कौन से है अमरमणि त्रिपाठी के काले कारनामे?

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आज हम आपको अमरमणि त्रिपाठी के काले कारनामों के बारे में जानकारी देने वाले है! यूपी में बाहुबली नेताओं की बात हो और अमरमणि त्रिपाठी का जिक्र ना आए, ऐसा तो हो ही नहीं सकता। राजनीति और अपराध, दोनों में ही अपने नाम का डंका बजाने वाले अमरमणि त्रिपाठी कभी जेल के अंदर से तो कभी बाहर से राजनीति की बिसात बिछाते रहे। चाल ऐसी चलते कि हर चाल में जीत उनकी होती। काफी छोटी उम्र में ही अमरमणि ने राजनीति को समझना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे सियासत के मंझे खिलाड़ी की तरह आगे बढ़ने लगे, लेकिन फिर उनकी ज़िंदगी में एक मोड़ ऐसा आया कि जिसने उन्हें पहुंचा दिया हमेशा-हमेशा के लिए जेल की काल कोठरी में।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के रहने वाले अमरमणि त्रिपाठी का जन्म 1956 में हुआ था। राजनीति में उन्होंने कांग्रेस के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी को अपना गुरु बनाया। मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले अमरमणि का राजनीति में आने से पहले ही अपराध से नाता जुड़ गया था। मारपीट, हत्या, किडैनैपिंग, लूटपाट जैसे कई मामले उनके ऊपर दर्ज थे और फिर हर बाहुबली नेता की तरह अमरमणि ने भी अपने काले कारनामों को ढकने के लिए सियासत के सफेद चोले को ओढ़ लिया। हरिशंकर तिवारी ब्राह्मण थे और अमरमणि त्रिपाठी भी, इसलिए पूर्वी उत्तर प्रदेश में वो शुरुआती दिनों में ही अपना दबदबा कायम करने में कामयाब हो गए।1996 में अमरमणि त्रिपाठी ने पहली बार कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की। सीट थी महराजगंज की नौतनवा विधानसभा। इस सीट पर अमरमणि आए तो बस जमकर रह गए। 1997 में अमरमणि कांग्रेस छोड़कर लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी में जा मिले और फिर अपने लिए कल्याण सिंह की सरकार में मंत्री पद पक्का कर लिया। अपने गुरू हरिशंकर तिवारी की तरह ही राजनीति में वो हर काम बेहद शातिर तरीके से करते। सरकार चाहे जिसकी भी हो, उन्हें मंत्रिपद से मतलब होता, लेकिन बावजूद इसके अपराध से वो नाता नहीं तोड़ पाए और इसकी सजा भी उन्हें भुगतनी पड़ी।

2001 में उत्तर प्रदेश की बस्ती के एक बड़े बिजनेसमैन के बेटे राहुल का किडनैप होता है और इस किडनैपिंग में नाम आता है अमरमणि त्रिपाठी का। दरअसल बच्चे के किडनैप होने के बाद पुलिस की टीम जांच में जुटती है। जल्द से जल्द बच्चे का पता लगा लिया जाता है। पूछताछ होती है तो सामने आता है कि अपहरणकर्ताओं ने किडनैपिंग के बाद राहुल को अमरमणि त्रिपाठी के बंगले में रखा था। पूरे राज्य में इस मामले पर काफी शोर-शराबा होता है। राज्य में बीजेपी की सरकार थी और खुद अमरमणि मंत्रिमंडल में शामिल थे। विपक्ष बीजेपी के खिलाफ जमकर हंगामा करता है और फिर बीजेपी अमरमणि से किनारा कर लेती है। राहुल की किडनैपिंग का ये केस अमरमणि को एकदम अलग-थलग कर देता है।

