुल्फिकार अली भुट्टो का नाम नहीं भूल जाना चाहिए। भुट्टो ही वो शख्स थे, जिन्होंने भारत से नफरत में पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की नींव रखी थी। भुट्टो ने पाकिस्तान के लिए परमाणु हथियार के विचार का नेतृत्व किया।
बांग्लादेश युद्ध से कई साल पहले भुट्टो परमाणु हथियार के सबसे बड़े प्रचारक के रूप में उभरे थे। भुट्टो उन लोगों में थे जो भारत में बम बनाने की बहस पर करीब से नजर रख रहे थे। पाकिस्तान के परमाणु बम की कोई भी चर्चा भुट्टो के उस बयान के बिना पूरी नहीं हो सकती, जो उन्होंने 1965 में मैनचेस्टर गार्डियन के साथ साक्षात्कार के दौरान दिया था।बांग्लादेश के खिलाफ सैन्य हार ने निश्चित तौर पर पाकिस्तान में परमाणु हथियार कार्यक्रम शुरू किया, लेकिन इसके लिए भुट्टो की जिद ज्यादा जिम्मेदार थी। बांग्लादेश के निर्माण ने भुट्टो को सत्ता में आने का मौका दिया और इसने पाकिस्तान के परमाणु बम की राह शुरू की। भु्ट्टो ने कहा था, ‘अगर भारत परमाणु बम बनाता है तो भले ही हमें घास और पत्ते खाने पड़ें,भूखा रहना पड़े। हम भी परमाणु बन बनाएंगा। हमारे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचेगा। परमाणु बम का जवाब सिर्फ परमाणु बम ही हो सकता है।’
हालांकि, भुट्टो ने भारत के बम बनाने का इंतजार नहीं किया। इसके पहले ही उन्होंने परमाणु बम पर राष्ट्रपति अयूब खान को मनाने के लिए परमाणु वैज्ञानिक मुनीर अहमद खान को भेजा। अयूब को मनाने में मुनीर नाकाम रहे। भुट्टो की योजना भले फेल हुई लेकिन उनका संकल्प कमजोर नहीं पड़ा था। 20 दिसम्बर 1971 को भुट्टो पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने और जनवरी 1972 में उन्होंने मुल्तान में पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग के वैज्ञानिकों की बैठक बुलाई। साफ है कि भु्ट्टो ने ये कदम पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश में हार के बाद उठाया था। लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि अगर भुट्टो 1971 से पहले सत्ता में आ गए होते तो शर्मनाक हार से पहले ही हथियार कार्यक्रम शुरू कर देते।
बांग्लादेश के खिलाफ सैन्य हार ने निश्चित तौर पर पाकिस्तान में परमाणु हथियार कार्यक्रम शुरू किया, लेकिन इसके लिए भुट्टो की जिद ज्यादा जिम्मेदार थी। बांग्लादेश के निर्माण ने भुट्टो को सत्ता में आने का मौका दिया और इसने पाकिस्तान के परमाणु बम की राह शुरू की। बता दें कि व्यापक रूप से यह माना जाता है कि 1971 की अपमानजनक हार ही मुख्य कारण था जिसके कारण पाकिस्तान ने परमाणु हथियार बनाने के फैसला किया। ‘अब दोबारा ऐसा अपमान नहीं सहना पड़ेगा’- पाकिस्तान के परमाणु बम को हासिल करने के पीछे ये मुख्य भावना बन गई। लेकिन बस इतनी ही वजह नहीं थी। बांग्लादेश की शर्मनाक हार के 27 साल बाद 1998 में पाकिस्तान ने पांच परमाणु परीक्षण किए और यह परमाणु हथियार वाले चुनिंदा देशों की लिस्ट में शामिल हो गया।