हाल ही में हल्द्वानी में हुई घटना के बाद सीएम पुष्कर सिंह धामी ने गोरिल्ला वार तकनीक अपनाई है! उत्तराखंड के हल्द्वानी के बनभूलपुरा में शुक्रवार को भड़की हिंसा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा सरकार के लिए बड़ी चुनौती से कम नहीं है। गुरुवार शाम 5 बजे से कई घंटे चला उपद्रव को देखकर और नैनीताल डीएम ने जो मंजर साझा किया, उससे साफ है कि ये घटना पूरी तरह से प्लान कर अंजाम दी गई है। डीएम ने बताया कि किस तरह से कानूनी दांवपेंच में प्रशासन को फंसाए रखा गया और पीछे से बलवे की पूरी प्लानिंग की गई। प्रशासन अपीलों की जांच में व्यस्त था और दूसरी तरफ खाली पड़ी छतों पर पत्थर जुटा लिए गए, प्लास्टिक की बोतलों में पेट्रोल बम तैयार किए गए। इसके बाद ऐन वक्त हर घर से आफत की बारिश शुरू हो गई। इस घटना के बाद अब धामी सरकार एक्टिव जरूरी हो गई है। तमाम कार्रवाइयों के आदेश दिए गए हैं। लेकिन इस हिंसा ने कहीं न कहीं पुलिस और प्रशासनिक अमले की तैयारियों को भी उजागर कर दिया है। पुलिस इंटेलिजेंस, एलआईयू पर सवाल उठ रहे हैं कि उन्हें कैसे नहीं पता चला कि छतों पर पत्थर इकट्ठा किए जा रहे हैं। बता दें ये घटना उस समय सामने आई है, जब एक दिन पहले ही उत्तराखंड विधानसभा में यूसीसी पास हुआ है। जाहिर है इस लेकर अतिसंवेदनशील इलाकों पर स्वाभाविक तौर पर अलर्ट होना चाहिए था।
बहरहाल, अब घटना के बाद राज्य सरकार इस मुद्दे पर काफी गंभीर है और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस हिंसा पर कड़ा रुख अपनाते हुए दंगाइयों और उपद्रवियों के विरुद्ध करेंगे कठोरतम कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। उन्होंने हल्द्वानी के बनभूलपुरा में हुई घटना के संबंध में शासकीय आवास पर अधिकारियों के साथ उच्चस्तरीय बैठक कर वर्तमान स्थिति की समीक्षा की। पुलिस को अराजक तत्वों से सख़्ती से निपटने के स्पष्ट निर्देश दिए हैं। आगजनी पथराव करने वाले एक-एक दंगाई की पहचान की जा रही है, सौहार्द और शांति बिगाड़ने वाले किसी भी उपद्रवी को बख्शा नहीं जायेगा। हल्द्वानी की सम्मानित जनता से अनुरोध है कि शांति व्यवस्था बनाए रखने में पुलिस-प्रशासन का सहयोग करें।
चलिए पहले आपको डीएम नैनीताल, वंदना सिंह की जुबानी पूरे मामले को विस्तार से सुनाते हैं। डीएम नैनीताल वंदना सिंह ने बताया कि 15 से 20 दिन से हल्द्वानी के अलग-अलग क्षेत्रों में और उससे पहले भी उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद भी अतिक्रमण की कार्रवाइयां हुई हैं। इसे लेकर टास्क फोर्स गठित की गई है। सरकारी जमीनी पर कब्जे हटाए जा रहे हैं। इसी क्रमें हल्द्वानी के नगर निगम क्षेत्र में ट्रैफिक सुधारने के लिए सड़क चौड़ीकरण, कब्जे हटाने आदि की एक्टिविटी भी चली। सभी जगह कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए सभी को नोटिस भी जारी किए गए। सुनवाई के अवसर भी दिए गए। सभी को एक-एक करके सुना और निस्तारण किया। कुछ लोग हाईकोर्ट भी गए, जिन्हें स्टे नहीं मिला, उनकी संपत्ति का ध्वस्तीकरण नगर निगम टीम द्वारा कराया गया। डीएम ने कहा कि मेरा ये बताने का मतलब ये था कि ये कोई एक दिन की कार्रवाई नहीं थी, पूरी प्रक्रिया के तहत ये एक्शन हो रहा है। किसी एक संपत्ति को टार्गेट नहीं किया गया है।
