Friday, September 20, 2024
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क्या जातिगत जनगणना से राजनीति में हो रही है रार?

हाल ही में हुई जातिगत जनगणना की वजह से राजनीति में रार उत्पन्न हो गई है! बिहार सरकार ने पिछले दिनों जाति जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी थी। इसके बाद नीतीश-तेजस्वी समर्थक इस कदम को मास्टरस्ट्रोक बता रहे थे। लेकिन, इस जाति जनगणना के साइड इफेक्ट भी सामने आने लगे हैं। अलग-अलग जातियों के अंदर भी इसे लेकर लामबंदी की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसके अलावा कांग्रेस के अंदर टिकट को लेकर बेचैनी बढ़ी है। पीएम मोदी मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान ग्वालियर स्थित सिंधिया स्कूल जा सकते हैं। वहीं दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ है लेकिन पंजाब में अब भी दोनों पार्टियां साथ आने को तैयार नहीं हैं। आम चुनाव से पहले जाति जनगणना विपक्षी दलों का एक बड़ा मुद्दा बन गया है। अभी तक इसे लेकर विपक्षी खेमे में काफी जोश भी देखा जा रहा है, लेकिन आने वाले दिनों में स्थिति बदल सकती है। वजह यह है कि अब इसके साइड इफेक्ट सामने आने लगे हैं। जाति जनगणना के आंकड़े आने के बाद अलग-अलग जातियों के अंदर भी इसे लेकर लामबंदी की प्रक्रिया शुरू हो गई है। अचानक सभी दलों के अलग-अलग जातियों के नेता जाति सम्मेलन कराने लगे हैं। JDU नेता और बिहार सरकार में मंत्री अशोक चौधरी ने भीम सम्मेलन के आयोजन की तैयारी शुरू कर दी है। दूसरी ओर हाल में ही जेल से बाहर आए बाहुबली नेता आनंद मोहन अपने समर्थकों के साथ मीटिंग कर रहे हैं। इस बैठक में राजपूतों के अधिक से अधिक संख्या में आने की संभावना है। उधर, बेगूसराय में भूमिहार सम्मेलन हो रहा है। ब्राह्मणों का सम्मेलन भी अलग से हो रहा है। OBC वर्ग की भी कई जातियां सक्रिय हो चुकी हैं। इन सबका पहला टारगेट लोकसभा चुनाव में अपनी हिस्सेदारी लेना है। लेकिन बिहार में सवर्णों को सबसे अधिक चिंता सता रही है। जाति जनगणना के बाद संख्या के हिसाब से हिस्सेदारी की बहस छिड़ने के बाद उन्हें डर लग रहा है कि कहीं उनकी भागीदारी कम न हो जाए। बिहार में सभी दल सवर्णों को टिकट देते रहे हैं। राज्य की कुल 40 सीटों में अभी 8 राजपूत सांसद हैं।

कांग्रेस में इन दिनों टिकट वितरण चर्चा का विषय बना हुआ है। कर्नाटक चुनाव से शुरू हुआ प्रयोग इस बार पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान भी दिख रहा है। पार्टी ने इसके लिए अपने रणनीतिकार सुनील कोनोगुलु को हर सीट के लिए सबसे बेहतर और जिताऊ उम्मीदवार की लिस्ट देने को कहा। सुनील की टीम ने फीडबैक-सर्वे के आधार पर हाईकमान को हर राज्य से लिस्ट दी और उसी के हिसाब से उम्मीदवारों को टिकट बांटे जा रहे हैं। मगर इससे राज्यों के दिग्गज नेताओं में बड़ी बेचैनी फैल रही है। बात यह है कि इन नेताओं को भी पता नहीं रहता है कि किसे टिकट मिलेगा और किसका पत्ता कटेगा। लिस्ट को बहुत सीक्रेट रखा जा रहा है। इससे एक राज्य के बड़े नेता परेशान हैं। उन्होंने अपने तीन दर्जन समर्थकों को टिकट का वादा कर रखा है। वह इसलिए भी अपने लोगों को टिकट दिलाना चाहते हैं कि अगर चुनाव में जीत मिली तो उन्हें CM बनाने में उनके सुझाए गए और जीते हुए उम्मीदवार मदद कर सकें। लेकिन उन्हें इसका कोई अनुमान ही नहीं है कि उनके उम्मीदवारों में से कितनों को टिकट मिलेगा। अब लिस्ट में आया नाम उनके लिए एक लॉटरी की तरह ही होगा। वैसे, उन्होंने अपने सोर्स से लिस्ट के बारे में जानकारी लेनी चाही, मगर सोर्स भी दगा दे गया।

