आने वाले समय में देश भर में बिजली का बिल बढ़ने वाला है! इंडिया एनर्जी एक्सचेंज में कल भी स्पॉट बिजली की कीमत में 11 फीसदी मतलब कि 40 पैसे प्रति यूनिट की बढ़ोतरी हुई है। गर्मी इसी तरह से बढ़ती रही तो वह दिन दूर नहीं, जबकि भारत में बिजली की पीक डिमांड रिकार्ड स्तर तक चली जाए। पिछले साल गर्मियों में भारत में बिजली की पीक डिमांड 243 गीगावाट रही थी। हालांकि इस बढ़ी कीमत का असर आपके बिजली बिल पर नहीं दिखेगा, क्योंकि इसे आपकी बिजली वितरण कंपनी झेलती है। हम राजस्थान नहीं बल्कि दिल्ली एनसीआर की बात कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से यहां गर्मी का सितम ऐसा बढ़ा है कि लोगों को दिन में भी एसी चलाना पड़ रहा है। ऐसे में बिजली की खपत बढ़ रही है। बिजल की खपत बढ़ रही है तो बिजली तो जाहिर है कि इसका प्रोडक्शन बढ़ाना होगा। यदि बिजली का प्रोडक्शन नहीं बढ़ेगा तो पावर कट करना होगा। ऐसे में लोग बिजली वितरण विभाग के हेल्पलाइन नंबर पर फोन करने लगते हैं।
डिमांड जब बढ़ती है तो डिस्कॉम को स्पॉट मार्केट से बिजली खरीदनी होती है। स्पॉट मार्केट मतलब पावर एक्सचेंज, जहां बिजली की खरीद-बिक्री होती है। जिन पावर प्रोड्यूसर्स के पास पीपीए से ज्यादा बिजली बनती है, वे इसे पावर एक्सचेंज में बेच देते हैं। पावर एक्सचेंज में वैसे डिस्कॉम बिजली खरीदते हैं, जिनके पास बिजली खरीद की पर्याप्त व्यवस्था पहले से नहीं है। यहां दिक्कत यह होती है कि जैसे ही स्पॉट मार्केट में डिमांड बढ़ती है तो बिजली की कीमत बढ़ जाती है। अब इंडिया एनर्जी एक्सचेंज में कल का ही रेट देख लीजिए। कल वहां बिजली का औसत रेट 4.04 रुपये प्रति यूनिट था, जो कि एक दिन पहले के मुकाबले 40 पैसे या 11 फीसदी ज्यादा है। जैसे-जैसे डिमांड बढ़ेगी, यह रेट और चढ़ सकता है। जब बिजली की डिमांड बढ़ती है तो बिजली वितरण कंपनियों या डिस्कॉम के लिए गाढ़ा वक्त आ जाता है। हमारे-आपके घरों तक बिजली पहुंचाने वाली कंपनियों को ही डिस्कॉम कहते हैं। जब बिजली की डिमांड बढ़ती हैं तो इनके पसीने छूटने लगते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ये कंपनियां सामान्य दिनों की डिमांड तो पूरी करने के लिए बिजली बनाने वाली कंपनियों से लॉन्ग टर्म पावर पर्चेज एग्रीमेंट कर लेती है। लेकिन बढ़ी डिमांड को पूरा करने के लिए उन्हें स्पॉट एक्सचेंज से बिजली खरीदनी होती है। यह बिजली आमतौर पर महंगी पड़ती है। इसलिए उनका मार्जिन प्रभावित होता है।
इसे लोगों की बढ़ती आमदनी का असर ही कहा जाए कि वे अब बिजल से चलने वाले उपकरणों का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं। वहीं तेज गर्मी में खेतों में पटवन के लिए भी बिजली की ज्यादा खपत हो रही है। तभी तो पिछले साल बिजली की डिमाड 7 फीसदी बढ़ी थी। भारत में इससे पहले बिजली की डिमांड औसतन 6 फीसदी की दर से बढ़ती रही है। इस साल तो कुछ ज्यादा ही डिमांड बढ़ने के आसार हैं। बीते फरवरी में ही खबर आई थी कि मार्च 2032 तक बिजली की पीक डिमांड 384 गीगावाट तक तक चली जाएगी। यह पिछले साल मई में आए अनुमान से पांच फीसदी ज्यादा है। साल 2023 में बिजली की पीक डिमांड 243 गीगावाट थी।
स्पॉट बाजार में बिजली की कीमत बढ़ने का असर आपके बिजली बिल पर नहीं दिखेगा। दरअसल, आपकी डिस्कॉम की जिम्मेदारी होती है कि वह पहले से तय कीमत पर आपको साल में 365 दिन 24 घंटे बिजली की निर्बाध आपूर्ति करे। इसके लिए वह बिजली बनाने वाली कंपनियों से पीपीए करती है। जब इससे डिमांड पूरा नहीं होता तो पावर एक्सचेंज से बिजली खरीदती हैं। यदि वहां से बिजली खरीदना बूते के बाहर हो जाता है तो आपके यहां पावर कट हो जाता है। तभी तो नोएडा-गाजियाबाद जैसे नो पावर कट जोन में भी गर्मी के दिनों में घंटों पावर कट होता है।
इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि इस साल अप्रैल, मई और जून में जैसे-जैसे तापमान में बढ़ोतरी होगी, वैसे-वैसे देश में बिजली की मांग भी बढ़ेगी। इसलिए डिस्कॉम को अपनी बिजली खरीद रणनीतियों को लागत प्रभावी ढंग (कॉस्ट इफेक्टिव) से प्रबंधित करने जैसे महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि डे अहेड मार्केट (डीएएम) सेगमेंट में कीमतों में कोई बदलाव नहीं आया है और यह स्थिर है। हालांकि टर्म-अहेड मार्केट (टीएएम) एक अलग तस्वीर पेश करता है, जो उच्च दरों और डिस्कॉम के लिए बढ़े हुए वित्तीय बोझ को दर्शाता है। यह DISCOMs के लिए डीएएम की स्थिरता का लाभ उठाने और अपने बिजली खरीद लागत को काफी हद तक कम करने के लिए एक अवसर उपलब्ध करता है।