Sunday, December 22, 2024
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क्या भारत का प्रोजेक्ट चीता हो चुका है फेल?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या भारत का प्रोजेक्ट चीता फेल हो चुका है या नहीं! भारत के ‘प्रोजेक्ट चीता’ पर पूरी दुनिया की नजर रही है। सितंबर 2022 में नामीबिया से 8 चीते भारत लाए गए और मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए। यह एक ऐतिहासिक पल था क्योंकि भारत में लगभग 8 दशकों बाद चीते वापस आए थे। लेकिन अगस्त 2024 तक, 25 में से सिर्फ एक चीता ही खुले में घूम रहा है, जिसका नाम पवन है। यह प्रोजेक्ट इसलिए शुरू किया गया था ताकि भारत में चीतों की आबादी फिर से बढ़ सके। लेकिन दो साल बाद भी, ज्यादातर चीते अभी भी बाड़ों में बंद हैं। सिर्फ पवन ही आजाद है और अपनी मर्जी से जंगल में घूमता है। वन अधिकारियों का कहना है कि पवन हवा की तरह है, उसे पकड़ना मुश्किल है। उम्मीद थी कि सभी चीते पवन की तरह जंगल में आजाद होंगे, शिकार करेंगे और बच्चे पैदा करेंगे। वन अधिकारियों का कहना है कि पवन हवा की तरह है, उसे पकड़ना मुश्किल है। प्रोजेक्ट चीता को शुरू हुए लगभग दो साल होने वाले हैं। इस प्रोजेक्ट में कुछ अच्छी बातें हुई हैं, लेकिन चीतों को जंगल में आज़ाद करने में अभी तक कामयाबी नहीं मिली है। अधिकारियों का कहना है कि प्रोजेक्ट तय लक्ष्यों से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है।

कूनो में चीता प्रोजेक्ट बहुत अच्छा रहा है। चीतों के बच्चे ज्यादा हो रहे हैं और वे स्वस्थ भी हैं। शुरुआत में उम्मीद थी कि चीता की संख्या हर साल 5% बढ़ेगी। लेकिन कूनो में चीतों की संख्या उम्मीद से ज्यादा बढ़ी है। कूनो में अब 25 चीते हैं- 13 बड़े और 12 बच्चे। बड़े चीतों के बचने की संभावना 65% है जो की योजना से कहीं ज्यादा है। पहले उम्मीद थी कि केवल 50% बड़े चीते ही बच पाएंगे। सबसे अच्छी बात यह है कि 70.5% चीते के बच्चे जीवित हैं। यह दर्शाता है कि चीते स्वस्थ हैं और प्रोजेक्ट तेजी से सफलता की ओर से बढ़ रहा है।

प्रोजेक्ट चीता’ की सफलता पर सवाल उठाते हैं। ‘प्रोजेक्ट चीता’ के तहत भारत लाए गए चीतों को शुरुआत में दो महीने के लिए जंगल के माहौल में ढाला जाना था और उसके बाद उन्हें पूरी तरह से आजाद कर देना था। दिसंबर 2023 में ‘प्रोजेक्ट चीता’ की संचालन समिति ने चीतों को कूनो नेशनल पार्क में छोड़ने की सैद्धांतिक मंजूरी भी दे दी थी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। चीतों को अभी भी लगातार निगरानी में रखा जा रहा है। ‘प्रोजेक्ट चीता’ की सफलता नियंत्रित वातावरण का नतीजा है जहां चीतों की 24 घंटे निगरानी की जाती है, पशु चिकित्सक हमेशा मौजूद रहते हैं और जरूरत पड़ने पर उन्हें खाना भी दिया जाता है। यह सही मायने में जंगली जीवन नहीं है।

