हाल ही में उत्तराखंड कांग्रेस के नेता हरक सिंह रावत एक घोटाले में फंस चुके हैं! जमीनी घोटाला और फॉरेस्ट लैंड पर निर्माण के मामले में प्रवर्तन निदेशालय ईडी ने कांग्रेस नेता और वन मंत्री रहे हरक सिंह रावत के ठिकानों पर छापामारी की है। दिल्ली, चंडीगढ़ और उत्तराखंड में 16 जगहों पर ईडी ने एकसाथ बुधवार को छापा मारा। हरक सिंह रावत वर्ष 2022 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए थे। आज ईडी की छापेमारी दो अलग-अलग मामलों में हुई है। इसमें एक मामला फॉरेस्ट लैंड से जुड़ा हुआ है तो दूसरा मामला जमीनी घोटाले से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है। हरक सिंह रावत के घर पर आई ईडी की टीम पाखरो रेंज घोटाले के संबंध में जांच करने आई। ईडी की टीम ने कांग्रेस नेता हरक सिंह रावत के आवास से दस्तावेज और कई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी कब्जे में लिए है। भाजपा सरकार में वन मंत्री के रूप में कार्यकाल संभालने वाले हरक सिंह रावत और उनके कुछ अधिकारियों पर टाइगर सफारी परियोजना के तहत कॉर्बेट पार्क के पाखरो रेंज में अवैध पेड़ कटान और अवैध निर्माण के गंभीर आरोप लगे थे। भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, पाखरो बाघ सफारी के लिए 163 की अनुमति के खिलाफ कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में 6000 से अधिक पेड़ अवैध रूप से काटे गए थे। वन विभाग ने इन दावों का खंडन किया था और कहा था कि रिपोर्ट को अंतिम रूप दिए जाने से पहले तकनीकी मामलों को सुलझाया जाना जरूरी है।
उत्तराखंड में हरक सिंह रावत का विवादों से हमेशा ही नाता रहा है। यह पहली बार नहीं है कि हरक सिंह रावत से जुड़ी संपत्तियां ईडी के जांच के दायरे में आई है। इससे पहले भी 2023 में उत्तराखंड विजिलेंस ने देहरादून के शंकरपुर स्थित एक संस्थान और छिट्दवाला वाला में एक पेट्रोल पंप पर छापे मारे थे। 30 अगस्त, 2023 हुई कार्रवाई के मामले में राज्य सतर्कता प्रमुख वी मुरुगेशन ने कहा था कि टीम ने दोनों स्थानों पर जांच की तो पता चला कि दोनों संपत्तियां कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत की हैं। शंकरपुर स्थित दून इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज और पेट्रोल पंप दोनों हरक सिंह रावत के बेटे के हैं। इस जांच में पाया गया था कि दोनों निजी स्थान पर लगाए गए दो जनरेटर सेट सरकारी पैसों से खरीदे गए थे। पिछले साल हुई कार्रवाई में विजिलेंस ने एक डीएफओ को जेल भी भेजा था।
यहां यह बात भी सामने आ रही है कि ईडी ने आठ आईएफएस अधिकारियों के बारे में जानकारी लेने के लिए वन विभाग को पत्र लिखा था। लेकिन वन विभाग ने कोई जानकारी देने की बजाय शासन को पत्र देकर पूछा था कि अधिकारियों की जानकारी ईडी को दी जानी चाहिए की नहीं। डॉ हरक सिंह रावत के इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर को भी आज सुबह उनके घर से उठाकर लाई और इंस्टिट्यूट में ले जा कर उनसे पूछताछ की गई। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ईडी की छापेमारी ने कांग्रेस नेता हरक सिंह रावत को भी मुश्किलों में डाल दिया है। हरक सिंह रावत लोकसभा चुनाव के दावेदार हैं, लेकिन अब ईडी की कार्रवाई के बाद हरक सिंह रावत की दावेदारी पर भी संकट खड़ा हो गया है।
हरक सिंह रावत वर्ष 1991 में पहली बार उत्तर प्रदेश में मंत्री बने थे। वह तब मंत्री बनने वाले सबसे कम उम्र के नेता थे। उन्होंने पौड़ी से विधानसभा चुनाव जीता था। हरक सिंह रावत राज्य के उन कुछ नेताओं में से हैं जिनकी जनता में व्यापक पैठ है। 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप के चलते हरक सिंह रावत को भाजपा से निष्कासित कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने अपनी बहू अनुकृति गुसाईं के साथ कांग्रेस ज्वाइन कर ली थी। उत्तराखंड में कहा जाता है कि हरक सिंह रावत विवादों का दूसरा नाम है। एनडी तिवारी की सरकार में मंत्री रहे हरक सिंह रावत 2003 में जैनी प्रकरण से चर्चा में आए थे। जैनी नामक एक महिला ने हरक सिंह रावत पर आरोप लगाया था कि उसके बच्चे के पिता हरक सिंह हैं। इस मामले में डीएनए टेस्ट भी कराया गया था, लेकिन उसकी रिपोर्ट कभी सार्वजनिक नहीं की गई और बाद में मामला रफा-दफा कर दिया गया।
हालांकि इन आरोपों के चलते 2003 में हरक सिंह रावत को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। वर्ष 2013 में भी मेरठ निवासी एक महिला ने हरक सिंह रावत पर शारीरिक शोषण का आरोप लगाया था। उस समय हरक सिंह रावत, विजय बहुगुणा की सरकार में मंत्री थे। इसके बाद 2014 में मेरठ की रहने वाली महिला ने दिल्ली के सफदरजंग थाने में ही हरक सिंह रावत के खिलाफ दुष्कर्म का मामला दर्ज कराया था लेकिन यह मामला भी रफा दफा हो गया था। 2016 में मेरठ की महिला ने एक बार फिर रावत के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। 18 मार्च 2016 को उत्तराखंड विधानसभा में हरीश रावत के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद करने वाले बागियों में हरक सिंह रावत की भूमिका अग्रणी रही थी। इसके बाद उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद हरीश रावत सरकार बहाल हो गई। हालांकि तब तक हरक सिंह रावत समेत सभी नौ बागियों ने भाजपा का दामन थाम लिया था।