जानिए पानीपत की जंग के हीरो हेमू की पूरी कहानी!

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आज हम आपको पानीपत की जंग के हीरो हेमू की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं !सल्तनत काल के बाद मध्य एशिया के फरगना से आए मोहम्मद जहीरूद्दीन बाबर ने पानीपत की पहली लड़ाई से हिंदुस्तान में मुगल साम्राज्य की नींव डाली। मगर उसके बेटे हुमायूं ने बाबर की विरासत गंवा दी। ऐसे ही समय में रेवाड़ी का एक शेर हुआ, जिसका नाम था हेमू। हुमायूं को हराने वाले और 1540 में भारत से खदेड़ने वाले हेमू को हिंदुस्तान का अंतिम हिंदू सम्राट कहा जाता है। शेरशाह सूरी की सेनाओं में शामिल होकर हेमू एक समय काफी ऊंचे ओहदे तक पहुंच गया। हेमू सूर वंश के एक शासक आदिल शाह के जमाने में सैन्य जनरल और प्रधानमंत्री बन गया था। वह बंगाल में था, जब 27 जनवरी 1556 को हुमायूं की मौत हो गई। मुगल सम्राट की मृत्यु ने हेमू को मुगलों को हराने और खोए हुए क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने का एक आदर्श अवसर प्रदान किया। मगर, एक दुर्भाग्य ने हिंदुस्तान की किस्मत पलट दी। हरियाणा के इसी हीरो की कहानी जानते हैं। हुमायूं की मौत के बाद हेमू ने बंगाल से तेजी से सैन्य मार्च शुरू किया और मुगलों को बयाना, इटावा, भरथना, बिधूना, लखना, संभल, कालपी और नारनौल से बाहर निकाल दिया। आगरा में तो मुगल सेनाओं ने जब यह सुना कि हेमू ने हमला कर दिया तो वह बिना लड़े ही वहां से भाग गए। अपने 50 हजार घुड़सवारों और 500 हाथियों के साथ हेमू दुश्मन पर टूट पड़ते थे। वह 1553 से 1556 के दौरान इस्लाम शासन के महामात्य (प्रधानमंत्री) और जनरल के रूप में रहा।

इसके बाद हेमू दिल्ली के ठीक बाहर एक गांव तुगलकाबाद पहुंचा। यह सुनकर आगरा की तरह ही दिल्ली का मुगल गवर्नर तरदी बेग खान तो भाग गया, मगर उसकी सेनाओं ने मुकाबला किया। 7 अक्टूबर, 1556 को एक दिन की लड़ाई में हेमू ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया और उसे विक्रमादित्य या बिक्रमजीत खिताब से नवाजा गया। जब तुगलकाबाद की लड़ाई की यह खबर 13 साल के अकबर तक पहुंची तो उसके जनरल बैरम खां ने फौरन दिल्ली की ओर कूच किया। अकबर को रास्ते में संयोग से अली कुली खान शैबानी की मदद मिली, जिसने उन्हें अपनी 10 हजार की मजबूत घुड़सवार सेना दे दी। रास्ते में अकबर और उसकी सेनाओं ने हेमू के तोपखाने पर कब्जा जमा लिया, जो हेमू के लिए बड़ी चूक साबित हुई।

हेमू की सेना में 30,000 अफगानी घुड़सवार थे। वहीं, इसमें 500 हाथियों की टुकड़ी शामिल थी, जो जंग में दुश्मन की सेनाओं को कुचल देती थी। हर हाथी को कवच से ढका गया था। हेमू खुद हवाई नाम के एक हाथी पर सवार होकर जंग लड़ता था। पानीपत युद्ध से पहले तक हेमू और उसकी सेना ने बंगाल से पंजाब तक 22 लड़ाइयों में जीत हासिल की थी। 5 नवंबर 1556 को पानीपत के ऐतिहासिक युद्धक्षेत्र में हेमू की सेनाओं का मुकाबला मुगल सेना से हुआ। अकबर और बैरम खान युद्ध के मैदान से आठ मील दूर पीछे ही रहे। अकबरनामा के लेखक अबुल फजल के अनुसार, हेमू और अकबर की सेनाएं ऐसे टकराईं, जैसे पानी से आग निकल रही हो।

हेमू ने पानीपत में मुगलों पर हमला शुरू किया और मुगलों के दाएं और बाएं विंग के बीच अपने हाथियों को छोड़ दिया। मुगल सेना इस लड़ाई में पिछड़ रही थी। इसी वक्त हेमू ने बीच में लड़ रही मुगल सेना को कुचलने के लिए हाथियों और घुड़सवार सेना की टुकड़ी आगे कर दी। इसी जगह पर हेमू खुद नेतृत्व कर रहा था। वह जीतने ही वाला था कि मुगल सेना की ओर से किसी ने एक तीर हेमू की ओर चलाया और यह तीर सीधा हेमू की आंख में जाकर लगा। हाथी के हौदे पर बैठा हेमू वहीं बेहोश हो गया। हाथी पर हेमू को न देखकर उसके सैनिकों का मनोबल टूट गया। हेमू की सेना में भगदड़ मच गई।

आखिरकार कई घंटे की लड़ाई के बाद हेमू की सेना ने हार मान ली। 5 हजार से ज्यादा सैनिक मारे गए। हेमू को ले जा रहे हाथी को पकड़ लिया गया। उस पर हेमू करीब-करीब बेहोश हो चुका था। उसे मुगल सैन्य शिविर में ले जाया गया। अकबर का दरबारी इतिहासकार अबुल फजल कहता है कि जब बैरम खान ने 13 साल के अकबर से हेमू का सिर काटने को कहा तो उसने मना करते हुए कि मरे हुए को क्या मारना? तब बैरम खान ने खुद सिर काट दिया। हालांकि, समकालीन लेखक मोहम्मद आरिफ कंधारी ने कहा है कि अकबर ने ही हेमू का सिर काट लिया और गाजी का खिताब धारण कर लिया।

हेमू के जाने के बाद से सदियों से उसकी समाधि उपेक्षित पड़ी थी। राज्य सरकार ने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया। ऐसे में प्रवासी मुस्लिमों ने वहां पर एक दरगाह बना दिया। 1990 तक यह जगह भारतीय पुरातत्व विभाग के पास थी। मगर, 1990 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री ओपी चौटाला ने समाधि समेत पूरे 10 एकड़ के क्षेत्र को वक्फ बोर्ड के हवाले कर दिया। हरियाणा वक्फ बोर्ड के तत्कालीन चेयरमैन मेवात क्षेत्र के एक मुस्लिम विधायक थे, जिन पर कुछ लोगों से पैसे लेकर अतिक्रमण की अनुमति देने के आरोप लगे थे। पानीपत का प्रथम युद्ध (अप्रैल 1526) पानीपत के निकट लड़ा गया था। पानीपत वह स्थान है जहाँ बारहवीं शताब्दी के बाद से उत्तर भारत पर नियंत्रण को लेकर कई निर्णायक लड़ाइयां लड़ी गईं। पानीपत के प्रथम युद्ध ने ही भारत में मुगल साम्राज्य की नींव रखी। यह उन पहली लड़ाइयों में से एक थी जिसमें मुगलों ने बारूद और तोपों का इस्तेमाल किया। बाबर और दिल्ली के लोदी वंश के सुल्तान इब्राहिम लोदी के बीच लड़े गए इस युद्ध में बाबर ने लोदी को परास्त किया था।