बीजेपी अखिलेश यादव को बार-बार तोड़ रही है! उत्तर प्रदेश की राजनीति में मोटे तौर पर देखें तो वर्तमान में एक तरफ भाजपा गठबंधन है, दूसरी तरफ सपा गठबंधन। बसपा भी है लेकिन जिस तरह का उसका प्रदर्शन है, उस लिहाज से वह वोट कटवा की स्थिति में ही दिख रही है। सत्तारूढ़ भाजपा के सामने विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा अखिलेश यादव हैं। कई मौके ऐसे आए हैं, जब अखिलेश यादव ने अपनी रणनीति से भाजपा को झटका दिया है। लेकिन प्रदेश की सियासत में भाजपा संगठन हमेशा इस चुनौती को पार कर जाती है। जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल के साथ संभावित गठबंधन भी इसी कड़ी का हिस्सा है। जयंत भाजपा के साथ गए तो अखिलेश यादव की पश्चिम उत्तर प्रदेश मुहिम को तगड़ा नुकसान हो सकता है। वैसे ये पहला मौका नहीं है जब भाजपा ने अखिलेश के सहयोगियों को ही पाले में कर लिया हो। 2018 के लोकसभा उपचुनाव से ये सिलसिला जारी है। याद कीजिए 2018 का वो लोकसभा उपचुनाव। 2017 में प्रचंड जीत हासिल करने के बाद भाजपा के हौसले बुलंद थे। गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन चुके थे। वहीं फूलपुर से सांसद केशव प्रसाद मौर्य डिप्टी सीएम बनाए जा चुके थे। दोनों ने ही संसदीय सीट से इस्तीफा दिया और विधान परिषद सदस्य चुन लिए गए। इसी गोरखपुर और फूलपुर सीट पर उपचुनाव 2018 को हुआ। उपचुनाव से पहले भाजपा उत्साह से लबरेज थी। माना जा रहा था कि ये चुनाव महज औपचारिकता ही हैं, गोरखपुर पहले से योगी का गढ़ माना जाता था, वहीं फूलपुर में केशव प्रसाद माैर्य भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रहे थे और अच्छी पकड़ मानी जाती थी। लेकिन भाजपा के ‘शोर’ के बीच समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव नई रणनीति के साथ मैदान में उतर रहे थे। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन का लाभ उन्हें नहीं मिला। बुरी हार के बाद अखिलेश ने छोटे दलों को साधने की नई रणनीति पर काम करना शुरू किया। इसी क्रम में निषाद पार्टी के साथ सपा ने गठबंधन किया और संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को गोरखपुर से सपा के सिंबल पर चुनाव मैदान में उतारा गया। वहीं दूसरी तरफ फूलपुर से अखिलेश ने नागेंद्र सिंह पटेल को चुनाव मैदान में उतारा।
अखिलेश की ये रणनीति सफल रही और भाजपा को गोरखपुर और फूलपुर दोनों जगह अप्रत्याशित करारी हार का सामना करना पड़ा। गोरखपुर की हार इतनी बड़ी थी कि 29 साल बाद पहली बार वहां गोरक्षपीठ का वर्चस्व टूटा था। प्रवीण निषाद ने भाजपा के उपेंद्र दत्त शुक्ला को मात दी। वहीं फूलपुर में नागेंद्र सिंह पटेल ने भाजपा के कौशलेंद्र सिंह पटेल को हरा दिया। इस जीत के बाद अखिलेश जश्न मना रहे थे, वहीं सकते में आई भाजपा अपनी नई रणनीति पर काम करने में जुट गई।
2019 का लोकसभा चुनाव आते-आते संजय निषाद की निषाद पार्टी समाजवादी पार्टी का साथ छोड़कर भाजपा के साथ चले गए। वही प्रवीाण निषाद जिन्होंने उपचुनाव में भाजपा को हराया था, 2019 के लोकसभा चुनाव में संत कबीर नगर से भाजपा के टिकट पर लड़े और आसानी से जीत गए। जाहिर है भाजपा ने अखिलेश यादव को पहला झटका दे दिया था। इसके बाद 2022 का चुनाव आते-आते अखिलेश ने अपने कुनबे में फिर से छोटे दलों को जोड़ने पर ध्यान केंद्रित किया। इसी क्रम में उन्होंने एक तरफ अपना दल कमेरावादी कमेरावादी की पल्लवी पटेल काे साथ लिया वहीं ओम प्रकाश राजभर की सुभासपा को जोड़ा।
