अगर वर्तमान की बात करें तो वर्तमान में ममता बनर्जी की अग्नि परीक्षा हो रही है! समूचे बंगाल में हजारों की संख्या में महिलाएं सड़कों पर उतर आई हैं। एकदम स्वतःस्फूर्त तरीके से। वे ममता बनर्जी को संकेत दे रही हैं कि बस, अब बहुत हो गया। उनका संदेश बहुत ही साफ है। न्याय का आह्वान कर रही हैं। वो न्याय जिसमें अभिव्यक्ति और आंदोलन की स्वतंत्रता, कानून के शासन, समानता और बहुत कुछ शामिल है। यह बहुत महत्वपूर्ण है। यह 2011 से बंगाल में पोरिबोर्तन यानी बदलाव के नाम पर किए गए सभी अत्याचारों का संदर्भ देता है। यह वह बैनर है जिसके तहत ममता ने अपनी प्राथमिकताएं मां, माटी, मानुष – महिला, भूमि और जनता निर्धारित की हैं।
उदाहरण के लिए, न्याय की मांग 2012 के पार्क स्ट्रीट सामूहिक बलात्कार से जुड़ी है, जिसे तत्कालीन नए सीएम ने शाजानो घोटोना यानी एक नकली घटना के रूप में खारिज कर दिया था। इसने सामूहिक बलात्कार की पीड़िता को बदनाम किया, जबकि उसके साथ हुए भयानक अपराध को नकार दिया जो उसने झेला था। फिर 2013 में कामदुनी में एक कॉलेज छात्रा की बर्बर हत्या और सामूहिक बलात्कार की घटना हुई। डॉक्टरों के आंदोलन के कारण स्वास्थ्य सेवाओं में आई भारी बाधा के प्रति अपने धैर्य से लोगों ने एक कड़ा संदेश दिया है, जिसे सीएम ने पढ़ा और समझा है। यह उनके लिए शासन को फिर से पटरी पर लाने की चेतावनी है।अपराधियों ने उसके पैरों को नाभि तक फाड़ दिया। उसका गला काट दिया और उसके शव को पास के एक खेत में फेंक दिया। ममता बनर्जी ने इसे भी ठीक से नहीं संभाला। पुलिस ने कार्रवाई करने में देरी की। जब लोगों का गुस्सा बढ़ा और कोलकाता और दूसरे जिलों में विरोध रैलियां फैल गईं; बुद्धिजीवियों ने अपनी आवाज उठाई और सरकार की निंदा की, तब जाकर दीदी ने इस घटना पर राजनीति करने के बजाय काम करना शुरू किया।
इस बार आरजी कर में डॉक्टर के रेप और मर्डर केस में ममता की प्रतिक्रिया काफी तेज रही। उन्होंने दावा किया कि अपराधियों को पकड़ने के लिए दुनिया की सबसे अच्छी पुलिस टीम को तैनात किया गया था। समस्या यह थी कि न तो युवा डॉक्टर और न ही आम जनता पुलिस की कार्रवाई से संतुष्ट थी। ऊपर से मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के बॉस संदीप घोष का रुख भी संदेह पैदा करने वाला रहा। वह पोलिटिकल कनेक्शन वाले व्यक्ति हैं।
इस बार ममता के कम होते आत्मविश्वास के और भी संकेत हैं। उन्होंने युवा डॉक्टरों की लंबी हड़ताल को जारी रहने दिया। हड़ताली डॉक्टरों को उनके सीनियरों और बंगाल के साथ-साथ देश भर के डॉक्टरों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों ने समर्थन किया। ममता ने हड़ताल को प्रशासनिक या राजनीतिक मुद्दा बनाए बिना चलने दिया है। जिस चीज ने उन्हें रोक रखा है, वह है जनता की प्रतिक्रिया। हड़ताल को मिले व्यापक समर्थन पर गौर कीजिए। भले ही इसने न केवल आरजी कर अस्पताल में बल्कि राज्य की राजधानी के अन्य अस्पतालों में भी ओपीडी और आपातकालीन सेवाओं को प्रभावित किया हो, आम लोग डॉक्टरों के साथ हैं। डॉक्टरों के आंदोलन के कारण स्वास्थ्य सेवाओं में आई भारी बाधा के प्रति अपने धैर्य से लोगों ने एक कड़ा संदेश दिया है, जिसे सीएम ने पढ़ा और समझा है। यह उनके लिए शासन को फिर से पटरी पर लाने की चेतावनी है।
उनका सबसे वफादार वोट बैंक सामूहिक रूप से उनके खिलाफ उठ खड़ा हुआ है। याद रखें, आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल कोलकाता के सबसे व्यस्त अस्पतालों में से एक है। यहां काम करने वाली 31 वर्षीय डॉक्टर के बलात्कार और हत्या को अब महिलाओं को कार्यस्थल सुरक्षा प्रदान करने में राज्य की व्यापक विफलता से जोड़ा जा रहा है। महिलाएं एक सरल अल्टीमेटम दे रही हैं: आपका समय अब शुरू होता है!इस धारणा की समस्या से निपटने के लिए, ममता को अपनी सरकार के काम करने के तरीके में बदलाव करना होगा। बता दें कि सामूहिक बलात्कार की पीड़िता को बदनाम किया, जबकि उसके साथ हुए भयानक अपराध को नकार दिया जो उसने झेला था। फिर 2013 में कामदुनी में एक कॉलेज छात्रा की बर्बर हत्या और सामूहिक बलात्कार की घटना हुई। अपराधियों ने उसके पैरों को नाभि तक फाड़ दिया। वह जानती हैं कि अगर वह इसमें नाकाम रहती हैं, तो 2021 के विधानसभा चुनावों और 2024 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने जो विशाल राजनीतिक पूंजी सफलतापूर्वक जुटाई हैं, वह 2026 तक खतरनाक रूप से समाप्त हो जाएगी।