Saturday, December 21, 2024
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क्या भारतीय बंदरगाहों की स्थिति बदल रही है?

वर्तमान में भारतीय बंदरगाहों की स्थिति बदलती जा रही उस समय पोर्ट पर आने के इंतजार में जहाजों की लंबी कतार नजर आती थी। उस समय शिप के लिए वेटिंग टाइम 28 दिन का था, जो कि चौंकाने वाला था। इसके पीछे मुख्य वजह थी शक्तिशाली ट्रेड यूनियनों का दबदबा और अकुशल सरकारी तंत्र। लेकिन अब समय बदल गया है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2023 में भारत के नौ कंटेनर पोर्ट दुनिया के टॉप 100 बंदरगाहों में शामिल हो गए हैं। विशाखापत्तनम बंदरगाह ने तो कमाल ही कर दिया है, 2022 में 117वें पायदान पर रहने वाला ये बंदरगाह 2023 में 19वें पायदान पर पहुंच गया है। ये भारत के लिए गर्व की बात है। विश्व बैंक के एक्सपर्ट हंस जुर्गन पीटर्स के 1990 में सामने आए एक अध्ययन में पाया गया कि मुंबई में एक जहाज को उतारने का सबसे तेज तरीका यूनियन के मजदूरों को घर पर रहने के लिए भुगतान करना और निजी श्रमिकों को काम पर रखना था। यह कैसी विडंबना थी। ब्रिटिश राज के दौरान विकासशील देशों में सबसे अच्छे भारत के बंदरगाहों को स्वतंत्रता के बाद मूर्खतापूर्ण समाजवादी नीतियों के चलते बर्बाद कर दिया गया। सभी प्रमुख पोर्ट्स को एक बेहद अक्षम सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित कर दिया गया था। हड़तालों के डर से बंदरगाह यूनियनों के साथ नरमी से पेश आया करता।

तो, आइए हम विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट का स्वागत करें, जिसमें बताया गया है कि 2023 में, कम से कम नौ भारतीय कंटेनर बंदरगाह टॉप 100 में शामिल हो गए। विशाखापत्तनम, जो मुख्य रूप से थोक वस्तुओं का संचालन करता है, सबसे बड़ा कंटेनर सेक्शन है। इससे इसकी कार्यकुशलता में इतना नाटकीय सुधार हुआ कि यह 2022 में 117वें स्थान से 2023 में दुनिया में 19वें स्थान पर पहुंच गया। यही नहीं ये भारत का सर्वश्रेष्ठ बंदरगाह भी बन गया।

इसके बाद गुजरात का मुंद्रा बंदरगाह आया, जो लंबे समय से भारत का अग्रणी बंदरगाह है। मुंद्रा 2022 में 47वें स्थान से 2023 में 28वें स्थान पर पहुंच गया। इसके बाद गुजरात का पीपावाव 41वां, चेन्नई का कामराजर 47वां, कोचीन 63वां, सूरत के पास हजीरा 68वां, आंध्र प्रदेश के नेल्लोर का कृष्णापटनम 71वां, चेन्नई 80वां और नवी मुंबई का जवाहरलाल नेहरू बंदरगाह 96वां रहा।

2023 में विशाखापत्तनम ने प्रति क्रेन-घंटे 27.5 मूव (लोडिंग और अनलोडिंग) हासिल किए। इससे जहाजों के लिए 21.4 घंटे का टर्नअराउंड समय आसान हो गया। जी हां, 1988 में 28 दिनों के इंतजार के विपरीत सिर्फ 21 घंटे। शायद ही कभी ऐसा बदलाव इतने कम समय में हुआ हो। कानून कहता है कि सभी प्रमुख बंदरगाहों का स्वामित्व सरकार के पास होना चाहिए, लेकिन छोटे बंदरगाहों को राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में छोड़ दिया गया है। हालांकि, ‘छोटे बंदरगाहों’ की कोई परिभाषा नहीं थी या उनके आकार पर कोई प्रतिबंध नहीं था।

ये बदलाव कैसे आया? इसका श्रेय जाता है गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल को, जिन्होंने ‘छोटे बंदरगाहों’ के नियम का फायदा उठाकर गुजरात में पोर्ट्स का जाल बिछा दिया। धीरे-धीरे दूसरे राज्यों ने भी गुजरात मॉडल को अपनाया और आज भारत के बंदरगाह विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना रहे हैं। 1990-94 में गुजरात के कांग्रेसी मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल ने महसूस किया कि ‘छोटे बंदरगाह’ की खामी का इस्तेमाल भारत सरकार के ‘बड़े पोर्ट्स’ से भी बड़े नए बंदरगाह बनाने के लिए किया जा सकता है। उन्होंने गुजरात के लिए ‘बंदरगाह आधारित विकास’ का प्रस्ताव रखा, नए बंदरगाहों को औद्योगिक और ट्रांसपोर्टेशन केंद्रों के रूप में विकसित किया। नरेंद्र मोदी सहित बाद के मुख्यमंत्रियों ने भी यही रास्ता अपनाया।

