सरकार के द्वारा पिछले कुछ सालों से शिक्षा को अधिक महत्व दिया जा रहा है और शिक्षा के क्षेत्र में कई तरह के बदलाव किए जा रहे हैं. शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव की बात करें तो इसका सही उदाहरण कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट जिसे हम (CUET) के नाम से जानते हैं और नेशनल एजुकेशन पॉलिसी जिसे हम (NEP) के नाम से जानते हैं. इन्हीं बदलावों को देखते हुए सरकार ने एक नया फ़ैसला लिया है. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने और सभी राज्यों के प्रदेशों में एडमिशन के लिए उम्र तय कर दी गई है. इस उम्र के तहत पहली कक्षा में एडमिशन लेने वाले छात्र-छात्राओं की उम्र 6 साल होना लाज़मी है. सिंधी भाषा में बताएँ तो पेरेंट्स जब अपने बच्चे का पहली कक्षा में एडमिशन करवाएँगे तो उसी साल जुलाई के महीने में बच्चे का 6 साल पूरा होना चाहिए.
इस नियम को चुनने के बाद भी कई पेरेनटस के मन में बहुत सारे सवाल उत्पन्न हो रहे हैं, जेसैं अगर बच्चे का 6 वर्ष पूरे होने में एक-दो माह रह गया हैं तो बच्चे का एडमिशन कैसे होगा ? डिटेल में जानने के लिए आगे पढ़ें…..
इस बदलाव के कारण कई अनेक बदलाव आएँगे. जिसके बारे में (CBSE) सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ सेकेंडरी एजुकेशन के पूर्व अध्यक्ष और न्यू एजुकेशन पॉलिसी के सलाहकार रहे अशोक गांगुली जी से बात की गई है उन्होंने इस नियम के कई फ़ायदे बताए है.
जानें इस बदलाव के कारण क्या फ़ायदा होगा..
सभी लोग यह सोच रहे हैं कि आख़िर 6 साल की सीमा रखने पर क्या फ़ायदा होगा तो इसको लेकर अशोक गांगुली ने बात चीत करते हुए बताया है कि फिनलैंड, पश्चिमी देशों और डेनमार्क में एजुकेशन मॉडल की बहुत इज़्ज़त की जाती है और इन देशों में कक्षा एक में पढ़ने वाले बच्चों की उम्र की सीमा 7 साल रखी गई है. बात करते हुए यह भी बताया कि
वह इस टैबू को ख़त्म करना चाहते हैं
“सबसे पहले सरकार इस मान्यताओं और परंपराओं को ख़त्म करना चाहती है जिसमें लोग सोचते हैं कि अगर बच्चा सात साल का होगया है तो उसकी उम्र पहली कक्षा में एडमिशन के लिए ज्यादा हो जाएगी. भारत में रहने वाले लोग इस बारे में हमेशा बात करते हुए दिखते हैं की बच्चे की उम्र में क्या पढ़ाई कर रहे हैं. आज कल के लोगों को जल्दी बच्चे को स्कूल भेजने का ट्रेंड सा बन गया है. 6 साल का मतलब साढ़े पाँच साल है, यानि 6 साल का मतलब है 6 साल या छह साल से ज़्यादा.
बच्चे का 6 साल पूरे होने में कुछ माह बचे हो तो
(CBSE) सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ सेकेंडरी एजुकेशन के पूर्व अध्यक्ष मैं इसका जवाब दिया है कि कई देशों में बच्चों का नया शेसन अप्रैल से शुरू होता है लेकिन अगर बच्चा जुलाई माह में 6 साल का होने वाला है तो उसके उम्र की गणना अप्रैल से कर देनी चाहिए और वह बच्चा एप्रिल के शेशन में शामिल हो सकता है क्योंकि उसकी उम्र जुलाई में 6 साल हो जाएगी तीन महीने का आयु बहुत है इससे ज़्यादा की आयु नहीं देनी चाहिए.
अभी इस निगम को लेकर केंद्रीय विश्वविद्यालयों के संगठन, नवोदय विद्यालय के प्रिंसिपलस और प्राइमरी शिक्षा और शिक्षकों से इस नियम को लेकर चर्चा की जाएगी और फिर इस नियम को एक्सिक्यूट किया जाएगा. ऐसा श्री गांगुली जी ने कहा है.
स्कूल के हेड को मिलेगा अधिकार
रोहिणी की सर्वोदय विद्यालय की प्रधानाचार्य भारतीय कालरा ने कहा है कि ये 6 साल की सीमा का नियम बच्चों के लिए काफ़ी लाभदायक रहेगा और पेरेंट्स को उम्र को लेकर चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. स्कूल के प्रिंसिपल के पास कई अधिकार होते हैं. कुछ केसों में स्कूल प्रिंसिपल को फैसला लेने का अधिकार दिया जाता है. उम्मीद है कि (NEP) नेशनल एजुकेशन पॉलिसी के तहत भी यह अधिकार स्कूल आफ के पास रहेगा. जिसमें वो बच्चों के उम्र को लेकर फ़ैसला कर पाएंगे.
NEP से कैसे मिलेगा लाभ ?
(NEP) न्यू एजुकेशन पॉलिसी से बच्चों को शुरुआती साल में सीखने पर ज़ोर डाला जाता है इस एजुकेशन पॉलिसी में 3-5 वर्ष के बच्चों कि ज़रूरत पूरी होगी और फिर 5-6 साल की उम्र में बच्चे को स्कूली शिक्षा से जोड़ा जाएगा. इसमें इंटीग्रेटेड लर्निंग और खेल आधारित पाठ्यक्रम के माध्यम से बच्चो को शिक्षा दी जाएगी. ये NCERT द्वारा तैयार होगा. इसमें एक टास्कफोर्स भी बनेगा जिसमें महिला और बल विकास काम करेगा.