सवाल यह है कि अगर चीतों को शुरुआती परिचय के बाद सीधे जंगल में छोड़ दिया जाता, तो क्या नतीजे होते? लेकिन सवाल यह है कि … क्या ये आंकड़े तब सामने आते, चीतों को थोड़ी अवधि के अनुकूलन के बाद जंगलों में मुक्त कर दिया जाता? प्रोजेक्ट चीता की सफलताएं एक बहुत ही नियंत्रित वातावरण का उत्पाद हैं। 24×7 निगरानी है, पशु चिकित्सक हैं हाथ, और यहां तक कि जरूरत पड़ने पर फीड की व्यवस्था भी की जाती है। याद रखें, मूल योजना सभी चीतों को भारत में दो महीने के अनुकूलन के बाद जंगल में छोड़ने की थी। दिसंबर 2023 में वापस, संचालन समिति ने सैद्धांतिक मंजूरी दे दी थी कूनो के जंगल में चीतों को छोड़ने के लिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।

शुरुआती योजना में माना गया था कि 3,200 वर्ग किलोमीटर का कूनो जंगल 21 चीतों को रख सकता है। लेकिन हाल के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि कूनो में वास्तव में लगभग 12 चीते ही रह सकते हैं। चीते 600 वर्ग किलोमीटर से लेकर 3,000 वर्ग किलोमीटर तक के क्षेत्र में घूमते हैं। यही कारण है कि कूनो में छोड़े जाने के बाद ही चीते जंगल से बाहर निकलने लगे। वन अधिकारियों के लिए चीतों को ढूंढना और उन्हें वापस लाना एक बड़ी चुनौती बन गया। पवन और आशा नाम के दो चीते कूनो से 100 किलोमीटर तक दूर चले गए। वे कूनो से काफी दूर मानव आबादी के पास पहुंच गए। इससे इंसानों और चीतों के बीच संघर्ष का डर पैदा हो गया। इस डर के कारण चीतों को वापस बाड़ों में लाने का फैसला किया गया। पवन को छोड़कर सभी को वापस बाड़ों में डाल दिया गया।

अंतर्राष्ट्रीय चीता विशेषज्ञ का कहना है कि शुरुआत में जब चीतों ने शिकार किया था, तो उन्होंने शिकार का पूरा मांस खाया था। उन्होंने कहा, ‘मैंने पहले कभी किसी चीते को इतनी सफाई से शिकार खाते नहीं देखा। वे वास्तव में जंगली शिकार चाहते हैं।’ विशेषज्ञ ने बताया कि फिलहाल चीते निगरानी में रहते हुए खुद शिकार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘अगर किसी कारण से कोई चीता शिकार नहीं कर पाता है, तो हमारी टीम उसे खाना देती है।’ जब चीते क्वारंटीन में थे, तो उन्हें भैंस का मांस दिया जाता था। इसमें विटामिन और मिनरल्स भी मिलाए जाते थे जो उन्हें आमतौर पर शिकार से मिलते हैं।

वन्यजीव विशेषज्ञों ने कूनो अधिकारियों से चीतों के खाने का पूरा रिकॉर्ड रखने को कहा है। इसमें कितना मांस दिया गया और कितना खाया गया, इसकी पूरी जानकारी होनी चाहिए। कूनो नेशनल पार्क में चीतों को बसाने की कोशिशों में नई चुनौतियां सामने आ रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि चीतों के प्रजनन, स्वास्थ्य और अनुकूलन क्षमता पर विशेष ध्यान देना होगा। ‘प्रोजेक्ट चीता’ को एक प्रयोग के तौर पर देखा जा रहा है, जिसमे यह पता लगाया जा रहा है कि क्या अफ्रीकी चीते भारतीय परिवेश में जीवित रह सकते हैं। एक बड़ी चिंता चीतों में प्रजनन को लेकर है। पवन नाम के चीते ने पहले ही दो बार संतानें पैदा कर ली हैं और उसके लगातार कुनो में रहने से करीबी रिश्तेदारों के बीच प्रजनन का खतरा बढ़ सकता है। ऐसा होने से आनुवंशिक विविधता कम होती है और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

 

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