यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पिछले 65 सालों में हिंदू घट गए हैं या नहीं! भारत में बहुसंख्यक हिंदुओं की आबादी की हिस्सेदारी 1950 और 2015 के बीच 7.82% घट गई है। हालांकि, इस दौरान मुस्लिम, ईसाई, सिख और बौद्ध सहित अल्पसंख्यक आबादी की हिस्सेदारी में बढ़ोतरी हुई है। पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) की सदस्य शमिका रवि ने एक वर्किंग पेपर में इस बात की जानकारी दी है। इस पेपर में कहा गया है कि देश में समाजिक विविधता को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल वातावरण मिल रहा है। पेपर के अनुसार, भारत में बहुसंख्यक हिंदू आबादी का हिस्सा 1950 और 2015 के बीच 7.82% कम हो गया। यह पहले के 84.68% से घटकर 78.06% हो गया है। वहीं, मुस्लिम आबादी का हिस्सा 1950 में 9.84% से बढ़कर 2015 में 14.09% हो गया। इसी तरह छह दशकों में ईसाई आबादी की हिस्सेदारी 2.24% से बढ़कर 2.36% हो गई। जबकि सिख आबादी की हिस्सेदारी 1.24% से बढ़कर 1.85% हो गई। इसके साथ ही बौद्ध आबादी की हिस्सेदारी में 0.05% से 0.81% की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। हालांकि, भारत की जनसंख्या में जैन समुदाय की हिस्सेदारी 0.45% से घटकर 0.36% हो गई। वहीं, पारसी आबादी 0.03% से घटकर 0.004% रह गई।
ईएसी-पीएम ने कहा कि नीचे से ऊपर के दृष्टिकोण के माध्यम से पोषण संबंधी वातावरण और सामाजिक समर्थन प्रदान किए बिना समाज के वंचित वर्गों के लिए बेहतर जीवन परिणामों को बढ़ावा देना संभव नहीं है। इस पेपर के अन्य लेखक में ईएसी-पीएम के सलाहकार अपूर्व कुमार मिश्रा और अब्राहम जोस भी शामिल हैं। अब्राहम संस्थानों में एक युवा पेशेवर के रूप में काम कर रहे हैं। रवि ने अपने पेपर में कहा है कि उदाहरण के तौर पर, भारत उन कुछ देशों में से एक है जहां अल्पसंख्यकों की कानूनी परिभाषा है। उनके लिए संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकार प्रदान करता है। इन प्रगतिशील नीतियों और समावेशी संस्थानों के परिणाम भारत के भीतर अल्पसंख्यक आबादी की बढ़ती संख्या में दिखाई देते हैं।
पेपर के अनुसार, दक्षिण एशिया के तत्काल पड़ोस में, भारत में बहुसंख्यक आबादी में सबसे बड़ी गिरावट (7.82%) देखी गई है, जो म्यांमार के बाद है। म्यांमार में 65 वर्षों में बहुसंख्यक आबादी में 10% की गिरावट देखी गई है। भारतीय उपमहाद्वीप पर इसमें कहा गया है कि मालदीव को छोड़कर सभी मुस्लिम बहुसंख्यक देशों में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी में वृद्धि देखी गई। बता दें कि देश में समाजिक विविधता को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल वातावरण मिल रहा है। पेपर के अनुसार, भारत में बहुसंख्यक हिंदू आबादी का हिस्सा 1950 और 2015 के बीच 7.82% कम हो गया। यह पहले के 84.68% से घटकर 78.06% हो गया है।हिस्सेदारी का औसत मूल्य 1950 के आधारभूत वर्ष में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय 75 प्रतिशत है। जबकि 1950 और 2015 के बीच बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय में परिवर्तन को पकड़ने वाले वितरण का औसत -21.9 है। इसका निष्कर्ष निकलता है कि विश्व स्तर पर बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी लगभग 22% कम हो गई है। दूसरे शब्दों में, स्टडी की अवधि में औसतन दुनिया अधिक विविध हो गई है। वहीं, मुस्लिम आबादी का हिस्सा 1950 में 9.84% से बढ़कर 2015 में 14.09% हो गया। इसी तरह छह दशकों में ईसाई आबादी की हिस्सेदारी 2.24% से बढ़कर 2.36% हो गई। जबकि सिख आबादी की हिस्सेदारी 1.24% से बढ़कर 1.85% हो गई। मालदीव मेंबहुसंख्यक समूह की हिस्सेदारी में 1.47% की गिरावट आई। बांग्लादेश में, बहुसंख्यक धार्मिक समूह की हिस्सेदारी में 18% की वृद्धि हुई, जो भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़ी वृद्धि है। वहीं, पाकिस्तान में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी में 3.75% की वृद्धि और 10% की कुल मुस्लिम आबादी में वृद्धि देखी गई। लेखकों ने कहा कि डेटा के सावधानीपूर्वक विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में अल्पसंख्यक न केवल संरक्षित हैं बल्कि वास्तव में फल-फूल रहे हैं। इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि पूरे पड़ोस से अल्पसंख्यक आबादी भारत आती है। अपनी बहुलतावादी, उदारवादी और लोकतांत्रिक प्रकृति को देखते हुए, भारत ने पिछले छह दशकों से कई देशों की सताई हुई आबादी को शरण देने की अपनी सभ्यतागत परंपरा को जारी रखा है।
यह पेपर दुनिया भर में अल्पसंख्यकों की स्थिति का एक विस्तृत क्रॉस-कंट्री वर्णनात्मक विश्लेषण है। इसे 1950 और 2015 के बीच 65 वर्षों में किसी देश की आबादी में उनकी बदलती हिस्सेदारी के संदर्भ में मापा जाता है। विश्लेषण किए गए 167 देशों के लिए, हिस्सेदारी का औसत मूल्य 1950 के आधारभूत वर्ष में बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय 75 प्रतिशत है। जबकि 1950 और 2015 के बीच बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय में परिवर्तन को पकड़ने वाले वितरण का औसत -21.9 है। इसका निष्कर्ष निकलता है कि विश्व स्तर पर बहुसंख्यक धार्मिक संप्रदाय की हिस्सेदारी लगभग 22% कम हो गई है। दूसरे शब्दों में, स्टडी की अवधि में औसतन दुनिया अधिक विविध हो गई है।