आज हम आपको बताएंगे कि जम्मू कश्मीर में आतंकवाद कैसे बेकाबू हुआ था! कई दशक पहले का 1999 का कंधार विमान अपहरण कांड इस समय चर्चा में है। वजह है उस पर बनी नेटफ्लिक्स की वेब सीरीज ‘आईसी 814 कंधार हाइजैक’ को लेकर हुआ विवाद। अनुभव सिन्हा की इस वेब सीरीज पर विवाद हो रहा है और आरोप तो यहां तक लग रहे हैं कि ये पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए ‘पीआर जॉब’ है। इस बीच जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में कहा है कि 1989 में रुबैया सईद अपहरण कांड के वक्त उनकी रिहाई के लिए 5 आतंकवादियों को छोड़े जाने ने इंडियन एयरलाइंस अपहरण कांड के वक्त एक ‘बेंचमार्क’ स्थापित कर दिया था। एक ‘नजीर’ बन गया था कि अगर रुबैया सईद को छुड़ाने के लिए आतंकी छोड़े जा सकते हैं तो विमान यात्रियों के लिए क्यों नहीं। अब्दुल्ला ने ये भी कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के सामने ‘आतंकवादियों के साथ कोई समझौता नहीं’ का विकल्प था, लेकिन सरकार ने सौदेबाजी का रास्ता चुना। उन्होंने कहा कि एक बार आप ऐसा कर देते हैं तो आपको इसे दोबारा करना होगा। संयोग से रुबैया सईद अपहरण और कंधार विमान अपहरण कांड, दोनों के वक्त उमर अब्दुल्ला के पिता फारूक अब्दुल्ला ही जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। आखिर क्या था 1989 का रुबैया सईद अपहरण कांड, जिसका उमर अब्दुल्ला ने जिक्र किया? आइए नजर डालते हैं। लेकिन उससे पहले एक नजर उस पर जो अब्दुल्ला ने रुबैया सईद केस का जिक्र करते हुए कहा।
उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि 1989 में रुबैया सईद के अपहरण ने 1999 में इंडियन एयरलाइन्स के अपहरण के समय एक ‘मानक’ स्थापित कर दिया था। रुबैया के पिता मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद उस समय केंद्र सरकार में गृह मंत्री थे। राज्य में फारूक अब्दुल्ला की अगुआई में सरकार थी। रुबैया सईद की रिहाई के लिए सरकार ने 5 खूंखार आतंकवादियों को छोड़ दिया था। नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के उपाध्यक्ष ओमर अब्दुल्ला ने ये बात कही है। अब्दुल्ला ने कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार के पास ‘आतंकवादियों के साथ बातचीत न करने’ का विकल्प था। उन्होंने आगे कहा, ‘हालांकि, सरकार ने बातचीत का रास्ता चुना। उसके बाद, एक बार जब आपने ऐसा कर लिया, तो आपको इसे दोबारा करना होगा।’ रुबैया सईद पीडीपी नेता और जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बहन हैं। अब्दुल्ला का ये बयान ऐसे समय आया है जब जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान जोर पकड़ रहा है। वहां इसी तीन चरणों में 18 सितंबर, 25 सितंबर और एक अक्टूबर को वोटिंग होनी है। नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे। ये तो रही उमर अब्दुल्ला के बयान की बात। अब नजर डालते हैं रुबैया सईद अपहरण कांड पर।
रुबैया अपहरण कांड के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद ने इतना गंभीर रूप ले लिया कि महज एक साल के भीतर हालात बेकाबू हो गए। घाटी में कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर नरसंहार होने लगा। खुलेआम मुनादी करके उन्हें धर्म परिवर्तन करने, भागने या फिर मरने के लिए तैयार होने को कहा जाने लगा। आखिरकार कश्मीरी पंडितों को अपनी जान बचाने के लिए अपने घर-दुकान, खेत-खलिहान, अचल संपत्तियों को छोड़कर भागना पड़ा। जब कश्मीरी पंडित घाटी में अपना घर-बार छोड़कर भाग रहे थे, तब भी रास्ते में कई को आतंकवादियों ने बर्बर तरीके से हत्या कर दी। कश्मीरी पंडित अपने ही मुल्क में शरणार्थी जैसे बन गए। आज भी वे घाटी में अपने-अपने घरों में नहीं लौट सके हैं। कुल मिलाकर अगर ये कहा जाए कि रुबैया सईद केस ने ही घाटी में आतंकवाद के बेहद बीभत्स रूप की बुनियाद रखी तो गलत नहीं होगा।
केंद्रीय गृह मंत्री की बेटी के अपहरण की खबर के बाद श्रीनगर से लेकर दिल्ली तक हड़कंप मच गया। जेकेएलएफ ने रुबैया सईद की रिहाई के बदले 5 खूंखार आतंकवादियों को छोड़े जाने की शर्त रखी। केंद्र की तत्कालीन वीपी सिंह सरकार ने अपने गृह मंत्री की बेटी को छुड़ाने के लिए आतंकवादियों के साथ बातचीत और सौदेबाजी का रास्ता चुना। जेकेएलएफ ने रुबैया सईद की रिहाई के बदले खूंखार आतंकवादियों- अब्दुल हामिद शेख, गुलाम नबी भट, नूर मोहम्मद कलवाल, मोहम्मद अल्ताफ और जावेद अहमद जरगर को छोड़ने जाने की मांग की।बाद में उसने जरगर की रिहाई की मांग छोड़ दी और उसके बजाय अब्दुल अहद वाजा को छोड़ने की डिमांड रखी। जेकेएलएफ ने जिन आतंकियों की रिहाई की शर्त रखी थी उसमें से एक अब्दुल हामिद शेख का उस वक्त श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर अस्पताल में इलाज चल रहा था, क्योंकि वह घायल था। आखिरकार केंद्र सरकार आतंकियों के आगे झुक गई और रुबैया के बदले 5 खूंखार आतंकवादियों को छोड़ने के लिए तैयार हो गई।
रुबैया सईद अपहरण कांड के करीब दो साल बाद 27 फरवरी 1991 को राज्य के एक और दिग्गज नेता सैफुद्दीन सोज की बेटी नाहिदा इम्तियाज का आतंकियों ने अपहरण कर लिया। इसे भी जम्मू-कश्मीर स्टूडेंट्स लिबरेशन फ्रंट ने ही अंजाम दिया। आतंकियों ने नाहिदा की रिहाई के बदले अपने साथियों को छोड़े जाने की डिमांड रखी। तब केंद्र में चंद्रशेखर की अगुआई वाली सरकार थी। कुछ दिन बाद आतंकियों ने नाहिदा को रिहा कर दिया। उस समय केंद्र में मंत्री रहे सुब्रमण्यम स्वामी ने बाद में अपने एक लेख में बताया था कि नाहिदा की रिहाई के बदले में किसी भी आतंकी को नहीं छोड़ा गया था। हालांकि, कुछ न्यूज रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि सैफुद्दीन सोज की बेटी की रिहाई के बदले में सरकार ने अलगाववादी मुश्ताक अहमद को रिहा किया था। अब उमर अब्दुल्ला ने एक तरह से ये कहने की कोशिश की है कि कंधार विमान अपहरण कांड की बुनियाद तो रुबैया सईद केस में ही पड़ गई थी जब सरकार ने खूंखार आतंकियों को रिहा किया था।