अखिलेश की ओम प्रकाश राजभर को जोड़ने की रणनीति अच्छी मानी गई। क्योंकि 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ राजभर गठबंधन में थे और चार सीटें उनके खाते में आई थीं। वह भाजपा सरकार में मंत्री भी बनाए गए लेकिन अनबन होने के चलते बीच में ही गठबंधन से दूर हो गए थे। 2022 में अखिलेश ने उन्हें सपा के साथ गठबंधन में शामिल किया। इस चुनाव में दोनों दलों काे लाभ हुआ। ओम प्रकाश राजभर की सीटें बढ़कर 6 हो गईं। यही नहीं गाजीपुर से आजमगढ़ तक सपा के प्रदर्शन में ओम प्रकाश राजभर के साथ गठबंधन का विशेष योगदान भी माना गया। लेकिन चुनाव बाद भाजपा ने ओम प्रकाश राजभर को पाले में लाने की जुगत भिड़ाए रखी और आखिरकार राजभर की पार्टी सुभासपा एक बार फिर एनडीए में वापसी कर चुकी है।
प्रमुख दलों की बात करें तो अखिलेश यादव इस समय यूपी में कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल के साथ आगे बढ़ रहे थे। लोकसभा चुनाव से पहले सपा की तरफ से 7 सीटें रालोद को देने की बात भी आई। अखिलेश यादव की तरफ से कांग्रेस को भी 11 सीटें देने की बात कही गई हालांकि कांग्रेस की तरफ से कोई पुष्टि नहीं हुई। बहरहाल, पश्चिम उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल के साथ सपा की दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही थी। कारण ये था कि किसान आंदोलन से लेकर तमाम मुद्दों पर जयंत चौधरी ने कई जिलों में जमीन पर काफी मेहनत की। उसका फायद भी उन्हें विधानसभा चुनावों में मिला। 2022 के विधानसभा चुनाव में जयंत चौधरी की रालोद ने सपा गठबंधन के साथ मिलकर 8 सीटें जीतीं। महज एक सीट पर आ सिमटी रालोद के लिए ये बड़ी छलांग थी। ऐसे समय में जब बसपा जैसे दल के पास सिर्फ एक विधायक हैं, जयंत 8 विधायक लेकर मजबूती से खड़े हैं।
लेकिन भाजपा अखिलेश के इस मजबूत साथ को तोड़ने के लिए बैकडोर से प्रयास जारी रखी। हाल ही में खबरें आने लगीं कि जयंत चौधरी को भाजपा ने 4 सीटों का ऑफर दिया है। कुछ सीटों पर और बात चल रही है। इस बीच शुक्रवार को केंद्र सरकार ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा कर दी। जयंत लगातार इसके लिए प्रयासरत थे। घोषणा के फौरन बाद जयंत चौधरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक्स पर किए गए पोस्ट को रिपोस्ट करते हुए लिखा गया, ” दिल जीत लिया! “
इस बयान के बाद चर्चाएं तेज हैं कि जयंत चौधरी अब भाजपा में जा रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो अखिलेश यादव के लिए पश्चिम उत्तर प्रदेश में बुरी खबर ही कही जाएगी। किसान नेता चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा के बाद जयंत चौधरी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी लोगों की भावनाओं को समझते हैं। भाजपा से गठबंधन के सवाल पर जयंत ने कहा कि मैं किस मुंह से इंकार करूंगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेरे पिता अजित सिंह का सपना साकार किया है। प्रधानमंत्री देश की मूल भावना को समझते हैं। मेरे लिए यह यादगार और भावुक करने वाला पल है।