क्या इस बार राजनेताओं को अपने भाषण पर नियंत्रण रखना होगा?

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इस बार राजनेताओं को अपने भाषण पर नियंत्रण रखना ही होगा! अगर कोई चीज दिखने में बत्तख जैसी लगती है, तैरती भी बत्तख की तरह है और आवाज भी बत्तख की निकालती है, तो फिर भी ये हो सकता है कि वो असल में बत्तख ना हो! यही बात नफरती भाषणों पर भी लागू होती है। चुनावों के दौरान नेता अक्सर भड़काऊ और गलत मतलब वाली बातें कर देते हैं। ये बातें सुनकर देश के लोग थोड़ा परेशान तो होते हैं, लेकिन ज्यादातर मामलों में नेता बाद में सफाई दे देते हैं कि उनके शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया या फिर गलत समझा गया।’ बाद में माफी मांगने से कुछ नहीं होता। एक बार जो बात कह दी वो वापस नहीं ली जा सकती। अहम बात ये है कि हेट स्पीच किसी के दिमाग में एक विचार को जन्म दे सकती है। चुनाव आयोग ने एक सख्त कदम उठाते हुए, गलती करने वालों के लिए माफी मांगने का रास्ता बंद कर दिया है। चुनाव आयोग ने लोक प्रतिनिधित्व कानून की धारा 77 का इस्तेमाल किया है और पार्टी अध्यक्षों को जिम्मेदारी दी है कि वे अपने पार्टी के स्टार प्रचारकों को नियंत्रण में रखें। आयोग ने यह भी कहा है कि राजनीतिक पार्टी के उच्च पदों पर बैठे लोगों के चुनाव प्रचारों का जनता पर ज्यादा गंभीर असर पड़ता है। अब हम इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं कि जेपी नड्डा, नरेंद्र मोदी के साथ बैठेंगे और कहेंगे ‘बॉस, थोड़ा संभाल के।’ उसी तरह मल्लिकार्जुन खरगे भी राहुल गांधी से बात करेंगे। शायद ये उन्हें याद दिलाने के लिए होगा कि राहुल गांधी वाकई में पार्टी के ‘स्टार प्रचारक’ हैं। हो सकता है कि रॉबर्ट वाड्रा भी खरगे के दफ्तर के बाहर इंतजार कर रहे हों, ये सोचकर कि वो भी ‘स्टार प्रचारक’ हैं। पार्टी अध्यक्षों को उनकी पार्टी के अनाम ‘स्टार प्रचारकों’ को नियंत्रित करने के लिए कहकर, चुनाव आयोग ने सभी उच्च पदों पर बैठे लोगों को जिम्मेदार ठहराया है। यह एक चालाक तरीका है।

जब प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले हफ्ते राजस्थान में एक रैली में कांग्रेस के सत्ता में आने पर देश के संसाधनों को ‘घुसपैठियों’ और ‘अधिक बच्चे पैदा करने वालों’ में बांटने के बारे में बात की, तो वे मेरे स्थानीय नेपाली मोमो मैन रंजीत या मेरे दिवंगत परदादा-परदादी के बारे में बात नहीं कर रहे थे, जिन्होंने 11 बच्चों को जन्म दिया था, जो कांग्रेस के शासन में दूसरों की कीमत पर अमीर बनने की संभावना रखते हैं। हालांकि, ‘एम’ शब्द का सीधा उल्लेख न करके वो अपने भाव जनता तक पहुंचा रहे थे। यह उनकी मंशा को साफ जाहिर कर रहा था। शायद तभी चुनाव आयोग के पास इसे स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। राहुल गांधी भी जांच के दायरे में थे। उनकी मौखिक चूक में भारत में गरीबी बढ़ने के बारे में झूठे दावे करना और ‘उत्तर-दक्षिण’ विभाजन को बढ़ावा देना शामिल था।

चुनाव प्रचार के गलत तरीकों की बात करें तो, ऐसा लगता है कि हेट स्पीच सबसे बड़ी समस्या नहीं है। इसकी परिभाषा स्पष्ट नहीं है और इसे बदला जा सकता है, लेकिन आम तौर पर इसका मतलब किसी समूह या समुदाय के प्रति नफरत की भावना पैदा करने वाला भाषण होता है। चुनाव आयोग ने कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला पर भाजपा सांसद हेमा मालिनी के बारे में अशोभनीय टिप्पणियों के लिए 48 घंटे का प्रचार प्रतिबंध लगाया था।आयोग ने उनके बयान को महिलाओं का अपमान माना और इस वजह से प्रतिबंध लगाया, न कि नफरती भाषण की कैटेगिरी में बैन लगाया। तो क्या ये वाकई नफरती भाषण नहीं था?

पिछले साल, तमिलनाडु के डीएमके मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म की तुलना डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों से की थी, जिन्हें खत्म करने की जरूरत है। यह सीधी और स्पष्ट रूप से हेट स्पीच का एकदम साफ उदाहरण था। पिछले महीने, कर्नाटक में एक दुकानदार की हनुमान चालीसा बजाने की वजह से पिटाई की खबरों के बाद, बीजेपी मंत्री शोभा करंदलाजे ने मीडिया से कहा, ‘तमिलनाडु के लोग यहां (कर्नाटक) आते हैं, यहीं ट्रेनिंग लेते हैं और यहीं बम रखते हैं।’ बेंगलुरु में 1 मार्च को हुए आईईडी धमाके का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘दिल्ली से एक आदमी आकर विधान सौधा में पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाता है। केरल से एक आदमी आकर कॉलेज स्टूडेंट्स पर तेजाब फेंकता है। ये सरकार अल्पसंख्यकों की रक्षा कर रही है और हिंदू विरोधी है।’ ये सब नफरत फैलाने वाली बातें हैं। इस तरह के बयानों को राजनीति से जोड़ने पर मामला गंभीर होता है।

1984 में, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए सिख विरोधी दंगों के बाद एक चुनावी रैली में एक प्रधानमंत्री ने लोगों से कहा, ‘जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है, तो जमीन हिल जाती है।’ इस बात को आमतौर पर और सही मायने में, दंगों को सही ठहराने के रूप में लिया गया था। लेकिन यह वाक्य दो अर्थों वाला था। ‘धरती थोड़ी हिलती है’ को शायद दुख जताने के तौर पर भी माना जा सकता था। लेकिन चुनाव आयोग ने राजीव गांधी को या किसी भी बड़े नेता को हेट स्पीच के लिए कोई सजा नहीं दी। गौर करने वाली बात ये है कि अब चुनाव आयोग बड़े नेताओं के प्रभाव में नहीं आता है, जिसे अच्छी बात माना जाना चाहिए।