आखिर भारत को तेजस विमान देने में देरी क्यों कर रहा है अमेरिका?

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यह सवाल उठना लाजिमी है कि अमेरिका भारत को तेजस विमान देने में देरी क्यों कर रहा है! भारतीय वायुसेना को एक और झटका लगा है। तेजस मार्क-1A लड़ाकू विमानों की डिलीवरी में देरी हो गई है। अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक (GE) से इंजन की सप्लाई में देरी के कारण ऐसा हुआ है। 4.5-जनरेशन फाइटर बनाने का प्रोजेक्ट भी अटका हुआ है। HAL 2024-25 में IAF को केवल 2-3 तेजस मार्क-1A फाइटर ही दे पाएगा। 83 जेट विमानों के लिए फरवरी 2021 में 46,898 करोड़ रुपये का सौदा हुआ था।प्रधानमंत्री मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अमेरिका दौरे के दौरान GE-F404 इंजन की डिलीवरी में देरी का मुद्दा उठाया था। GE ने अब मार्च 2025 तक सप्लाई शुरू करने का वादा किया है, जो दो साल की देरी है। सूत्रों के अनुसार ,$716 मिलियन के अनुबंध के अनुसार, HAL पेनल्टी लगा सकता है। लेकिन यह एक लॉजिस्टिक समस्या है जिसे GE और HAL मिलकर सुलझा सकते हैं। GE का कहना है कि उसे अपने एक दक्षिण कोरियाई सप्लायर से आपूर्ति श्रृंखला में समस्याओं का सामना करना पड़ा है।

HAL और GE अब भारत में तेजस मार्क-II फाइटर के लिए अधिक शक्तिशाली GE-F414 इंजन के सह-उत्पादन के लिए अंतिम तकनीकी-वाणिज्यिक बातचीत कर रहे हैं। इसके तहत लगभग $1 बिलियन में 80% तकनीक ट्रांसफर की जाएगी। सूत्रों ने बताया कि इस वित्तीय वर्ष के भीतर अनुबंध पर हस्ताक्षर हो जाने चाहिए। इंजन में देरी के अलावा, तेजस मार्क-1A पर हथियारों और इजराइली रडार का एकीकरण भी चल रहा है। IAF को अगले 15 वर्षों में 180 तेजस मार्क-1A और कम से कम 108 मार्क-2 जेट मिलने की उम्मीद है, लेकिन देरी से उसकी योजना प्रभावित होगी। वायुसेना के पास अभी सिर्फ 30 फाइटर स्क्वाड्रन हैं, जबकि उसे 42.5 स्क्वाड्रन की अनुमति है।

IAF को 114 नए 4.5-पीढ़ी(Generation) के मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) की भी सख्त जरूरत है। इन्हें भारत में विदेशी सहयोग से बनाया जाना है। इसकी शुरुआती लागत 1.25 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है। लेकिन यह प्रोजेक्ट भी अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। सितंबर 2016 में फ्रांस के साथ हुए 36 राफेल लड़ाकू विमानों के 59,000 करोड़ रुपये के सौदे में भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर हुए राजनीतिक घमासान ने सरकार को MRFA मामले के लिए पूरे खरीद मॉडल पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। एक अन्य सूत्र ने कहा कि राफेल विवाद सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच गया था, जिसमें अधिकारियों को तलब किया गया था और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े दस्तावेज़ साझा किए गए थे। MRFA मामले में, गतिरोध को तोड़ने के लिए खरीद मॉडल और स्वदेशीकरण के स्तर को अंतिम रूप दिया जा रहा है। HAL का कहना है कि उसके पास अब बेंगलुरु के अलावा नासिक में नई उत्पादन लाइन स्थापित करने के बाद प्रति वर्ष 24 तेजस मार्क-1A लड़ाकू विमान बनाने की क्षमता है। एक अधिकारी ने कहा कि योजना उत्पादन दर को बढ़ाकर 36 जेट प्रति वर्ष करने की है।

भारत के पास भविष्य में एक महत्वाकांक्षी पांचवी पीढ़ी के स्टील्थ फाइटर, स्विंग-रोल एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) की भी योजना है, जिसके विकास को इस साल मार्च में पीएम के नेतृत्व वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने मंजूरी दे दी थी। इसकी लागत 15,000 करोड़ रुपये से अधिक है। बता दें कि भारतीय वायुसेना का ‘महाबली’ कहे जाने वाले C-295 एयरक्राफ्ट अब भारत में ही बनेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्पेन के राष्ट्रपति पेड्रो सांचेज ने गुजरात के वडोदरा में देश के पहले प्राइवेट मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट प्रोडक्शन प्लांट का उद्धाटन किया। यह प्लांट भारत के प्राइवेट एविएशन इंडस्ट्री का पहला फाइनल असेंबली लाइन है। इसका मतलब है कि इस प्लांट से निकलने के बाद एयरक्राफ्ट सीधे उड़ान भरने के लिए तैयार होंगे। टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड (TASL) परिसर में स्थित इस प्लांट में एयरबस C295 एयरक्राफ्ट तैयार किए जाएंगे।

ये प्रोजेक्ट एयरोस्पेस उद्योग, मैन्युफैक्चरिंग इकोसिस्टम और रक्षा क्षमताओं के लिए एक मील का पत्थर है। पीएम मोदी ने कहा कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत ऐसे प्रोजेक्ट कई मायनों में हमारे लिए गेमचेंजर है। इस प्रोजेक्ट के आने से भारत में एयरक्राफ्ट निर्यात की महत्वाकांक्षा को भी बढ़ावा मिलेगा। ‘मेक इन इंडिया’ के तहत C-295 एयरक्राफ्ट का निर्माण भारत के लिए गेमचेंजर क्यों है इन 5 प्वाइंट्स में समझिए। भारतीय वायु सेना (IAF) में C-295 एयरक्राफ्ट को शामिल करना देश की एयरलिफ्ट क्षमताओं में अहम साबित होगा। ये एयरक्राफ्ट, एयरबस डिफेंस एंड स्पेस की ओर से डिजाइन और तैयार किया गया है। ये कई मायनों में अहम है और अलग-अलग मिशन खास रोल निभाता रहा है। इसके जरिए आर्म्ड फोर्सेज का ट्रांसपोर्ट, कार्गो एयरलिफ्ट, मेडिकल सपोर्ट और समुद्री पेट्रोलिंग भी शामिल है। C-295 सोवियत एंटोनोव An-32 और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के एवरो 748 के पुराने बेड़े की जगह लेगा।

C-295 एयरक्राफ्ट की क्षमता छोटे और कच्चे रनवे से भी ऑपरेट होने की है। इस खासियत की वजह से ये विमान चुनौतीपूर्ण इलाकों खास तौर से चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) और भारत के रणनीतिक समुद्री सीमा में नेविगेट को आदर्श बनाती है। एयरक्राफ्ट के टॉप क्रूज की स्पीड 482 किमी प्रति घंटे है। इसमें नौ टन तक कार्गो या 71 सैनिकों या 48 पैराट्रूपर्स को ले जाने की क्षमता है। C-295 IAF की परिचालन तत्परता और लचीलेपन को काफी बढ़ाता है। एक जंग-टेस्टेड ट्विन-टरबोप्रॉप, C295 में कार्गो-ड्रॉपिंग, इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटेलिजेंस, मेडिकल इमरजेंसी, समुद्री गश्त के साथ ईंधन भरने की क्षमता भी है। इसी वजह से इसे भारतीय डिफेंस फोर्स के लिए एक बहुमुखी विकल्प है।