अमरमणि के लिए ये मुश्किल वक्त था,लेकिन राजनीति की चालों को शतरंज की तरह खेलने वाले अमरमणि बहुत जल्दी इससे बाहर आ गए। 2002 के चुनाव में बीएसपी ने नौतनवा सीट से ही अमरमणि को टिकट दिया और वो अपने दम पर बड़े मार्जिन से चुनाव जीते। नौतनवा सीट में सबसे ज्यादा ब्राह्मण वोटर्स हैं और इसी का फायद अमरमणि को मिलता है। किडनैपिंग का इतना बड़ा मामला हो जाने के बावजूद वो एक बार फिर इस सीट पर काबिज होते हैं और इस बार वो और बड़े नेता के रूप में उभरते हैं। कहा जाता है कि 2002 में मायावती की सरकार बनाने में अमरमणि की अहम भूमिका रही थी। हालांकि ये संबध लंबे समय तक नहीं चल पाए और फिर 2003 में ही अमरमणि समाजवादी पार्टी के साथ हो लिए। मायावती की सरकार गिराने में भी अमरमणि का ही हाथ माना जाता है।

राज्य में मुलायम की सरकार बनती है और एक बार फिर अमरमणि मंत्रिमंडल में शामिल होते हैं। इस बार उन्हें कैबिनेट मंत्रालय मिलता है। 2003 तक अमरमणि का कद उत्तर प्रदेश की राजनीति में काफी बड़ा हो गया था। किसकी सरकार बनेगी, किसकी गिरेगी ये तक अमरमणि तय करने लगे थे, लेकिन 2003 में उत्तरप्रदेश की राजनीति और अमरमणि के जीवन में ऐसा भूचाल आया कि वो उससे फिर नहीं उबर पाए।इस दौर में उत्तर प्रदेश में एक कवयित्री मधुमिता का नाम काफी मशहूर हो रहा था। खीरी लखीमपुर की रहने वाली मधुमिता महज पन्द्रह-सोलह साल की उम्र में राजनीति पर ऐसी कविताएं लिखने और गाने लगीं कि उन्होंने इस छोटी उम्र में ही अपनी एक अलग पहचान बना ली। अरमणि त्रिपाठी की मुलाकात मधुमिता से हुई। दोनों के बीच धीरे-धीरे नजदीकियां बढ़ने लगी। मधुमिता का अमरमणि के घर भी आना-जाना था। पूरे परिवार से मधुमिता की दोस्ती थी, लेकिन दोनों के बीच कुछ और भी चल रहा था और ये बात साफ हुई मधुमिता के कत्ल के बाद।

सारा की कार दुर्घटना में मौत हुई, लेकिन साथ में बैठ अमनमणि को एक खरोंच तक नही आई। हर कोई हैरान था। सारा के परिवारवालों ने अमनमणि के खिलाफ केस दर्ज किया और उन्हें इस मामले में जेल जाना पड़ा। हालांकि इसका उनके राजनैतिक जीवन में कुछ फर्क नहीं दिखा। वजह थी पिता अमरमणि का इलाके में दबदबा। जेल में रहकर भी अमरमणि का नौतनवा सीट पर रुतबा कायम था। 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अमनमणि को फिर जीत दिलवाने में कामयाबी हासिल की। इस बार वो निर्दलिय चुनाव जीते। हालांकि 2022 के चुनाव में पहली बार नौतनवा सीट अमरमणि के परिवार के कब्जे से बाहर हुई। 2022 में अमनमणि यहां से चुनाव हार गए।अमरमणि की बेटी तनूश्री भी राजनीति में दिलचस्पी रखती हैं। अपनी बेटी के राजनैतिक पारी के लिए भी अमरमणि ने काफी कोशिश की, हालांकि बेटी के मामले में उन्हें सफलता नहीं मिली। तनुश्री नैनीताल के सेंट मेरी कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ी हुई हैं। स्कूलिंग के बाद वो पढ़ाई के लिए लंदन गईं। काफी समय तक लंदन में ही उन्होंने एक कंपनी में जॉब की। 2014 में वो भारत लौट आईं। बीच में कुछ साल पहले उन्हें कांग्रेस की टिकट मिलने की खबरें भी आईं थी, हालांकि बाद उनकी जगह किसी और को टिकट दे दी गई। तनुश्री कई बार प्रियंका गांधी की तारीफ करती भी नजर आईं हैं।