यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या आने वाले विधानसभा चुनाव बीजेपी की चुनौती होंगे या नहीं! हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की तारीखों का ऐलान हो गया है। जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव होंगे और यहां सीटों की संख्या से लेकर जम्मू-कश्मीर का स्वरूप तक बदल चुका है। जहां हरियाणा में अभी बीजेपी सत्ता में है और बीजेपी के सामने यहां सत्ता बचाने की चुनौती है। वहीं जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने के बाद पहला विधानभा चुनाव हो रहा है। इसलिए यह बीजेपी का और भी बड़ा टेस्ट है। हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य की 5 सीटों पर ही जीत दर्ज की जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी सभी 10 सीटों पर जीती थी। लोकसभा चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस मजबूत हुई है और बीजेपी का वोट शेयर कम हुआ है। कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा इन दिनों हरियाणा में ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ पदयात्रा कर रहे हैं। कांग्रेस राज्य में बेरोजगारी और महंगाई का मुद्दा उठा रही है। बीजेपी ने भी अलग अलग समूहों के साथ मीटिंग शुरू की है। दिल्ली और पंजाब की सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी ने भी हरियाणा की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। राज्य में विधानसभा की कुल 90 सीटे हैं।
हरियाणा में 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 36.7 पर्सेंट वोट शेयर मिला था। तब बीजेपी 40 सीटें जीती थी और सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। हालांकि बीजेपी को बहुमत नहीं मिल पाया था। कांग्रेस को तब 28.2 पर्सेंट वोट मिला था और कांग्रेस ने 31 सीटें जीती थी। दुष्यंत चौटाला की जेजेपी को 10 सीटें मिली थी। फिर बीजेपी और जेजेपी ने निर्दलियों के साथ मिलकर सरकार बनाई। हरियाणा में बीजेपी को 2014 में पहली बार जीत मिली थी। तब बीजेपी ने 47 सीटें जीती और बहुमत की सरकार बनाई। तब आईएनएलडी को 19 सीटें मिली और कांग्रेस 15 सीटें जीतकर तीसरे नंबर पर रही। इससे पहले 2009 और 2005 में हरियाणा में कांग्रेस की सरकार थी। बीजेपी के लिए यहां सत्ता बचाने की चुनौती है।
यहां किसान और युवा बड़ा फैक्टर साबित होंगे। बड़ी संख्या में किसान तो यहां से हैं ही साथ ही बड़ी संख्या भी युवा भी फौज में जाते हैं। नए कृषि कानून (जिन्हें बाद में वापस ले लिया गया) को लेकर किसानों की नाराजगी की चर्चाएं अभी भी होती हैं। साथ ही सेना में भर्ती की नई स्कीम अग्निपथ को लेकर विपक्ष का रुख आक्रामक है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनाव के वक्त से इस मसले को उठा रहे हैं कि भर्ती की यह स्कीम युवाओं के खिलाफ हैं। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कारगिल विजय दिवस पर कारगिल वॉर मेमोरियल से जिस तरह इस स्कीम के पक्ष में बात की और विपक्ष को जमकर घेरा उससे यह संदेश तो साफ ही है कि इस स्कीम में फिलहाल कोई बदलाव नहीं होने वाला है। ऐसे में विधानसभा चुनाव में इसका कुछ असर तो होगा ही।
जम्मू कश्मीर में आखिरी बार 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे तब बीजेपी को 23 पर्सेंट वोट मिले थे और 25 सीटों पर बीजेपी जीती थी। पीडीपी ने 28 सीटें जीती थी। नैशनल कॉन्फ्रेंस को 15 और कांग्रेस को 12 सीटों पर जीत मिली थी। किसी को बहुमत नहीं मिला था और फिर पीडीपी और बीजेपी ने गठबंधन में सरकार बनाई थी। जून 2018 में बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और यह गठबंधन टूट गया और जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लग गया। 5 अगस्त 2019 को विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया। मई 2022 के परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सीटों की संख्या 90 हो गई है। जम्मू में 43 और कश्मीर में 47 सीटें हैं।
2014 में 87 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए थे। तब जम्मू की 37, कश्मीर की 46 और लद्दाख की 6 सीटों पर चुनाव हुए थे। तब जहां कांग्रेस के बड़े नेता गुलाम नबी आजाद ने भी पार्टी के लिए मोर्चा संभाला था वहीं अब वह अपनी नई पार्टी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद बना चुके हैं। बीजेपी लगातार दावा कर रही है कि आर्टिकल 370 हटाने के बाद से जम्मू-कश्मीर में शांति है और आतंकवाद का सफाया हुआ है। लेकिन पिछले कुछ वक्त में जम्मू रीजन में आतंक की वारदातों में बढ़ोतरी हुई है और कई सैनिक शहीद हो चुके हैं।
इसके बाद से ही बीजेपी और सहयोगी दलों में चिंता और बढ़ गई। फिर महाराष्ट्र सरकार ने जून में अपना बजट पेश करते हुए ‘माझी लड़की बहिन’ योजना का ऐलान किया। इसके तहत सरकार ने हर महीने पात्र महिलाओं को 1500 रुपये हर महीने देने का ऐलान किया था। सरकार ने कुछ वक्त पहले ही 80 लाख महिलाओं को पहली किश्त में 3000 हजार रुपये की राशि उनके खातों के ट्रांसफर की है। यह राशि जुलाई और अगस्त महीने की है।