इस बार भाजपा के एनडीए और विपक्ष के इंडिया की जोरदार लड़ाई होने वाली है! 2024 लोकसभा चुनाव में सियासी दलों के बीच जंग नहीं होगी, बल्कि ये राजनीतिक सिद्धांतों की लड़ाई होगी। इसके साथ ही 18वीं लोकसभा में कई और चौंकाने वाली बातें देखने को मिल सकती हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी को अभी राष्ट्रीय स्तर पर किसी विरोध का सामना नहीं करना पड़ रहा। ऐसे में स्पष्ट रूप से अनुमान लगा सकते हैं कि एनडीए अपनी संसदीय सर्वोच्चता बरकरार रखेगी और संभवतः इसका विस्तार भी करेगी। बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को लोकसभा की कुल 543 सीटों में 358 से 398 सीटें मिलने की उम्मीद है। अभी इनके पास 351 सीटें हैं। ताजा हालात में, उनके पास मौजूदा बहुमत 65 फीसदी से बढ़कर 66-73 फीसदी होगा। पिछले साल संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी को मिली बढ़त से ऐसे अनुमान लगाए जा रहे हैं। बीजेपी ने इन चुनावों में जहां एमपी की सत्ता बरकरार रखी तो वहीं राजस्थान और छत्तीसगढ़ को कांग्रेस से छीन लिया। इसी प्रदर्शन के बाद बीजेपी नेतृत्व को ऐसा अनुमान है कि संसदीय चुनाव में पार्टी की सीटें बढ़ सकती हैं।
यही वजह है कि इन चुनावों के दौरान दिलचस्पी इस बात पर कम होगी कि कौन जीतता है। चुनाव विश्लेषक पहले ही ये समझ चुके हैं। उन्हें बस राजनीतिक तर्कों में ज्यादा दिलचस्पी होगी जिन्हें हम एक्शन के तौर पर देखेंगे। इस चुनाव में संबंधों की राजनीति और विचारधारा की पॉलिटिक्स के बीच संघर्ष देखने को मिलेगा। सियासी विश्लेषकों ने लंबे समय से देखा है और शिकायत की है कि भारतीय राजनीति अधिकांश विचारधाराओं के बजाय सामाजिक संबंधों के इर्द-गिर्द घूमती है। सियासी पार्टियों का फोकस सामान्य सिद्धांतों से ज्यादा विशेष ग्रुप्स यानी जातियों, वर्गों, ‘वोट बैंकों’ को टारगेट करने पर रहता है। भारतीय राजनीति में, पार्टियां अक्सर जाति या वर्ग के आधार पर विशिष्ट समूहों को टारगेट करती हैं। ऐसे में पारंपरिक रूप से विचारधाराओं की तुलना में सामाजिक संबंधों पर जोर दिया गया है।
पार्टियां सामूहिकता के बजाय गुरु पंथ से बंधी मिलती नजर आती हैं, ये चुनाव लोकप्रियता की लड़ाई है। ‘मोदी मैजिक’ पर निर्भर नजर आने वाली बीजेपी भी एक व्यापक सभ्यतागत मंच को बढ़ावा देने पर काम कर रही है, जिसके संदेश राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गूंजते हैं। अपना जादू चलाते हुए पीएम मोदी ने एक विशाल विचारधारा तैयार की है। उन्होंने भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया में भी अपने संदेश को पहुंचाने के लिए एक सभ्यतागत मंच बनाने के लिए भी कड़ी मेहनत की है। भविष्य की ओर अग्रसर, अंतरिक्ष से जुड़ा भारत, जो अपनी प्राचीन जड़ों के भी संपर्क में है। कम से कम भारत के अंदर अब ये एक बड़ा ब्रांड बन गया है।
विदेशी अभी भी यह जानने की कोशिश कर रहे कि ‘भारत’ का जिक्र कैसे किया जाए। भारत की सड़कें विश्व स्तर की दिखाई देने लगी हैं। चंद्रमा पर उतरने से लेकर दक्षिण एशिया के पहले जी-20 शिखर सम्मेलन तक सब जगह इसकी वैश्विक चर्चा हो रही। इसमें खास बात है कि अर्थव्यवस्था में भारत ने ब्रिटेन का पांचवां स्थान तक छीन लिया। वाराणसी में दुनिया का सबसे बड़ा नया ध्यान केंद्र भी है। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड योग सेशन गुजरात में हुआ जिसमें लगभग डेढ़ लाख लोगों ने एक साथ प्रदर्शन किया। अयोध्या में 2 मिलियन से अधिक दीये जलाकर एक और गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया गया।
हाल ही में भारतीय शहरों में किए गए एक सर्वेक्षण में, 51 फीसदी ने अयोध्या में नए राम मंदिर का समर्थन किया। 49 फीसदी ने इसे चुनावी दांव माना। पिछले साल पहली बार, उत्तर भारत में कामकाजी वर्ग के हिंदुओं को अयोध्या मंदिर का वर्णन करते हुए सुना गया। वे जो चाहते हैं और भारत को जो चाहिए उससे ध्यान भटकाने वाला है। यूपी, जो लोकसभा में 80 सांसद भेजता है, एक बेहद प्रतिस्पर्धी बहुदलीय राज्य हुआ करता था। यहां तीन या चार पार्टियां दशकों से राजनीतिक छलांग लगा रही थीं। 2022 में बीजेपी के जीतने से पहले दशकों तक किसी भी पार्टी ने राज्य विधानसभा का चुनाव दोबारा नहीं जीता। यहां बीजेपी ने क्षेत्रीय दलों को दरकिनार करके एक प्रमुख ताकत के रूप में उभरी, विचारधारा का महत्व बढ़ रहा। यहां राजनीतिक रूप से की गई सेटिंग के जरिए यादव या दलित जैसे विशेष ग्रुप्स को टारगेट करके संबंधों की राजनीति का इस्तेमाल कर कोई भी 30 से 35 फीसदी वोटों के साथ जीत दर्ज कर सकता है।
उत्तर भारत में, INDIA गठबंधन के सदस्य आपस में चुपचाप बात कर रहे हैं, कोई स्पष्ट सार्वजनिक संदेश जारी नहीं कर रहे हैं। बीजेपी अपने ही अंदाज में ‘भारत’ की नई विचारधारा पेश कर रही है। अपने दम पर, पार्टी के पास वास्तव में संसद के अंदर 55 फीसदी का बड़ा बहुमत है। इसे बरकरार रखने के लिए हिंदी पट्टी में अपना परचम लहराना होगा और ऐसा होगा। राजनीति की यह विचारधारा, राष्ट्रीय आदर्शों और वैश्विक सिद्धांतों के साथ भारत के पुराने व्यक्तिवाद, पितृसत्तात्मकता और जातिवाद के वोट बैंक की तुलना में अधिक परिपक्व और ‘आधुनिक’ दिखाई दे सकती है। हालांकि, यह वास्तव में ऐसी राजनीति है, जो स्थानीय संबंधों, मामलों और समूहों पर केंद्रित है। समग्रीकरण, सिद्धांतवादी विचारधारा की ओर बढ़ने से यह खतरा है।