यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अब चंद्रयान और मंगलयान के बाद शुक्रयान होने वाला है या नहीं! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) से जुड़े कई प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। कैबिनेट ने चंद्रयान 1, 2 और 3 की कड़ी में चंद्रयान 4 मिशन को भी हरी झंडी दे दी है। इसका मकसद चांद पर सफलतापूर्वक उतरने के बाद पृथ्वी पर वापस आने में प्रयोग होने वाली जरूरी टेक्नॉलजी का विकास करना है। साथ ही चंद्रमा से नमूने लाकर पृथ्वी पर उनका विश्लेषण करना है। चंद्रयान 4 मिशन चंद्रमा पर वर्ष 2040 तक भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों की लैंडिंग और सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस आने के लिए मूलभूत तकनीकी क्षमताओं को हासिल करना है। कैबिनेट ने चंद्रमा और मंगल के बाद शुक्र पर मिशन को मंजूरी दी है। इसके साथ ही गगनयान फॉलो ऑन मिशन और भारतीय अंतरिक्ष केंद्र के निर्माण को भी मंजूरी दी गई है। चंद्रयान 4′ मिशन के लिए तकनीक विकास के लिए कुल 2,104.06 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। अंतरिक्ष यान के विकास और प्रक्षेपण की जिम्मेदारी इसरो की है। उद्योग और शिक्षा जगत की भागीदारी से इस अभियान को मंजूरी मिलने के 36 महीने के भीतर पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। डॉकिंग/अनडॉकिंग, लैंडिंग, पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी और चंद्रमा के नमूना जुटाना और उनके विश्लेषण को पूरा करने के लिए ज़रुरी तकनीक तैयार होगी। सरकार का कहना है कि चंद्रयान 3 लैंडर की चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग के सफल प्रदर्शन ने कुछ अहम टेक्नॉलजी को स्थापित किया है और उन क्षमताओं का प्रदर्शन किया है, जो केवल कुछ ही दूसरे देशों के पास है। चंद्रमा के नमूने एकत्र करने और उन्हें सुरक्षित रूप से पृथ्वी पर वापस लाने की क्षमता के प्रदर्शन से ही सफल लैंडिंग मिशन का अगला कदम तय हो सकेगा। यह मिशन भारत को मानवयुक्त मिशनों, चंद्रमा के नमूनों की वापसी और चंद्रमा के नमूनों के वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण मूलभूत प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भर होने में सक्षम बनाएगा।
कैबिनेट ने शुक्र ग्रह संबंधी खोज और अध्ययन के लिए ‘वीनस ऑर्बिटर मिशन (शुक्रयान)’ के विकास को भी मंजूरी दे दी। अंतरिक्ष विभाग से संचालित ‘वीनस ऑर्बिटर मिशन’ में शुक्र ग्रह की कक्षा में एक अंतरिक्ष यान स्थापित करना शामिल होगा ताकि इसकी सतह व उपसतह, वायुमंडलीय प्रक्रियाओं और शुक्र के वायुमंडल पर सूर्य के प्रभाव को बेहतर ढंग से समझा जा सके। चंद्रमा और मंगल के बाद भारत ने शुक्र ग्रह के संबंध में विज्ञान के लक्ष्य निर्धारित किए हैं। कैबिनेट ने वैज्ञानिक जांच और शुक्र के वायुमंडल, भूविज्ञान को बेहतर ढंग से समझने तथा इसके घने वायुमंडल की जांच करके वैज्ञानिक डेटा जुटाने के लिए शुक्र पर मिशन को मंजूरी दी है। शुक्र, पृथ्वी का सबसे निकटतम ग्रह है और माना जाता है कि इसका निर्माण पृथ्वी जैसी ही परिस्थितियों में हुआ है, यह इस बात को समझने का अनूठा अवसर प्रदान करता है कि ग्रहों का वातावरण किस प्रकार बहुत अलग तरीके से विकसित हो सकता है।
कैबिनेट ने गगनयान कार्यक्रम का दायरा बढ़ाते हुए भारतीय अंतरिक्ष केंद्र की पहली इकाई के निर्माण को स्वीकृति दे दी है। भारतीय अंतरिक्ष केंद्र के पहले मॉड्यूल (बीएएस 1) के विकास और बीएएस के निर्माण और संचालन के लिए विभिन्न तकनीकों का विकास करने और मान्यता प्रदान करने के मिशन को मंजूरी दी गई है। भारतीय अंतरिक्ष केंद्र और पहले के मिशनों के लिए नए विकास और वर्तमान में जारी गगनयान कार्यक्रम को पूरा करने के लिए अतिरिक्त आवश्यकताओं को शामिल करने के लिए गगनयान कार्यक्रम के दायरे को बढ़ाया गया है। गगनयान कार्यक्रम में संशोधन करना और वर्तमान में जारी गगनयान कार्यक्रम के विकास के लिए एक अतिरिक्त मानव रहित मिशन और अतिरिक्त हार्डवेयर आवश्यकता को शामिल करना है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को आंशिक रूप से पुन: प्रयोज्य अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान एनजीएलवी के विकास को भी मंजूरी दे दी, जिसकी पेलोड क्षमता भार ले जाने की क्षमता इसरो के लॉन्च वीइकल मार्क 3 की तुलना में तीन गुना अधिक है। बता दें कि अंतरिक्ष यान के विकास और प्रक्षेपण की जिम्मेदारी इसरो की है। उद्योग और शिक्षा जगत की भागीदारी से इस अभियान को मंजूरी मिलने के 36 महीने के भीतर पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। डॉकिंग/अनडॉकिंग, लैंडिंग, पृथ्वी पर सुरक्षित वापसी और चंद्रमा के नमूना जुटाना और उनके विश्लेषण को पूरा करने के लिए ज़रुरी तकनीक तैयार होगी। उसने एनजीएलवी के विकास, तीन विकासात्मक उड़ानों, आवश्यक सुविधा, कार्यक्रम प्रबंधन और प्रक्षेपण अभियान के लिए 8,240 करोड़ रुपये आवंटित किए।