यह बात तो बिल्कुल सच है कि स्मोकिंग से प्रेगनेंसी में दिक्कतें आती है! आज भारत दुनिया का दूसरा ऐसा देश है, जहां सबसे ज्यादा धूम्रपान करने वाले लोग हैं। उसमें से एक बड़ा हिस्सा महिलाओं का है। सिगरेट, बीड़ी, ई सिगरेट आदि में खतरनाक तंबाकू होता है। जिससे फेफड़ों का कैंसर, हार्ट अटैक, बीपी, अस्थमा की दिक्कत हो सकती है। युवाओं में स्मोकिंग का ज्यादा चलन चल रहा है। जिसके पीछे ई-सिगरेट, शीशा या कूल दिखने का छलावा होता है। इनमें भी महिलाओं की भागीदारी काफी बढ़ गई है। स्मोकिंग करने से कई सारे केमिकल और टॉक्सिन निकलते हैं। यह फीमेल एग और मेल सीमन की क्वालिटी को खराब कर देते हैं। जिससे महिलाओं को प्रेग्नेंट होने में काफी दिक्कत होती है। जो महिलाएं स्मोक करती हैं, उन्हें मेनोपॉज का भी जल्दी सामना करना पड़ता है। इससे उनकी रिप्रोडक्टिव एज भी कम हो जाती है।
जो पुरुष धूम्रपान करते हैं, उनका सेक्शुअल फंक्शन कम हो सकता है। जिससे इंटेमिसी में भी इश्यू होने लगते हैं। इस कारण से भी महिलाओं को गर्भवती होने में और वक्त लग सकता है। स्मोकिंग छोड़ने के बाद फर्टिलिटी धीरे-धीरे ठीक होने लगती है। साथ ही प्रेगनेंट होने की संभावना भी बढ़ जाती है। महिलाओं को जैसे ही पता चलता है कि उन्होंने कंसीव कर लिया है और वो प्रेग्नेंट हो गई हैं, तो अधिकतर महिलाएं स्मोकिंग छोड़ देती हैं। लेकिन कुछ महिलाएं फिर भी एक्टिव या पैसिव घर या आसपास किसी दूसरे व्यक्ति का धूम्रपान करना स्मोकिंग में शामिल रहती हैं। इसे विभिन्न रूपों में सेवन किया जाता है – सिगरेट, चबाने वाला तंबाकू, पाइप, सिगार, सूंघने वाला तंबाकू, और हाल ही में ई-सिगरेट या वेप्स। तंबाकू में अनगिनत कार्सिनोजन होते हैं जो डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं और कैंसर का कारण बन सकते हैं।पैसिव स्मोकिंग से भी प्रेग्नेंसी में कॉम्प्लिकेशन आ सकती है। इसकी वजह से कभी-कभी महिलाओं को मिसकैरिज का सामना करना पड़ता है। कभी-कभी उनकी डिलीवरी वक्त से पहले हो जाती है। वहीं अगर डिलीवरी 9 महीने में भी हो रही है तो भी बच्चे का साइज और वजन कम रह जाता है। क्योंकि धूम्रपान से निकलने वाले केमिकल और टॉक्सिन भ्रूण को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
प्रेग्नेंसी में स्मोकिंग करने से बच्चे के जन्म लेने के बाद भी दिक्कतें आ सकती हैं। जैसे क्लेफ्ट लिप्स और क्लेफ्ट पैलेट, जिसमें मुंह का एरिया ढंग से विकसित नहीं हो पाता है। ऐसे बच्चों को सांस की समस्या भी जन्मजात हो सकती है। क्योंकि धूम्रपान से उनके फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। कभी-कभी सडन इंफेंट डेथ सिंड्रोम भी हो सकता है।बता दें कि तंबाकू का मुख्य सक्रिय घटक निकोटीन है, जो अत्यधिक नशे का कारण होता है; यह आपके मस्तिष्क में रसायनों को छोड़ता है जो आपको खुश महसूस कराता है – हालांकि थोड़े समय के लिए, जिससे आपको अगला सिगरेट पीने की लालसा होती है।
यह पुष्टि, हालांकि बड़े अध्ययनों से सिद्ध नहीं हो पाई, क्योंकि आज भी भारत में लगभग 267 मिलियन वयस्क और दुनियाभर में लगभग 1.3 बिलियन लोग तंबाकू उत्पादों का उपयोग करते हैं। जबकि कैंसर के हानिकारक प्रभाव अब लोगों को व्यापक रूप से ज्ञात हैं, निकोटीन की अत्यधिक नशे की प्रवृत्ति इसे छोड़ना बहुत चुनौतीपूर्ण बनाती है। इसे विभिन्न रूपों में सेवन किया जाता है – सिगरेट, चबाने वाला तंबाकू, पाइप, सिगार, सूंघने वाला तंबाकू, और हाल ही में ई-सिगरेट या वेप्स। तंबाकू में अनगिनत कार्सिनोजन होते हैं जो डीएनए को नुकसान पहुंचा सकते हैं और कैंसर का कारण बन सकते हैं।
कैंसर की रोकथाम और कैंसर उपचार के परिणामों को बेहतर बनाने के लिए तंबाकू छोड़ना महत्वपूर्ण है। तंबाकू में कई कार्सिनोजन होते हैं जो डीएनए को बदल सकते हैं और कैंसर का कारण बन सकते हैं। जबकि फेफड़ों के कैंसर को धूम्रपान से होने वाले शुरुआती कैंसरों में से एक पाया गया था, तंबाकू से जुड़े कैंसरों की सूची अंतहीन है क्योंकि यह मुंह, गले, अन्नप्रणाली, अग्न्याशय, मूत्राशय, गुर्दे और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर से भी जुड़ा है। बता दें कि किसी दूसरे व्यक्ति का धूम्रपान करना स्मोकिंग में शामिल रहती हैं। पैसिव स्मोकिंग से भी प्रेग्नेंसी में कॉम्प्लिकेशन आ सकती है। इसकी वजह से कभी-कभी महिलाओं को मिसकैरिज का सामना करना पड़ता है। लोग अक्सर कम हानिकारक मानकर बिना धुएं वाले तंबाकू का उपयोग करते थे, लेकिन चबाने वाला तंबाकू और सूंघने वाला तंबाकू मुंह, अन्नप्रणाली और यहां तक कि अग्न्याशय के कैंसर का कारण बनते हैं।