आखिर हरियाणा और जम्मू कश्मीर चुनाव के कौन से चेहरे रहे सबसे बड़े?

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आज हम आपको बताएंगे कि हरियाणा चुनाव के कौन से चेहरे सबसे बड़े रहे हैं! हरियाणा में जीत के वैसे तो कई चेहरे हैं, लेकिन बड़े चेहरे के तौर पर उभरे हैं, छह महीने पहले सीएम बने नायब सिंह सैनी। पूर्व सीएम एम एल खट्टर के करीबी समझे जाने वाले सैनी ने लाडवा से कांग्रेस उम्मीदवार को 16 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। खट्टर सरकार के खिलाफ जमीन पर माैजूद नाराजगी को दूर करने के लिए जब बीजेपी हाइकमान ने सैनी पर दांव लगाया तो उनका बेहद लो प्रोफाइल रहते हुए जमीन पर लोगों से मिलना जुलना शुरू करना और सीएम हाउज के दरवाजे लोगों के लिए खोलना काम करता दिखाई दिया। उन्होंने 56 दिनों में 100 से ज्यादा ऐसे फैसले लिए, जो सीधे जनता से जुड़े थे। इन जीत में बड़ा चेहरा बनकर उभरे नेशनल कान्फ्रेंस नेता व जम्मू कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला। महज कुछ महीने पहले होने वाले लेाकसभा चुनाव में बारामुला से हार का मुंह देखने वाले उमर ने हालिया चुनाव में राज्य की दोनों सीटों गांदरबल और बड़गाम में 10 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। उनके पिता व कान्फ्रेंस के मुखिया फारुख अब्दुल्ला ने ऐलान किया कि उमर राज्य के अगले सीएम होंगे।

हरियाणा में बीजेपी की जीत में अहम भूमिका निभाने में अहम नाम बीजेपी के राज्य प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान का है। पीएम मोदी के भरोसेमंद सिपहसालार प्रधान ने ओड़िशा के बाद लगातार हरियाणा में प्रधान ने अपने संगठनात्मक अनुभव चुनाव व चुनाव कौशल से पार्टी की झोली में जीत डालने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने जहां एक ओर प्रदेश में नेतृत्व बदलने को अंजम दिया तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश में टिकट बंटवारे के बाद होने वाली शुरुआती बगावत पर लगाम लगाने का काम किया।

प्रधान के इस काम में उनका साथ दिया, उनके सहप्रभारी व त्रिपुरा के पूर्व सीएम बिप्लव कुमार देब ने। बिप्लब ने जिस तरह से 2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट का किला ढहाकर बीजेपी की सत्ता स्थापित की, वह अपने आप में इतिहास है। उनके संगठन से जुड़े अनुभवों को देखते हुए पार्टी ने समय-समय पर उन्हें अलग-अलग जिम्मेदारी दी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। हरियाणा की जीत के बाद बेशक देब का कद संगठन में बढ़ेगा। ओलिंपिंक में पदक के नजदीक पहुंचकर खाली हाथ लौटी महिला पहलवान विनेश फोगाट ने मंगलवार को विधानसभा की जुलाना सीट अपनी झाेली में डाल ली। इस जीत ने विनेश का कद बढ़ा दिया है। कांग्रेस की टिकट पर इस पहलवान बेटी की जीत कहीं न कहीं उन लोगों को विनेश का जवाब है, जिन्होंने उसकी जीत की राह में कदम-कदम पर रोड़े अटकाने की कोशिश की। भारतीय कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष बृृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ आवाज उठाने वाली सबसे मुखर आवाजों में से एक रही हैं।

हरियाणा के चुनाव में सबसे ज्यादा किरकिरी हुड्डा परिवार की हुई है। प्रदेश के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस की इस पूरी लड़ाई में उसके अघोषित चेहरे के तौर पर काम कर रहे थे। वहीं दूसरी ओर उनके बेटे व रोहतक से सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी सीएम की रेस में थे। जिस तरह से रोहतक, सोनीपत व बहादुरगढ़ जैसे इलाकों में बीजेपी ने सीटें निकाली हैं, वह सीधे हुड्डा परिवार के प्रभाव वाले इलाकों में उनकी ढीली होती पकड़ को दिखाता है। इन नतीजों ने हुड्डा के सबसे बड़े जाट नेता की इमेज को प्रभावित किया।

हरियाणा के इन नतीजों ने कहीं न कहीं कांग्रेस महासचिव कुमारी सैलजा व रणदीप सुरजेवाला का प्रभाव भी कम किया है। दोनों ही नेता लगातार सीएम पद को लेकर अपनी दिली इच्छाएं और महात्वाकांक्षा जाहिर करते रहे, नतीना जमीन पर कांग्रेस के भीतर गुटबाजी को लगातार हवा मिलती रही, जिसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ा। हालांकि कैथल से सुरजेवाला के बेटे आदित्य भले ही चुनाव जीत गए हों, लेकिन सुरजेवाला का प्रभाव अपने इलाके से बाहर नहीं दिखा।

महज कुछ महीने पहले तक बीजेपी के साथ एनडीए के घटक रहे राज्य के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला का चुनाव से कुछ महीने पहले गठबंधन टूटा तो दुष्यंत व उनकी पार्टी जेजेपी ने इन चुनावों में चंद्रशेखर आजाद की पार्टी से चुनाव लड़ा, लेकिन उनकी कोशिश कोई काम नहीं आई। जहां दुष्यंत उचाना से तो वहीं उनके छोटे भाई दिग्विजय सिंह चौटाला डबवाली से बुरी तरह चुनाव हार गए। पिछली बार 9 सीटें जीतकर राज्य में किंगमेकर की भूमिका निभाने वाली जेजेपी इस बार एक फीसदी से कम वोट हासिल कर पाई।यूपी चुनाव, लोकसभा चुनावों के बाद हरियाणा के चुनाव लगातार ऐसे चुनाव रहे, जहां मायावती और बीएसपी का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। आईएनएलडी से हाथ मिलाने के बाद भी बीएसपी खासकर करिश्मा नहीं कर पाई। उसे 1.82 फीसदी वाेट मिले, लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली। हरियाणा में जेजेपी की तरह बीएसपी की इमेज भी वोट कटवा के तौर पर देखा जा रहा है।

महबूबा मुफ्ती इंडिया गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद हालिया चुनाव में इंडिया गठबंधन का हिस्सा न बनने का खामियाजा जम्मू कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती व उनकी पार्टी पीडीपी को उठाना पड़ा। उनके हिस्से में महज तीन सीटें आईं, जबकि उनकी अपनी बेटी इल्तिजा मुफ्ती श्रीगुफवारा बिजवेहरा सीट से चुनाव हार गईं। 2018 तक बीजेपी के साथ सत्ता में रही पीडीपी के खिलाफ नाराजगी इन चुनावों में भी नजर आई।