आज हम आपको बताएंगे कि हाल ही में हुआ कंचनजंगा ट्रेन हादसा आखिर कैसे हुआ! पश्चिम बंगाल में सियालदह जाने वाली कंचनजंगा एक्सप्रेस सोमवार सुबह न्यू जलपाईगुड़ी के पास हादसे का शिकार हो गई। उसे एक मालगाड़ी ने पीछे से टक्कर मार दी। कंचनजंगा एक्सप्रेस यहां खड़ी थी, जब पीछे से आ रही मालगाड़ी ने उसे टक्कर मार दी। मालगाड़ी से टक्कर होने के बाद ट्रेनों की 3 बोगियां पटरी से उतर गई। बताया जा रहा है कि ट्रेन के लोको पायलट ने सिग्नल को नजरअंदाज किया था। रेलवे बोर्ड की चेयरमैन जया वर्मा सिन्हा ने बताया कि कंचनजंगा ट्रेन का एक्सीडेंट हुआ है। ट्रेन हादसे के बाद हर बार इसकी चर्चा होती है, मगर बीते 20-22 साल से कवच को इंस्टॉल नहीं किया जा सका।कोहरे और धुंध में भी कई बार ट्रेन हादसे होते हैं। इसे रोकने के लिए जीपीएस आधारित फॉग पास डिवाइस बनाया गया है। यह डिवाइस सिग्नल, लेवल क्रॉसिंग गेट्स के बारे में पहले ही बता देता है।मालगाड़ी के ड्राइवर ने यात्री ट्रेन को टक्कर मारी। शुरुआती जानकारी से पता चला है कि मालगाड़ी के चालक ने सिग्नल की अनदेखी की थी। इस वजह से पैसेंजर ट्रेन के सबसे पीछे का गार्ड का डिब्बा पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया और आगे दो पार्सल वैन के डिब्बे थे, जो क्षतिग्रस्त हुए। आइए- समझते हैं कि भारत में ट्रेन हादसों की क्या वजहें होती हैं। रेलवे का संचालन करने, मेनटेन करने, ट्रेनों और ट्रैक को मैनेज करने वाले रेलवे का स्टाफ कई बार थकान, उपेक्षा, नाराजगी, भ्रष्टाचार से जूझता रहता है, जिससे उसके सेफ्टी नियमों और प्रक्रियाओं को नजरअंदाज करने का खतरा ज्यादा रहता है। यही मानवीय भूल या लापरवाही की बड़ी वजह बनती है।
मानवीय चूक या लापरवाही में अक्सर गलत सिग्नल दे देना, मिस कम्युनिकेशन, ओवर स्पीडिंग या खामियों को नजरअंदाज कर जाना जैसी बातें शामिल होती हैं।कई बार रेलवे के स्टाफ को पर्याप्त ट्रेनिंग या कम्युनिकेशन स्किल्स नहीं मिल पाती है। इससे उनके प्रदर्शन और कोऑर्डिनेशन पर असर पड़ता है। ट्रेनों की आवाजाही और दिशानिर्देश को कंट्रोल करने वाले सिग्नलिंग सिस्टम का फेल होना भी हादसे की वजह बनता है। इसके पीछे तकनीकी खामी, पावर की कटौती या मानवीय गलती भी होती है। गलत सिग्नल देने से ट्रेन गलत ट्रैक पर आ जाती है, जिससे उसके किसी दूसरी ट्रेन से टक्कर होने की आशंका बढ़ जाती है। बीते साल ओडिशा ट्रेन हादसे की अहम वजह यही थी। कई बार ट्रेन एक्सीडेंट की वजह मानव रहित क्रॉसिंग भी होते हैं। हालांकि, देश में ज्यादातर जगहों पर ये पुरातन व्यवस्था दूर की जा चुकी है, मगर कुछ जगहों पर यह अब भी चल रही है। 2018-19 में पूरे देश में सभी ट्रेन एक्सीडेंट में से 16 फीसदी की वजह यही मानव रहित क्रॉसिंग हैं।
रेलवे की ढांचागत खामियां भी अक्सर ट्रेन हादसों की वजह बनती हैं। इनमें ट्रैक का खराब होना, जर्जर पुल या बिजली के तारों का टूटना जैसी समस्याएं। दरअसल, इसके पीछे समय-समय पर मरम्मत न होना, ज्यादा पुराना होना, हिंसक प्रदर्शन या प्राकृतिक आपदाओं में ये चीजें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। दरअसल, रेलवे के ज्यादातर ढांचे 19वीं और 20वीं सदी के बने हुए हैं। इन्हें आधुनिक समय के हिसाब और नए मानकों के मुताबिक अपग्रेड नहीं किया जाता है तो ऐसे हादसे हो सकते हैं। रेलवे को कई जगहों पर फंड की कमी से भी जूझना पड़ता है। साथ ही भ्रष्टाचार भी बड़ा मसला है, जिससे रेलवे को दो-चार होना पड़ता है।रेलवे के कई रूट इतने व्यस्त रहते हैं कि वहां 100 फीसदी संचालन क्षमता के बावजूद भी काम प्रभावित होता है। दरअसल, इन बिजी रूट्स पर ओवरलोडिंग और काम का बोझ काफी ज्यादा रहता है।
रेलवे ने राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष बनाया गया है। 2017-18 में 1 लाख करोड़ रुपए के फंड से इसकी शुरुआत की गई थी। इसके तहत ट्रैक की मरम्मत, सिग्नलिंग प्रोजेक्ट्स, ब्रिज रिहैबिलेटेशन वगैरह की जाती है। यह एक स्वदेशी विकसित ऑटोमेटिक ट्रेन प्रोटेक्शन यानी कवच है, जिसके इंस्टॉल करने की बात बीते कई सालों से की जा रही है। ट्रेन हादसे के बाद हर बार इसकी चर्चा होती है, मगर बीते 20-22 साल से कवच को इंस्टॉल नहीं किया जा सका।कोहरे और धुंध में भी कई बार ट्रेन हादसे होते हैं। इसे रोकने के लिए जीपीएस आधारित फॉग पास डिवाइस बनाया गया है। यह डिवाइस सिग्नल, लेवल क्रॉसिंग गेट्स के बारे में पहले ही बता देता है। यह लोको पायलट को भी जोरदार आवाज के साथ अलर्ट करता है।