पंकज त्रिपाठी को फिल्मों में कैसे मिला ब्रेक? जानिए महत्वपूर्ण बातें!

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पंकज त्रिपाठी एक ऐसे अभिनेता हैं जिन्होंने नेपोटिज्म की एक रीति को तोड़ कर रख दिया है! पंकज त्रिपाठी उन समर्थ हुए ईमानदार अभिनेताओं में से एक हैं, जिन्हे परकाया प्रवेश का गुण खूब आता है। पर्दे पर हर रंग के किरदार निभा चुके पंकज इन दिनों चर्चा में हैं, ओटीटी पर आने वाले अपने सीरीज क्रिमिनल जस्टिस 3 से। इसके पिछले दोनों भागों में उनका माधव मिश्रा का किरदार काफी पसंद किया गया।

किरदार माधव मिश्रा तो वही है, मगर इस बार सीजन 3 में एक नया केस होगा, एक नई दुनिया होगी। इस बार नया ये हैं कि जूविनाइल जस्टिस की बात है। इस बार मुद्दा बाल कानून का है। मेरे किरदार के साथ मेरे एक साले साहब का किरदार जुड़ा है। वो भी मजेदार है। अब जब मेरा किरदार माधव मिश्रा नई घटना के साथ पेश होगा, तो नया हो ही जाएगा। मैं माधव मिश्रा से बहुत रिलेट करता हूं, क्योंकि माधव मिश्रा जैसे लोग मेरे आस-पास हैं। मेरे रिश्तेदार, दोस्त और मैं खुद वैसा ही हूं, तो मैं माधव को निभाते हुए उन बारीकियों का भी इस्तेमाल करता हूं। एनएसडी (नैशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) के मेरे एक सीनियर ने कहा भी था कि ये अब तक का तुम्हारा सबसे महीन परफॉर्मेंस है। मैं खुद एक्टिंग का माधव मिश्रा था 15 साल पहले। बिहार से आया हुआ एक अभिनेता, जो अपनी जमीन तलाशने में लगा हुआ था। अब यहां माधव मिश्रा अभिनेता की जगह वकील है। माधव का सेन्स ऑफ ह्यूमर और सटायरनेस कमाल का है। परसाई (जाने-माने व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई) को पढ़ते हुए वो सटायर मेरे जीवन में भी आ गया है।

उन्होंने कहा कि एक एक्टर होने के नाते मुझे तो अपने सभी किरदार प्रिय हैं, मगर आप जब मेरे पसंदीदा तीन चरित्रों के बारे में पूछ रही हैं, तो बताना थोड़ा मुश्किल है, मगर फिर भी कोशिश करता हूं। एक तो न्यूटन का आत्मा सिंह दूसरा क्रिमिनल जस्टिस का माधव मिश्रा और तीसरे किरदार में मुझे टाई करना पडेगा गुड़गांव का केबी सिंह और मिर्जापुर का कालीन भैया के किरदार में। असल में होता ये है कि किरदार की जो मनोदश होती है, वो कुछ समय तक ऐक्टर के साथ चलती है, क्योंकि कलाकार इस चरित्र के साथ कई दिनों तक रहता है। कई बार यह समस्या भी होती है, क्योंकि यदि किरदार इंटेंस या जटिल है, तो आप भी कन्फ्लिक्ट्स का सामना करते हैं।

यहि नहीं वो बोले कि मैं अपने हॉस्टल में सो रहा था, तभी किसी गार्ड ने मुझे आकर जगाया कि मुझसे मिलने कोई आया है। मैं जब उनसे मिला तो उन्होंने पूछा कि कॉमिडी कर लेते हो, तो मैंने कहा, हां कर लेता हूं। वे बोले दो सीन का काम है। मैंने कहा, कितने पैसे मिलेंगे? वे बोले, 8 हजार। आठ हजार सुन कर मैं तो हिल गया। मैंने सोचा इतने पैसे? मैंने कहा, चलो, अभी चलो। तब मैं ऑटो में बैठकर तुरंत चल दिया था। वो फिल्म थी राम गोपाल वर्मा की रन। खैर उसके बाद, तो एक लंबा संघर्ष रहा। मगर फिर मुझे एक से बढ़कर एक यादगार चरित्र भी मिले।कई बार हम बाहर की चीजों पर ज्यादा फोकस करते हैं। अपने अंदर क्या घटित हो रहा है, उस पर भी ध्यान देना जरूरी होता है। हम लोगों को दिन का आधा घंटा अपने अंदर फोकस करना चाहिए। हमारे लिए ये जानना जरूरी है कि हमारे दिल में, शरीर में क्या घटित हो रहा है?हम लोगों को दिन का आधा घंटा अपने अंदर फोकस करना चाहिए। हमारे लिए ये जानना जरूरी है कि हमारे दिल में, शरीर में क्या घटित हो रहा है? हम लोगों ने बाहरी घटने वाली घटनाओं को लेकर स्ट्रेस लेना शरू कर दिया है। अब जैसे हमने फोन अपने रोजमर्रा के कामों को चलाने के लिए लिया था, मगर अब फोन हमें ही चलाने लगा है। उसके अलावा मैं आपके नवभारत टाइम्स में ही आने वाले अंतर्ज्ञान को रोजाना पड़ता हूं, उससे मुझे काफी संबल मिलता है। जहां तक अपने गांव जाने की बात है, तो ये सच है कि जब मैं अपनी मिट्टी की खुशबू के बीच अपने गांव जाता हूं, तो मुझे बहुत सुकून मिलता है। हम लोगों ने बाहरी घटने वाली घटनाओं को लेकर स्ट्रेस लेना शरू कर दिया है। अब जैसे हमने फोन अपने रोजमर्रा के कामों को चलाने के लिए लिया था, मगर अब फोन हमें ही चलाने लगा है। उसके अलावा मैं आपके नवभारत टाइम्स में ही आने वाले अंतर्ज्ञान को रोजाना पड़ता हूं, उससे मुझे काफी संबल मिलता है। जहां तक अपने गांव जाने की बात है, तो ये सच है कि जब मैं अपनी मिट्टी की खुशबू के बीच अपने गांव जाता हूं, तो मुझे बहुत सुकून मिलता है।