Tuesday, April 29, 2025
HomeIndian Newsक्या प्रणब मुखर्जी बनना चाहते थे प्रधानमंत्री?

क्या प्रणब मुखर्जी बनना चाहते थे प्रधानमंत्री?

आज हम आपको बताएंगे कि क्या प्रणब मुखर्जी प्रधानमंत्री बनना चाहते थे या नहीं! चार साल पहले देश के पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी हम सबको छोड़कर चले गए थे। एक लंबा राजनीतिक जीवन जिसमें उन्होंने काफी शोहरत और नाम कमाया। एक वक्त पर पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के नंबर 2 कहलाने वाले प्रणब दा के रिश्ते कुछेक मौकों पर छोड़कर सबसे मधुर ही रहे। प्रणब मुखर्जी को देश की राजनीति में सब मिला, लेकिन एक कसक हमेशा रही जो उनके इस संसार से विदा लेने के साथ सदा के लिए अधूरी रह गई। वह कसक थी देश का प्रधानमंत्री बनना। ऐसा भी नहीं था कि प्रणब दा को इतने सालों में मौके नहीं मिले, लेकिन शायद नियति ही कुछ और चाहती थी। आज हम उन तीन मौकों का जिक्र करेंगे, अगर वह भुना लिए जाते तो शायद प्रणब मुखर्जी भी देश के प्रधानमंत्रियों की लिस्ट में शुमार होते। साल 1984, अक्टूबर का वो महीना कांग्रेस पार्टी, गांधी परिवार और खुद प्रणब कभी उसे याद नहीं करना चाहेंगे। देश की पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की उन्हीं के दो अंगरक्षकों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। आग की तरह फैली इस खबर का पता कोलकाता में बैठे प्रणब मुखर्जी को भी लगा। अपनी पुस्तक ‘द टर्बुलेंट इयर्स: 1980-1996’ में, प्रणब मुखर्जी ने दिल्ली की अपनी यात्रा के बारे में बताया है। उन्होंने पुस्तक के बहाने से बताया कि कोलकाता से उड़ान भरने के बाद राजीव गांधी कॉकपिट में गए और वापसी की घोषणा की। उन्होंने इंदिरा गांधी की बात करते हुए कहा कि वह अब नहीं रहीं। उस वक्त पीएम कैंडिडेट का स्थान खाली हो गया। समझ नहीं आ रहा था किसे मौका दिया जाए। उस वक्त वरिष्ठता की सूची में प्रणब मुखर्जी थे और वहीं पीएम के लिए स्वाभाविक दावेदार थे।

प्रणब मुखर्जी ने पुस्तक में लिखा है कि मैंने प्रधानमंत्री नेहरू और बाद में शास्त्री के समय के उदाहरणों का हवाला दिया, जब वे कार्यालय में थे (क्रमशः 27 मई 1964 और 11 जनवरी 1966)। दोनों उदाहरणों को बाद उस वक्त गुलजारी लाल नंदा, को सबसे वरिष्ठ मानते हुए एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया था। यह दृष्टिकोण उस समय के राजनीतिक पर्यवेक्षकों की सामान्य समझ के अनुरूप था। यह ऐसा समय नहीं था जब कांग्रेस में गांधी परिवार ने पार्टी या पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार में निर्विवाद नेतृत्व का दावा हासिल कर लिया था।

उन्होंने अपनी किताब में लिखा कि मैं राजीव को विमान के पीछे ले गया और उनसे प्रधानमंत्री पद संभालने का अनुरोध किया। उनका मुझसे तुरंत सवाल था, ‘क्या आपको लगता है कि मैं यह पद संभाल सकता हूं?’ ‘हाँ,’ मैंने उनसे कहा, ‘हम सभी आपकी मदद करने के लिए हैं। आपको सभी का समर्थन मिलेगा।’ हालांकि, दिल्ली में उतरने के बाद और राष्ट्रपति ज्ञानी जौल सिंह द्वारा राजीव गांधी को शपथ दिलाने से पहले, कुछ बदल गया। राजीव गांधी ने प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस के समीकरण से बाहर कर दिया। प्रणब मुखर्जी और राजीव गांधी दोनों ने बाद में इसे असत्य के आधार पर पनपी गलतफहमी को जिम्मेदार ठहराया।

