Saturday, July 27, 2024
HomeIndian Newsक्या अमेरिका पर विश्वास करना भारत के लिए खतरनाक साबित हो सकता...

क्या अमेरिका पर विश्वास करना भारत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है?

अमेरिका पर विश्वास करना भारत के लिए खतरनाक साबित हो सकता है! अमेरिका चाहता है कि भारत अब रूस से इतर उसकी तरफ देखे। खासकर यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका का पूरा प्रयास रहा है कि भारत को किसी भी तरह से रूसी खेमे से बाहर निकाला जाए। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन हों या उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलीवान या फिर कोई मंत्री, सबने अपने बयानों में साफ-साफ कहा है कि भारत को रूस पर अपनी निर्भरता घटानी चाहिए क्योंकि अमेरिका उसे हर मौके पर साथ देने को तैयार है। लेकिन क्या यह सच है? क्या भारत कभी अमेरिका पर रूस जैसा भरोसा कर सकता है? क्या भारत-अमेरिका कभी इतने करीब आ सकते हैं कि एक-दूसरे पर कभी किसी को संदेह नहीं हो? इन सवालों के जवाब कनाडा के साथ भारत के ताजा विवाद में मिलने लगे हैं। खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में हत्या हुई तो कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने सीधे-सीधे इसका आरोप भारत पर मढ़ दिया। उन्होंने कनाडाई संसद में कहा कि निज्जर की हत्या के पीछे भारत सरकार का हाथ होने का पुख्ता आरोप है। उनकी चालाकी देखिए, उन्होंने यह नहीं कहा कि भारत सरकार का हाथ होने का पुख्ता सबूत है। क्योंकि उनके पास पुख्ता क्या, कोई सबूत ही नहीं है। लेकिन अमेरिका को लगता है कनाडाई पीएम ट्रूडो ने कहा है तो सही ही कहा होगा। दरअसल, कनाडा आज भी अमेरिका की कॉलोनी की तरह ही व्यवहार करता है और बदले में अमेरिका हर सच-झूठ में कनाडा के साथ खड़ा रहता है। ऐसे में जब बात भारत की आई तो अमेरिका के दावे हवा-हवाई हो गए।

जो अमेरिका, भारत को रूस से भी बेहतर दोस्त बनने का सब्जबाग दिखा रहा था, उसकी कलई बहुत छोटे से मामले में खुल गई। किसी देश के खिलाफ युद्ध जैसी नौबत आने पर अमेरिका, भारत के साथ किस मजबूती के साथ खड़ो हो सकता है और किस कदर धोखा दे सकता है, इसका अंदाजा लगाना क्या अब भी मुश्किल है? अमेरिका ही नहीं, पूरे पश्चिमी जगत की दिक्कत यह है कि वो खुद को वैश्विक मुखिया मान बैठे हैं। वो आज भी इसी नशे में हैं कि उनका वचन ही आदेश है बाकी दुनिया के लिए। खासकर भारत जैसा देश तो कुछ दशक पहले तक एक पश्चिमी देश ब्रिटेन के गुलाम रहा था, तो फिर वो यह बात कैसे हजम कर सकते हैं कि भारत अब किसी का आदेश नहीं मानता, अपने नफा-नुकसान खुद सोचता है।

एक्सपर्ट्स कहते हैं कि अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे देश भारत विरोधी तत्वों को इसलिए पालते हैं ताकि भारत के साथ शक्ति संतुलन का कार्यक्रम चलता रहे। वो चीन को साधने के लिए भारत को मजबूत करना चाहते हैं, लेकिन उतना ही जितने में भारत आत्मनिर्भर न हो जाए। इधर, भारत ने पश्चिमी देशों की खोटी नीयत को भांपकर आत्मनिर्भरता के सूत्र को आत्मसात कर लिया है। उसे पता है कि अमेरिका ने कैसे एक के बाद एक, कई देशों को ‘इस्तेमाल करो और फेंको’ की नीति का शिकार बनाकर पूरी तरह तबाह-ओ-बर्बाद कर दिया। इसलिए आज का भारत मुखर भी हो गया है। उसने यूक्रेन युद्ध के वक्त भी पश्चिमी देशों की एक न सुनी बल्कि जिस किसी ने सुनाने की कोशिश की, उसे उल्टा ऐसा सुनाया कि बोलती ही बंद हो गई।

भारत का यही नया रूप पश्चिमी देशों को अखर रहा है। अब तो कहा जा रहा है कि भारत ने अमेरिका से यहां तक कह दिया- हरदीप सिंह निज्जर हो या गुरपतवंत सिंह पन्नू, इन खालिस्तानी आतंकियों पर कार्रवाई ही इसलिए नहीं हो रही क्योंकि इन्हें दरअसल अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए ने ही पाल रखा है। सोचिए, अमेरिका कभी कल्पना कर सकता था कि उसे भारत से ऐसे दो-टूक शब्दों में सच्चाई सुननी पड़ेगी! लेकिन वक्त का पहिया घूम चुका है, इसलिए अमेरिका को आगे भी भारत के ऐसे ही तेवर देखने होंगे।

अब संभव नहीं है कि अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देश अपने लिए अलग नियम बनाएं और बाकी देशों के लिए अलग। उन्हें खतरा महसूस हो तो इराक, ईरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, सीरिया जहां मर्जी हो घुसकर हत्या करें। पूरे-पूरे देश को तबाह कर दें लेकिन भारत को किसी देश की संप्रभुता के सम्मान का पाठ पढ़ाएं। अगर अमेरिका वाकई खुले मन से दोस्ती करने को आतुर होता तो वह भारत के लिए ‘खेल का अलग नियम’ निर्धारित नहीं करता। वह साफ कहता कि अगर कनाडा ने भारत की संप्रभुता को चुनौती देने वाले तत्वों को पाला है तो भारत का यह अधिकार है कि वो खतरे को खत्म करे। अमेरिका ने पाकिस्तान में भारत की सर्जिकल स्ट्राइक के वक्त ऐसा रुख दिखाया भी है, लेकिन बात अपनी कॉलोनी की आई तो रंग बदलने में देर नहीं लगी।

मतलब साफ है कि भारत से दोस्ती के लिए अमेरिका की कई शर्तें हैं, बेशर्त दोस्ती का मुकाम अभी नहीं आया है। इसलिए अमेरिका अभी रूस का दर्जा नहीं ले सका है। भविष्य में अमेरिका के मन में भारत के लिए सम्मानजनक साझेदार का भाव पनप पाएगा, कहा नहीं जा सकता। लेकिन अभी भारत के प्रति उसके मन में कई गांठें हैं, यह तो साफ दिख रहा है। इसलिए आत्मनिर्भर भारत की जरूरत और भी ज्यादा है। पता नहीं कब अमेरिका को आतंकियों के मानवाधिकार का भान हो जाए, कब उसे भारत में आततायी दिखने लगे, कब उस यहां अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होता दिखने लगे।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments