आपने बबूल को अपने घरों के आसपास सूखी मिट्टी में उगते हुए जरूर देखा होगा! बोया पेड़ बबूल का आम कहां से खाय। आपने यह कहावत जरूर सुनी होगी। जी हां, इस कहावत में इसी बबूल का जिक्र किया गया है। जो लोग शहरों में रहते हैं वे भी बबूल के पेड़ को जरूर देखे होंगे या इसके बारे में जानते होंगे, लेकिन अगर गांवों की बात की जाय तो लगभग हर व्यक्ति बबूल के पेड़ से परिचित होता है। कई लोग बबूल से ब्रुश किया करते हैं तो अनेक व्यक्ति बबूल की लकड़ी को कई चीजों के लिए उपयोग में लाते हैं। बबूल का उपयोग केवल इतना ही नहीं है बल्कि बबूल के फायदे और भी हैं।
आयुर्वेद के अनुसार, बबूल एक बहुत ही उत्तम औषधि है। इसलिए अगर आप बीमारियों में बबूल का इस्तेमाल करते हैं निःसंदेह आपको बहुत फायदा मिल सकता है। आइए जानते हैं कि जिस पेड़ को आप लोग बहुत ही साधारण पेड़ समझते हैं उस बबूल से लाभ क्या-क्या मिल सकता है?
औषधि के रूप में बबूल का इस्तेमाल बहुत सालों से किया जा रहा है। इसकी पत्तियां बहुत छोटी होती हैं। इस पेड़ में कांटे होते हैं। गर्मी के मौसम में बबूल के पेड़ पर पीले रंग के गोलाकार गुच्छों में फूल खिलते हैं और ठंड के मौसम में फलियां आती हैं। बबूल की छाल और गोंद का व्यवसाय किया जाता है। इसकी निम्नलिखित प्रजातियां भी पाई जाती हैं जिनका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है।
यह बबूल की प्रजाति का और बबूल की तरह दिखने वाला पेड़ है। यह छोटा, वृक्ष होता है जिसमें कांटे होते हैं। इसकी छाल पतली तथा गहरे भूरे रंग के होते हैं तथा पुराने हो जाने पर काले रंग के हो जाते हैं। इसके पौधे से निर्यास निकलता है जिसका प्रयोग चिकित्सा के लिए किया जाता है।यह लम्बा, झाड़ीदार और कांटे वाला वृक्ष होता है। इसके कांटे लम्बे तथा तीखे हैं। इसके पत्ते बबूल के पत्तों जैसे लेकिन उससे कुछ बड़े और गहरे हरे रंग के होते है। इसके फूल पीले वर्ण के होते हैं। इसकी फलियां लम्बी होती हैं। फलियां कच्ची अवस्था में हरे रंग की, चपटी तथा मुड़ी हुई होती हैं।
अधिक पसीना आने की परेशानी में बबूल के पत्ते और बाल हरड़ को बराबर-बराबर मिलाकर महीन पीस लें। इस चूर्ण की पूरे बदन पर मालिश करें और कुछ समय नहा लें। नियमित रूप से यह प्रयोग कुछ दिन तक करने से पसीना आना बन्द हो जाता है।बबूल के पत्ते के पेस्ट का उबटन लगाने से पसीना आना बंद हो जाता है।
शरीर के किसी अंग में जलन हो रही हो तो बबूल की छाल के काढ़े में मिश्री मिलाकर पिलाने से जलन में लाभ होता है।कमर दर्द में फायदा लेने के लिए बबूल की छाल, फली और गोंद को बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। एक चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन करने से कमर दर्द में आराम मिलेगा।दाद या खुजली को ठीक करने के लिए बबूल के फूलों को सिरके में पीस लें। इसे दाद या खुजली पर लगाएं। दाद और खुजली में लाभ होता है।
बबूल के पत्ते तथा तने की छाल का चूर्ण बनाएं। इसके 1-2 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।इसी तरह 1 ग्राम बबूल निर्यास चूर्ण का सेवन करने से खांसी ठीक होती है।बबूल की छाल का काढ़ा बनाएं। थोड़ा गाढ़ा काढ़ा को 1-2 मिली की मात्रा में मट्ठे के साथ पीएं। इससे पेट की बीमारी में लाभ होता है। इस दौरान सिर्फ मट्ठे का आहार लेना चाहिए।
पेट के दर्द से आराम पाने के लिए बबूल के फल को भून लें। इसका चूर्ण बनाकर, उबले हुए जल के साथ सेवन करने से पेट दर्द से राहत मिलती है।
बबूल के छाल से बने काढ़ा को छाछ के साथ पीने से और आहार में छाछ का सेवन करने से जलोदर रोग में लाभ होता है।
भूख की कमी या भोजन से अरुचि की समस्या को ठीक करने के लिए बबूल की कोमल फलियों का अचार लें। इसमें सेंधा नमक मिलाकर खिलाएं। इससे भूख बढ़ती है और जठराग्नि प्रदीप्त होती है।दांतों में दर्द होने पर बबूल की फली का छिलका लें। इसमें बादाम के छिलके की राख में नमक मिलाकर मंजन करें। इससे दांतों का दर्द ठीक होता है।
इसी तरह बबूल की कोमल टहनियों की दातून करने से भी दांत की बीमारी ठीक होती है। दांत मजबूत होते हैं।
दांत के दर्द की परेशानी में बबूल की छाल, पत्ते, फूल और फलियां लें। सभी को बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनाएं। इस चूर्ण का मंजन करने से दांतों के रोग दूर होते हैं।
इसके अलावा बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से दांत के दर्द से आराम मिलता है।
बबूल की छाल के काढ़े से गरारा करने से भी दांत के दर्द से राहत मिलती है।
बबूल के पत्ते और छाल एवं बड़ की छाल लें। सबको बराबर-बराबर मात्रा में मिलाकर एक गिलास पानी में भिगो दें। सुबह छान कर रख लें। इससे कुल्ला (गरारा) करने से गले के रोग मिट जाते हैं।इसके अलावा बबूल की छाल के काढ़े से गरारा करने से भी कंठ रोग में लाभ होता है।