1980 के दशक के अंत में कथित बोफोर्स गन घोटाले पर अपने भरोसेमंद सहयोगी वीपी सिंह के विद्रोह के बाद प्रणब मुखर्जी राजीव गांधी से साथ फिर वापस आ गए। राजीव गांधी 1989 में सत्ता से बाहर हो गए लेकिन अगली दो सरकारें अल्पकालिक थीं और 1991 का लोकसभा चुनाव कुछ ही समय में था। प्रणब मुखर्जी फिर से कांग्रेस में नंबर दो थे और यह व्यापक रूप से अनुमान लगाया गया था कि यदि राजीव गांधी जीत हासिल करते हैं तो वे अगले वित्त मंत्री होंगे। तभी राजीव गांधी की हत्या चुनाव प्रचार के दौरान कर दी गई। कांग्रेस ने 1991 के चुनावों में लगभग बहुमत हासिल किया, जिसका श्रेय सहानुभूति वोट को दिया गया। प्रणब मुखर्जी फिर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवारों की सूची में शीर्ष पर दिखाई दिए, लेकिन कुछ साल पहले अत्यधिक महत्वाकांक्षी होने का आरोप लगने के बाद, प्रणब मुखर्जी ने इस बार धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा की।

कांग्रेस 2004 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की मुख्य पार्टी के रूप में सत्ता में आई। सोनिया गांधी भाजपा के उग्र विरोध के बावजूद प्रधानमंत्री बनने के लिए पूरी तरह तैयार दिख रही थीं। उन्होंने अंततः कुर्सी से इनकार कर दिया और मनमोहन सिंह उनके आग्रह पर प्रधानमंत्री बने। प्रणब मुखर्जी मनमोहन सिंह कैबिनेट में मंत्री के रूप में कार्य किया। यह एक अजीब मोड़ था। इंदिरा गांधी सरकार में वित्त मंत्री के रूप में, प्रणब मुखर्जी ने मनमोहन सिंह को RBI गवर्नर नियुक्त करने का आदेश पर हस्ताक्षर किया था। इस फैसले के बाद प्रणब मुखर्जी को इस बार मनमोहन सिंह के अंडर काम करना था। मनमोहन सिंह अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर लेफ्ट के साथ परेशानी में पड़ गए थे। मनमोहन सिंह ने वाम दबाव के आगे झुकने की तुलना में परमाणु समझौते पर सत्ता खोना ही बेहतर माना।

चुनाव पूर्व दिनों में अटकलें थीं कि प्रणब मुखर्जी अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं और मनमोहन सिंह राष्ट्रपति भवन से सेवानिवृत्त हो सकते हैं, लेकिन जब चुनाव परिणाम आया तो कांग्रेस 200-अंक के पार हो गई और वाम मोर्चा कमजोर हो गया। मनमोहन सिंह ने अपने पद को पांच साल और बरकरार रखा और यह प्रणब मुखर्जी थे, जो राष्ट्रपति भवन से सेवानिवृत्त हुए। प्रणब मुखर्जी ने इंडिया टुडे टीवी को दिए एक साक्षात्कार में कहा था कि मैं अपनी सीमाएं और अपना स्थान जानता था। चाहे मैं लोकसभा का सदस्य था या नहीं, मेरी दूसरी कमी यह थी कि मैं हिंदी में पारंगत नहीं था, और मेरा मानना है कि भारत के प्रधानमंत्री बनने के लिए, किसी को हिंदी में पारंगत होना चाहिए, जनता की भाषा।

Disclaimer:

Mojo Patrakar may publish content sourced from external third-party providers. While we make every reasonable effort to verify the accuracy, reliability, and completeness of this information, Mojo Patrakar does not guarantee or endorse the views, opinions, conclusions, or authenticity of content provided by these third-party entities. Such content is presented solely for informational purposes, and it is not intended to substitute professional advice or to serve as a comprehensive basis for decision-making.

Mojo Patrakar expressly disclaims any liability for errors, omissions, or inaccuracies that may arise from third-party content, as well as any reliance readers may place upon it. Users are strongly encouraged to conduct independent verification and consult with qualified professionals as necessary before making any decisions based on information obtained through Mojo Patrakar.

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments