अजमोदा के फायदे जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे!

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हमारे वैदिक शास्त्र में सभी अतिथियों को बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है! आधुनिक रसोईघरों में जिन नई सब्जियों ने आज अपना स्थान बनाया है, उसमें अजमोदा सबसे महत्त्वपूर्ण सब्जी है। अजमोदा को कई स्थानों पर सेलेरी या बोकचॉय के नाम से भी जाना जाता है। लंबे समय से तिब्बती और चीनी इलाकों में इसका प्रयोग सब्जी की भांति किया जाता रहा है। सब्जियों के अलावा अजमोदा का प्रयोग सूप और सलाद में अधिक किया जाता है, लेकिन आपको यह नहीं पता होगा कि इस अजमोदा का उपयोग करके आप अनेक बीमारियों से भी बच सकते हैं। आइये जानते हैं, अजमोदा के औषधीय गुणों और प्रयोग के बारे में ताकि आवश्यकता पड़ने पर इसके प्रयोग से आप स्वास्थ्य लाभ ले सकें।

अजमोदा का पौधा अजवायन के पौधे से मिलता-जुलता होता है, लेकिन इसका पौधा अजवायन के पौधे से थोड़ा बड़ा होता है और इसके दाने भी अजवायन से बड़े आकार के होते हैं। अजमोदा का प्रयोग करके एक आयुर्वेदिक औषधि भी बनाई जाती है, जिसमें वैसे तो ढेर सारी जड़ी-बूटियाँ मिली होती हैं। इसे ही अजमोदादि चूर्ण ही जाता है। लगभग सभी प्राचीन एवं आधुनिक आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अजमोदा का वर्णन पाया जाता है। यूनानियों को अजमोदा का ज्ञान भारतीयों से ही हुआ था।

अजमोदा ढेर सारे पत्तों और सफेद फूलों वाली द्विवार्षिक पौधा है। इसके चमकीले हरे पत्ते बिखरे तथा सिकुडे हुए होते हैं। अजमोदा के दो प्रमुख प्रकार हैं। एक जो पत्तों के लिए बढ़ाई जाती हैं और दूसरी जो शलजम जैसी जडों के लिए बढ़ाई जाती है। इसके फूलने वाला डंठल दूसरे साल में 100 से.मी. तक लंबे हो जाते हैं।

इसके फूल पीले या पीली आभा लिए हरे रंग के होते हैं। पत्ते और बीज मसाले के रूप में प्रयुक्त होते हैं। इसमें एक उड़नशील तेल होता है जिसके कारण इसकी अपनी एक विशेष एवं मसालेदार सुगन्ध होती है।

अजमोदा का प्रयोग हिचकी, उल्टी, मलाशय यानी गुदा के दर्द, खांसी, बवासीर तथा पथरी आदि रोगों में लाभकारी है। पाचनसंस्थान के सभी अंगों पर इसका प्रभाव होता है और इस कारण पेट के रोगों को दूर करने वाली औषधियों में इसे मुख्य स्थान प्राप्त है। अजमोदा के फल का चूर्ण या जड़ के काढ़े का सेवन करने से संधिवात, आमवात जैसे जोड़ों के दर्द वाले सभी रोग, गाउट यानी गठिया, हड्डी की कमजोरी के कारण होने वाले जोड़ो के दर्द, खाँसी, पित्त की थैली की पथरी तथा किडनी यानी गुर्दे की पथरी में बहुत लाभ होता है।

अजमोदा के बीज उत्तेजक, हृदय को बल प्रदान करने वाले,मासिक धर्म को नियमित करने वाले तथा पीब यानी पस निरोधक होते हैं। अजमोदा के बीज का तेल नितम्ब के दर्द को ठीक करता है, जलन समाप्त करता है और हृदय तथा नस-नाड़ियों को सक्रिय करने वाला होता है। अजमोदा की जड़ में भी यही गुण होते हैं।

अजमोदा को आग पर हल्का भूनकर पीस लें और पाउडर बना लें। इस पाउडर को हल्के-हल्के मसूढ़ों व दांतों पर मलने से दाँत दर्द व मुँह के अन्य रोगों में तुरन्त लाभ होता है।गले का बैठना यानी बोलने में गले में दर्द होना, बहुत प्रयास करने पर भी गले से आवाज का नहीं निकलना आदि की समस्या को स्वरभेद कहा जाता है। एसिडिटी तथा गैस के कारण गला बैठने पर यवक्षार तथा अजमोदा के काढ़े को घी में पकाकर सेवन करें। इससे गले का संक्रमण ठीक होता है।

2-3 ग्राम अजमोदा को पानी में उबाल लें। इसमें सेंधा नमक डालकर मुंह में देर तक रख कर गरारा यानी कुल्ला (गंडूष) करें। इससे स्वरभेद आदि कण्ठ-विकारों में लाभ होता है।

पिप्पली, अजमोदा आदि भूख बढ़ाने वाले कसैली औषधियों को मिला कर काढ़ा बना लें। काढ़े को पीना संभव न हो तो इनका चूर्ण यानी पाउडर बना लें। काढ़े या चूर्ण का सेवन करने से भूख खुल कर लगने लगती है।

अजमोदा के प्रयोग से पेट में बनी गैस निकल जाती है और इसके कारण होने वाले दर्द आदि समस्याओं में आराम मिलता है। सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली तथा अजमोदा आदि द्रव्यों को मिला कर बनाए गए हिंग्वाष्टक चूर्ण का (2-4 ग्राम) सेवन करने से  गैस से पेट फूलने की समस्या में लाभ होता है।

2-4 ग्राम अजमोदा के चूर्ण को 10 ग्राम गुड़ के साथ मिला लें। इसे गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से अफारा यानी गैस से पेट का फूलना ठीक होता है।कई बार कुछेक कसैली तथा कड़वी दवाओं के सेवन से रोगी को उल्टी हो जाती है, जिससे उन औषधियों का लाभ नहीं हो पाता। ऐसी औषधियों के साथ अजमोदा के 2-5 ग्राम चूर्ण का सेवन करने से उल्टी की आशंका नहीं रहती है। 2-5 ग्राम अजमोद एवं 2-3 लौंग की कली को पीस कर 1 चम्मच मधु के साथ चाटने से उलटी बंद होती है।