यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या बीजेपी का गैर जाटों पर फोकस करना काम आया है या नहीं!हरियाणा में इस बार के विधानसभा चुनाव के शुरुआत रुझानों में बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है। पहले जहां कांग्रेस का बहुमत मिलता दिखाई दे रहा था। वहीं, ईवीएम की गणना के बाद से सत्तारूढ़ भाजपा तेजी से बहुमत हासिल करती दिखाई दे रही है। बीजेपी को इस चुनाव में जहां अपनी साख बचाने की टेंशन है तो वहीं, कांग्रेस 10 साल बाद सत्ता में वापसी के सपने देख रही है। पंजाब से अलग होकर 1966 में हरियाणा का गठन हुआ और उसके बाद से राज्य में जाटों की सियासत बेहद प्रभावशाली रही है। बीते 58 साल के इतिहास की बात करें तो हरियाणा में 33 सालों तक जाट समुदाय के नेताओं ने राज किया है। 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा के लिए मंगलवार को हो रही मतगणना के शुरुआती नतीजों में बीजेपी को बढ़त मिलती दिख रही है। हालांकि, यह शुरुआती रुझान है, मगर यह पूरे चुनावी नतीजों का ट्रेलर जरूर कहा जा सकता है। इसे समझते हैं। चुनावी विश्लेषक डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि हरियाणा में जाट आबादी करीब 27 फीसदी तो गैर-जाट 73 फीसदी है। इसके बाद भी जाट सबसे प्रभावशाली बने हुए हैं। वजह यह है कि 90 सदस्यीय विधानसभा सीटों में से लगभग 36 पर जाटों की मजबूत मौजूदगी है। वहीं, 10 लोकसभा सीटों में से 4 पर उनका असर काफी ज्यादा है। 2019 के विधानसभा चुनाव में जाट प्रभाव वाली ज्यादातर सीटें कांग्रेस जीतने में कामयाब रही और कुछ सीटें जेजेपी के खाते में गई थी। बीजेपी के कई दिग्गज जाट नेता चुनाव हार गए थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में जाट प्रभाव वाली तीन लोकसभा सीटें कांग्रेस ने जीती हैं।
प्रदेश के सियासी समीकरण को देखते हुए कांग्रेस ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा को आगे कर रखा है। इसके अलावा चौधरी बीरेंद्र सिंह से लेकर रणदीप सुरेजवाला जैसे जाट चेहरा भी हैं। बीजेपी ने जाट वोटों को साधने के लिए जरूर किरण चौधरी को आगे किया है। लेकिन जाट बेल्ट में पार्टी को वोट हासिल करने के लिए कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, बीजेपी के पास फिलहाल मजबूत और प्रभावशाली जाट चेहरा नहीं है। माना जा रहा है कि कारोबारियों और गैर जाट लोगों के बीच बीजेपी की यही रणनीति बेहद कारगर रही है।
हरियाणा में बीजेपी पिछले 10 सालों से सत्ता में है। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रदेश की 90 सीटों में से 47 सीटें जीतकर बहुमत की सरकार बनाई थीं। तब इंडियन नेशनल लोकदल ने 19 और कांग्रेस ने 15 सीटें जीती थीं। साल 2019 में बीजेपी ने दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। इस चुनाव में बीजेपी केवल 40 सीटें जीत पाई थी। तब 10 सीटें जीतने वाली जेजेपी के साथ बीजेपी ने गठबंधन सरकार बनाई थी। 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस ने 5-5 सीटें जीती थीं। पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी इन गैर-जाट समुदायों को लुभाकर सत्ता हासिल करती रही है।
डॉ. राजीव रंजन गिरि के अनुसार, बीजेपी को गैर-जाट पार्टी माना जाता रहा है। पिछले दो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजेपी इन गैर-जाट समुदायों को लुभाकर सत्ता हासिल करती रही है। हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा की 10 में से 5 सीटें बीजेपी और 5 सीटें कांग्रेस जीतने में सफल रही है। इस चुनाव में जाट और दलित समीकरण कांग्रेस के पक्ष में लामबंद रहा है और इसी फार्मूले पर विधानसभा चुनाव में उतरने का रोडमैप तैयार किया है। माना जा रहा है कि गैर जाटों पर फोकस करने की बीजेपी की रणनीति बेहद कारगर रही है। हरियाणा में जाट समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा है। कुल आबादी में 27 फीसदी संख्या जाटों की है। हरियाणा विधानसभा की कुल 90 विधानसभा सीटों में से 32 सीटों पर जाट समुदाय का काफी दबदबा है। साथ ही बाकी की 17 और सीटें पर भी जाटों का काफी प्रभाव है।
इस विधानसभा चुनाव में बीजेपी लोकल पार्टी जेजेपी से गठबंधन नहीं कर पाई है। इस चुनाव में बीजेपी को अपने वोट से ज्यादा भरोसा जाट वोट के बंटने पर है। इसी वजह से लोकसभा चुनाव में भी जेजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था। भाजपा इस बार दलित और गैर जाट वोटों को साधने की कोशिश में लगी है। हरियाणा में अधिकतर किसान जाट हैं। ऐसे में हो सकता है कि जेजेपी से गठबंधन न करना भी बीजेपी की रणनीति मानी जा सकती है, ताकि जाट वोट बंट जाएं।
बताया जा रहा है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए तीन मुद्दे मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। पहला-किसानों की नाराजगी, दूसरा-महिला पहलवानों के मामले में बढ़ा असंतोष और तीसरा-सत्ता विरोधी लहर। राजीव रंजन कहते हैं कि इस चुनाव में बीजेपी को इन तीनों मुद्दों पर थोड़ा नुकसान हो सकता है, मगर जातियों का गणित ऐसा है कि शायद उसे इससे ज्यादा फर्क पड़े।
राजीव रंजन गिरि के अनुसार, अभिनेत्री और हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट से बीजेपी सांसद कंगना रनौत ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान बांग्लादेश में हुए आंदोलन को भारत के किसान आंदोलन से जोड़ दिया था। उन्होंने कहा था-जो बांग्लादेश में हुआ है, वो यहा (भारत में) होते हुए भी देर नहीं लगती, अगर हमारा शीर्ष नेतृत्व सशक्त नहीं होता। यहां पर जो किसान आंदोलन हुए, वहां पर लाशें लटकी थीं, वहां रेप हो रहे थे, किसानों की बड़ी लंबी प्लानिंग थी, जैसे बांग्लादेश में हुआ। चीन, अमेरिका, इस तरह की विदेशी शक्तियां यहां काम कर रही हैं। इससे भी जाटों और किसानों में काफी नाराजगी थी। हालांकि, बीजेपी ने कंगना के बयान से दूरी बना ली थी। इस बयान को भी सोशल मीडिया पर एक धड़े ने जबरदस्त समर्थन दिया था।