क्या अमेरिका ने धार्मिक रिपोर्ट के सहारे फिर से भारत को घेरा?

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हाल ही में अमेरिका ने धार्मिक रिपोर्ट के सहारे भारत को एक बार फिर से घेर लिया है! भारत में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है और कितनी हैरत की बात है कि बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान मरे जा रहे हैं भारत में घुसपैठ को! जहां धार्मिक स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं, वहीं घुसपैठ कर रहे हैं मुसलमान? अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने हर वर्ष की तरह 2024 की रिपोर्ट जारी कर दी है। 2 अक्टूबर को जारी इस रिपोर्ट में भारत में अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति पर चिंता जाहिर की गई है। यूएससीआईआरएफ की वेबसाइट पर लिखा है, ‘अपनी 2024 की वार्षिक रिपोर्ट में यूएसआईसीआरएफ ने सिफारिश की कि अमेरिकी विदेश विभाग भारत को ‘विशेष चिंता का देश’ के रूप में नामित करे या धार्मिक स्वतंत्रता के व्यवस्थित, निरंतर और गंभीर उल्लंघन में संलग्न देश के रूप में।’ इस वर्ष अमेरिकी संस्था ने भारत पर अपनी रिपोर्ट को ‘भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की बदहाल होती स्थिति पर रिपोर्ट’ शीर्षक दिया है। इसमें कहा गया है, ‘यह रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि 2024 के दौरान किस तरह से लोगों को निगरानी समूहों द्वारा मारा गया, पीटा गया और लिंच किया गया, धार्मिक नेताओं को मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया और घरों और पूजा स्थलों को ध्वस्त किया गया। ये घटनाएं धार्मिक स्वतंत्रता का विशेष रूप से गंभीर उल्लंघन हैं।’

रिपोर्ट के बारे में कहा गया है, ‘इसमें धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनके पूजा स्थलों के खिलाफ हिंसक हमलों को भड़काने के लिए सरकारी अधिकारियों द्वारा नफरत फैलाने वाला भाषण समेत भ्रामक और गलत सूचना के इस्तेमाल का उल्लेख किया गया है। इसमें नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), समान नागरिक संहिता (यूसीसी) और कई राज्यों के धर्मांतरण और गोहत्या विरोधी कानूनों सहित धार्मिक अल्पसंख्यकों को टारगेट करने और उन्हें वंचित करने के लिए भारत के कानूनी ढांचे में बदलाव और प्रवर्तन का भी वर्णन किया गया है।

वेबसाइट पर ‘धार्मिक स्वतंत्रता क्या है?’ इस बारे में भी बताया गया है। इसमें कहा गया है, ‘धार्मिक स्वतंत्रता में निहित है अपने विवेक के अनुसार विश्वास करने या न करने का अधिकार, और अपने विश्वासों को खुले तौर पर, शांतिपूर्वक और बिना किसी डर के जीना। धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता एक व्यापक अधिकार है जिसमें विचार, विवेक, अभिव्यक्ति, संघ और सभा की स्वतंत्रता शामिल है।’ आगे बताया गया है कि अमेरिका धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को कितना तवज्जो देता है। अब भारत में कथित अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय की स्थिति और उसकी हरकतों पर नजर डाल लीजिए और समझिए कि क्या अत्याचार का सामना कर रहा कोई समुदाय ऐसी-ऐसी हिमाकतें कर सकता है! देश में कौन ऐसी पार्टी है जिसे मुसलमानों का वोट नहीं चाहिए? बीजेपी ने भी पसमांदा मुसलमानों को रिझाने का अभियान छेड़ा है। वोट बैंक की राजनीति का मुसलमानों ने जमकर फायदा उठाया है।

मुसलमान नेताओं की मजबूरी का फायदा अपनी सभी गलत नीतियों को मनवाने में करते हैं। मुसलमानों के वोटों की इच्छा रखने वाले दल और नेता हिंदुओं और उनकी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ खुलकर जहर उगलते हैं क्योंकि मुसलमान हिंदू-विरोध से ही खुश होता है, मुसलमान पूरे देश में रणनीतिक रूप से वोटिंग करता है। कितनी हैरत की बात है कि मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है और वो देश के सत्ताधारी दल के खिलाफ खुलकर खड़ा है!