कि उनके उम्मीदवारों में से कितनों को टिकट मिलेगा। अब लिस्ट में आया नाम उनके लिए एक लॉटरी की तरह ही होगा। वैसे, उन्होंने अपने सोर्स से लिस्ट के बारे में जानकारी लेनी चाही, मगर सोर्स भी दगा दे गया।

विपक्षी दलों के नेताओं की सियासत पर तो नजर है ही, इन दिनों सुप्रीम कोर्ट पर भी सब नजदीक से नजर बनाए हुए हैं। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में ED से जुड़े PMLA कानून की समीक्षा को लेकर सुनवाई शुरू हो रही है। हाल के दिनों में ED की अधिकतर कार्रवाई इसी कानून के अंतर्गत हुई है। विपक्षी दलों के नेताओं का आरोप रहा है कि इस कानून के कारण जांच एजेंसी को तुरंत गिरफ्तारी का असीमित अधिकार मिला हुआ है, साथ ही जमानत भी जल्दी नहीं मिलती क्योंकि उसके रास्ते काफी कठिन और टेढ़े-मेढ़े हैं। दूसरा पक्ष यह भी है कि अगर कानून में ढिलाई बरती गई, तो फिर ED के लिए दिक्कत हो सकती है। एक विपक्षी दल के सीनियर नेता ने कहा कि कई नेता ED में नाम आने से डर रहे हैं। दरअसल, उस कानून के तहत पिछले कुछ सालों में जिस नेता को भी अरेस्ट किया गया, उसे जमानत मिलने में महीनों लग गए। यही वजह है कि वे सभी सुप्रीम कोर्ट पर एकटक नजर लगाए इससे जुड़ी सुनवाई पर ध्यान लगाए हुए हैं।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ग्वालियर स्थित सिंधिया स्कूल जा सकते हैं। यह राजनीतिक नहीं, बल्कि सरकारी कार्यक्रम होगा। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया इस कार्यक्रम में पीएम मोदी को लेकर जा रहे हैं। यह शायद पहली बार होगा कि इस स्कूल के कार्यक्रम में BJP के नेता शामिल होंगे। ज्योतिरादित्य सिंधिया इस कार्यक्रम में पीएम मोदी को ले जाने के लिए कितने उत्साहित हैं, उसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि उन्होंने इस कार्यक्रम की अनुमति पहले ही चुनाव आयोग से ले रखी है। चूंकि चुनावी अधिसूचना जारी होने के साथ ही आचार संहिता भी लागू हो जाती है, इसलिए ऐसा करना जरूरी था। बहरहाल, अब इस कार्यक्रम के भी मायने निकाले जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि चुनाव में इस बार BJP के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया की भी साख दांव पर लगी है। चुटकी ली जा रही है कि साख बचाने के लिए सिंधिया क्या कुछ नहीं कर बैठेंगे।

विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. में सबसे बड़ा सवाल टिकट वितरण को लेकर ही है। इसमें भी सबसे बड़ी बाधा कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच है। यहां भी मामला दिलचस्प दिख रहा है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की दिल्ली इकाई भले सार्वजनिक मंच पर गठबंधन के पक्ष में न दिखे, लेकिन पार्टी नेतृत्व अगर इसके लिए कहेगा तो उनका रुख इसे मान लेने का है। इसके उलट पंजाब में इन दलों के नेता कुछ सुनने को तैयार नहीं हैं। वे किसी भी सूरत में एक-दूसरे के लिए सियासी स्पेस नहीं छोड़ना चाहते। दोनों दलों का नेतृत्व गठबंधन करने से पहले स्थानीय नेताओं को विश्वास में लेना चाहता है, लेकिन अब तक इसमें कोई सफलता नहीं मिली है। इसके बाद दोनों दलों ने अपने कुछ खास नेताओं को इसके लिए उचित माहौल बनाने की जिम्मेदारी दी है। दरअसल, I.N.D.I.A. गठबंधन के नेताओं की मीटिंग में सभी इस बात पर सहमत हुए थे कि अगले साल आम चुनाव में वे साथ लड़ेंगे और विधानसभा चुनाव अपने-अपने स्पेस में लड़ेंगे। वे इसी बात का हवाला अपने स्थानीय नेताओं को दे रहे हैं। लेकिन अभी तक तो पंजाब में किसी तरह की सहमति के संकेत नहीं हैं।

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