गुजरात अलग-अलग स्टेज में बंदरगाहों के प्राइवेट पार्टिशिपेशन की ओर बढ़ा। सबसे पहले, इसने सरकारी जेटी को निजी ऑपरेटरों को पट्टे पर दिया, फिर पूरे बंदरगाह के संयुक्त स्वामित्व में चला गया, और अंत में पूरी तरह से इसे निजी बंदरगाहों में बदल गया। गौतम अडानी का मुंद्रा कई मामले में भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह बन गया। गरीब भारतीय रेलवे के पास मुंद्रा जैसे नए बंदरगाहों को मुख्य रेल नेटवर्क से जोड़ने के लिए कोई फंड नहीं था। हमेशा नए-नए प्रयोग करने वाले अडानी और गुजरात सरकार ने इस काम के लिए एक संयुक्त रेल कंपनी बनाई।

दूसरे राज्यों ने भी गुजरात का उदाहरण अपनाया। सभी तटीय राज्यों में ‘छोटे बंदरगाह’ सामने आ गए। आखिरकार भारत सरकार भी इसमें शामिल हो गई। सभी बड़े बंदरगाहों ने जमींदार-किराएदार मॉडल को अपना लिया है। सरकार बंदरगाह की जमींदार है, सीमा शुल्क और अन्य प्रशासनिक कार्यों को संभालती है और सभी जेटी के संचालन को पट्टे पर देती है। ज्यादातर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी बोली के आधार पर ये किया जाता है।

इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण में भारतीय बंदरगाहों के प्रदर्शन में सुधार के बारे में विस्तार से बताया गया है। विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स परफॉरमेंस इंडेक्स (LPI) में भारत की रैंकिंग 2018 में 44वें स्थान से सुधरकर 2023 में 38वें स्थान पर पहुंच गई है। कार्गो ट्रैकिंग की शुरुआत के साथ, विशाखापत्तनम में कार्गो का कुल ठहराव समय 2015 में 32.4 दिनों से घटकर 2019 में 5.3 दिन हो गया। साथ ही, अंतर्राष्ट्रीय शिपमेंट में भारत की स्थिति 2018 में 44वें स्थान से बढ़कर 2023 में 22वें स्थान पर पहुंच गई।

भारतीय बंदरगाहों के लिए औसत टर्नअराउंड समय घटकर 0.9 दिन रह गया है, जो अमेरिका (1.5 दिन), ऑस्ट्रेलिया (1.7 दिन) या यहां तक कि पूर्व चैंपियन सिंगापुर (1 दिन) से भी बेहतर है। लेकिन भारत की पोर्ट क्रांति की जय-जयकार करते हुए, चीन के साथ बढ़ते अंतर को भी देखें। अब अमेरिकी, यूरोपीय या जापानी बंदरगाह सबसे बड़े और सबसे अच्छे नहीं रहे। शंघाई के यांग्त्जी डेल्टा और शेनझेन से मकाऊ तक पर्ल रिवर डेल्टा में चीन के पोर्ट डेवलपमेंट ने बाकी दुनिया को पीछे छोड़ दिया है।

संपूर्ण तटरेखा और द्वीप समूहों को जेटी के विशाल परिसर में परिवर्तित कर दिया गया है, जो 100 किमी लंबे पुलों और सुरंगों द्वारा मुख्य भूमि से जुड़े हैं। यह चीन के इंजीनियरिंग कौशल का एक आश्चर्यजनक प्रमाण है। यांग्त्जे डेल्टा पर निंग्बो-झोउशान बंदरगाह पिछले 14 वर्षों से कुल कार्गो की आवाजाही में सबसे बड़ा है। ये पिछले साल 1.25 अरब टन तक पहुंच गया था। सामान्य अर्थ में कहें तो ये बस एक पोर्ट नहीं है, बल्कि, इसमें 220 किमी. के समुद्र तट पर कम से कम 19 बंदरगाह हैं। इनमें कई द्वीप शामिल हैं।

विश्व बैंक का कहना है कि दुनिया का सबसे अच्छा कंटेनर बंदरगाह यांगशान है। यह शंघाई से 30 किमी दूर द्वीपों की एक श्रृंखला पर बनाया गया है। ऐसे में भारत के लिए इसे पकड़ना कठिन कार्य है। यह सभी अमेरिकी कंटेनर बर्थों को मिलाकर अधिक कार्गो को संभालता है, यह इस बात का भी प्रदर्शन है कि कैसे विश्व आर्थिक शक्ति का संतुलन बदल रहा है। भारत के पास इसे पकड़ना बेहद कठिन काम है।

 

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