क्या NDA से जीत पाएगा विपक्ष का INDIA?

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यह सवाल उठना लाजमी है कि INDIA यानी इंडियन नेशनल डेवेलपमेंटल इंक्लूसिव एलायंस, NDA यानी नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस से जीत पाएगा या नहीं! लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्षी पार्टियां पूरी प्लानिंग के साथ मैदान में उतरने वाली हैं। उसी कड़ी में मंगलवार को ​बेंगलुरु में 26 विपक्षी पार्टियों की मीटिंग के दौरान विपक्षी पार्टियों ने अपने गठबंधन का ऐलान किया है। विपक्षी दलों ने अपने गठबंधन का नाम INDIA तय किया है, जिसका फुल फॉर्म ‘इंडियन नेशनल डेवेलपमेंटल इंक्लूसिव एलायंस’ है। देश की राजनीति में पार्टियों का गठबंधन कोई नई बात नहीं हैं। 80 के दशक के बाद भारतीय राजनीति में गठबंधन राजनीति का दबदबा रहा। केंद्र में मिली-जुली यानी खिचड़ी सरकारों का एक लंबा दौर चला। आइए जानते हैं देश की राष्ट्रीय राजनीति में कब-कब राजनीतिक पार्टियों के बीच गठबंधन हुए हैं। साल 2004 में लोकसभा का चुनाव हुआ था। इस चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं प्राप्त हुआ था। उस समय कांग्रेस ने United Progressive Alliance का गठन किया था। इसमें जो दल एनडीए में शामिल नहीं थे वह यूपीए में शामिल हो गए और नई सरकार का गठन किया। यूपीए का नेतृत्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा किया जाता है।

1998 में बीजेपी फिर सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी और इस बार वह गठबंधन सरकार बनाने और चलाने में कामयाब रही। 1996 में 13 दिन की सरकार चलाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी फिर प्रधानमंत्री बने। उन्हें समता पार्टी, एआईएडीएमके, शिवसेना, अकाली दल जैसी तमाम पार्टियों का समर्थन हासिल था। इस गठबंधन का नाम पड़ा नैशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन। समता पार्टी के जॉर्ज फर्नांडीज इस गठबंधन के शिल्पी थे। 2008 तक वह एनडीए के संयोजक रहे और तब खराब स्वास्थ्य की वजह से इस पद से इस्तीफा दिया था।

1996 के लोकसभा चुनाव में किसी पार्टी या चुनाव पूर्व गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। बीजेपी सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी। तब जनता दल, समाजवादी पार्टी, डीएमके, टीडीपी, असम गण परिषद, नैशनल कॉन्फ्रेंस समेत तमाम छोटे-बड़े दलों ने सरकार बनाने के लिए यूनाइटेड फ्रंट नाम से गठबंधन बनाया। टीडीपी मुखिया चन्द्रबाबू नायडू इस गठबंधन के संयोजक बने। जनता दल के एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व में केंद्र में संयुक्त मोर्चा की सरकार बनी। खास बात ये थी कि उसे कांग्रेस का बाहर से समर्थन हासिल था। अप्रैल 1997 में कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से देवगौड़ा सरकार गिर गई। लेकिन उसके बाद जनता दल के ही इंद्रकुमार गुजराल प्रधानमंत्री बने और कांग्रेस के ही बाहरी समर्थन से। मार्च 1998 में कांग्रेस ने एक बार फिर समर्थन वापस ले लिया और गुजराल सरकार भी गिर गई।

1989 में कांग्रेस को मात देने के लिए जनता दल की अगुआई में राष्ट्रीय मोर्चा का गठन हुआ। इसमें टीडीपी, डीएमके, असम गण परिषद जैसे दल शामिल थे। 1989 में राष्ट्रीय मोर्चा केंद्र में सरकार बनाने में सफल रही। उसे लेफ्ट फ्रंट का बाहर से समर्थन हासिल था। मोर्चा के संयोजक विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने। 1990 में आंतरिक कलह की वजह से वीपी सिंह ने पीएम पद से इस्तीफा दे दिया और चंद्रशेखर ने पीएम के साथ-साथ राष्ट्रीय मोर्चा के संयोजक के तौर पर भी उनकी जगह ली। हालांकि, उनकी सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चली। 1996 के लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय मोर्चा अलग-थलग हो गया।

बता दे कि वैसे तो विपक्षी एकजुटता की काट के लिए बीजेपी भी एनडीए का कुनबा बढ़ा रही है। मंगलवार को बेंगलुरु में विपक्ष के 26 दलों की जुटान हुई तो दिल्ली में एनडीए के बैनर तले 39 दलों की। लेकिन एनडीए और विपक्ष के I.N.D.I.A. में एक बड़ा फर्क है। एनडीए में ज्यादातर छोटे-छोटे दल हैं। दिल्ली में उसकी मीटिंग में जो 39 पार्टियां शामिल हुईं, उनमें से 25 तो ऐसी हैं जिनका लोकसभा में एक भी सांसद नहीं है। दूसरी ओर विपक्ष के I.N.D.I.A. में ज्यादातर बड़े क्षेत्रीय दल शामिल हैं। उन दलों के नेताओं में कुछ मुख्यमंत्री हैं तो कुछ पूर्व मुख्यमंत्री भी। हालांकि, बेंगलुरु में जुटे 26 विपक्षी दलों में से 10 ऐसे हैं जिनका लोकसभा में कोई सांसद नहीं है। विपक्ष के राष्ट्रीय महागठबंधन पर नजर डालने पर 2024 के लिए बीजेपी की राह बहुत मुश्किल दिखती है। कांग्रेस के साथ-साथ ममता बनर्जी, नीतीश, लालू, केजरीवाल, अखिलेश यादव, शरद पवार, उद्धव ठाकरे जैसे दिग्गज एकजुट हैं। हर सीट पर एक उम्मीदवार की रणनीति है तब तो 2024 मुट्ठी में होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है। कागजों में भले ही विपक्ष का गठबंधन काफी मजबूत दिख रहा है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। तो समझते हैं कि 2024 में एकजुट विपक्ष की राह क्यों नहीं है आसान।