मुसलमान को कोई फर्क नहीं पड़ता है कि कोई अपराधी है या आतंकी या फिर देश का गद्दार, बस कौम का होना चाहिए, फिर वो किसी भी हद तक समर्थन में खड़ा रहेगा। इसके उलट अगर कौम से किसी ने देशभक्ति दिखाई तो उसका सामाजिक बहिष्कार हो जाएगा।

यूएससीआईआरएफ की वेबसाइट पर बताया गया है कि यह अमेरिकी संस्था आखिर दूसरे देशों में धार्मिक स्वंतत्रता की स्थिति का पता कैसे लगाता है। इसके विभिन्न उपाय बताए गए हैं। एक उपाय में कहा गया है, ‘अनुसंधान, यात्रा, तथा विदेशी अधिकारियों और अंतरराष्ट्रीय साझेदारों, स्वतंत्र मानवाधिकार समूहों और अन्य गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के प्रतिनिधियों, धार्मिक नेताओं, उत्पीड़न के शिकार लोगों और अन्य लोगों के साथ बैठकों के माध्यम से विदेशों में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति की निगरानी करना।’

सवाल है कि क्या उसने कभी बहुसंख्यक हिंदुओं की धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति जानने-समझने की कोशिश की? क्या उसने कभी हिंदुओं के धार्मिक नेताओं से बात की? क्या उसने जानने की कोशिश की कि सिर्फ हिंदू धर्मस्थलों पर ही सरकारों का नियंत्रम क्यों है? अगर नहीं तो क्या धार्मिक स्वतंत्रता सिर्फ अल्पसंख्यकों की होती है, उसमें भी सिर्फ मुसलमानों और ईसाइयों की? भारत में मुसलमान अल्पसंख्यक नहीं बल्कि दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला समुदाय है। क्या उसने कभी भारत में ईसाई संस्थाओं की हरकत पर गौर किया है कि कैसे वो अंधविश्वास फैलाकर हिंदुओं का धर्मांतरण करवा रहे हैं? इन सब पर गौर किया जाए तो यूएससीआईआरएफ के लिए ‘चोरी भी और सीनाजोरी भी’ की कहावत सटीक बैठती है। सबको सताओ और खुद को ही पीड़ित बताओ। ऐसी संस्थाएं सचमुच धार्मिक स्वतंत्रता की नहीं बल्कि धार्मिक अत्याचार की हितैषी हैं।

यही वजह है कि भारत ने यूएससीआईआरएफ की इस रिपोर्ट को न सिर्फ सिरे से खारिज किया है बल्कि अमेरिका भारत के मामले में चौधरी बनने की कोशिश दूर रहकर अपने अंदर के हालात पर गौर करने की नसीहत भी दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, ‘यूएससीआईआरएफ पर हमारे विचार पहले से स्पष्ट हैं कि यह एक पक्षपाती संगठन है जिसका राजनीतिक एजेंडा है। यह तथ्यों को गलत तरीके से पेश करता रहता है और भारत के बारे में एक गलत नैरेटिव को बढ़ावा देता है। हम इस दुर्भावनापूर्ण रिपोर्ट को खारिज करते हैं, जो केवल यूएससीआईआरएफ की विश्वसनीयता घटाती है। हम यूएससीआईआरएफ से ऐसे एजेंडा संचालित प्रयासों से बचने का आग्रह करते हैं। यूएससीआईआरएफ के लिए यह भी अच्छा होगा कि वह अपना समय अमेरिका में मानवाधिकार मुद्दों से निपटने में खर्च करे।’