डीएम ने बताया कि ये खाली प्रॉपर्टी है। इसमें दो स्ट्रक्चर हैं, ये न तो किसी धार्मिक संरचना के तौर पर रजिस्टर्ड हैं, न ही किसी प्रकार से मान्यता प्राप्त हैं। इस स्ट्रक्चर को कुछ लोग मदरसा कहते हैं, कुछ लोग पूर्व नमाज स्थल कहते हैं। लेकिन उसका विधिक रूप से कोई दस्तावेज नहीं है। उन्हें हमने खाली कराया। ओपन स्पेस ले लिया गया। फिर एक नोटिस स्ट्रक्चर पर चस्पा कराया क्योंकि कथित रूप से ये एरिया मलिक का बगीचा नाम से जाना जाता है। जबकि कागजों में ये नगर निगम के नजूल के रूप में दर्ज है। नोटिस में तीन दिन के अंदर अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए गए। 30 तारीख के इस नोटिस में कहा गया था कि अगर तीन दिन के अंदर मालिकाना हक से संबंधित अभिलेख प्रस्तुत करें, नहीं तो नगर निगम इसे ध्वस्तीकरण की कार्रवाई करेगा। 4 तारीख की तारीख निर्धारित की गई।
डीएम ने बताया कि 3 तारीख को इस संबंध में तमाम संभ्रांत लोग नगर निगम के सभागार में आए और इस दौरान हमसे चर्चा में उन्होंने तमाम बिंदु रखे और मांग की कि हमें हाईकोर्ट जाने का एक अवसर दिया जाए। चूंकि हम पहले ही समय दे चुके थे, लिहाजा हमने समय नहीं दिया। रात को फ्लैग मार्च शुरू किया गया तो उन्होंने कुछ एक दस्तावेज सौंपा, जिसमें उसी संपत्ति को लेकर एक 2007 का एक आदेश था, जिसमें हाईकोर्ट द़्वारा जिलाधिकारी को आदेश दिए गए थे, किसी प्रार्थना पत्र के डिस्पोजल के लिए। हमने उस आदेश का सम्मान करते हुए, उसकी पत्रावली दिखवाई गई।
जांच में उस आदेश के डिस्पोजल की स्थिति स्पष्ट नहीं हुई तो कार्रवाई उस दिन रोक दिया गया। ताकि संबंधित पक्षों को वैधानिक कार्रवाई करने का पर्याप्त अवसर दिया जा सके। क्योंकि किसी भी प्रकार से ऐसी कार्रवाई न हो जाए जो विधि विरुद्ध हो। हमने भवन का ध्वस्तीकरण को रोक दिया, लेकिन कब्जा हमने उसमें ले ले लिया और सील कर दिया गया। उसमें कोई रह नहीं रहा था। वह पूरी तरह से अवैध था। जब हमने अगले दिन 2007 के आदेश का डिस्पोजल किया गया। इस बीच नोटिस से संबंधित पक्ष हाईकोर्ट में स्टे के लिए अपील की, दो दिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को किसी भी प्रकार की राहत देने से मना कर दिया।
साफ हो गया था कि संपत्ति अवैध थी, उस पर किसी का अधिकार नहीं था। डीएम ने बताया कि इसके बाद हमने डिमोलिशन ड्राइव जारी रखने का फैसला किया। कार्रवाई के दौरान शांतिपूर्ण तरीके से प्रक्रिया चल रही थी। लेकिन कुछ अराजक तत्वों द्वारा पूरी कार्रवाई होने के बाद आधे घंटे के अंदर हमारी नगर निगम की टीम पर पत्थर बरसाना शुरू किए।