विधानसभा चुनावों से पहले जानिए हरियाणा की अद्भुत कहानी!

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आज हम आपको विधानसभा चुनावों से पहले हरियाणा की एक अद्भुत कहानी बताने जा रहे हैं! दिल्ली सल्तनत में एक गुलाम ने राज किया था। साल 1266 की बात है, जब यह गुलाम गयासुद्दीन मोहम्मद बलबन के नाम से अमीर मुसलमानों के सहयोग से दिल्ली गद्दी पर बैठा। बलबन इल्बरी तुर्क था, जो सुल्तान इल्तुतमिश का तुर्की का गुलाम था। बलबन को एक अमीर ख्वाजा जमालुद्दीन बसरी ने ने तुर्की से खरीदा था और उसे अपने साथ दिल्ली लाया। जब इल्तुतमिश ने ग्वालियर जीता तो उसने बलबन को खरीद लिया। अपनी योग्यता के बदौलत ही बलबन इल्तुतमिश और उसकी बेटी रजिया सुल्तान के दौर में अमीर-ए-शिकार जैसे उच्च पदों पर पहुंच गया। वह सुल्तान नसीरूद्दीन महमूद के समय में अमीर-ए-हाजिब बन बैठा और पूरे शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली। फिर 1266 में वह दिन भी आ गया, जब उसे दिल्ली की गद्दी नसीब हुई। वह इतना क्रूर और बेरहम था कि उसने हरियाणा के बागी और स्वतंत्र रहने वाले मेवातियों को कई बार कुचल डाला। जानते हैं मेवातियों के दिल्ली सल्तनत से लोहा लेने की कहानी। बलबन इतना नस्लभेदी आदमी था कि उसने प्रशासन में सिर्फ कुलीन लोगों को ही नियुक्त किया। वह कहता था कि जब मै किसी तुच्छ परिवार के व्यक्ति को देखता हूं तो मेरी नसों में खून खौलने लग जाता है। वह मेवातियों को भी बेहद नफरत भरे अंदाज में देखता था। वह उनका पूरी तरह सफाया करना चाहता था। दिल्ली की सल्तनत को सुरक्षित रखने और शांति बनाए रखने के लिए वह मेवातियों को धूल चटाना चाहता था, मगर वह अपने इस मंसूबे में कभी कामयाब नहीं हो पाया। मेवाती उसकी आंख की हमेशा किरकिरी बने रहे।

आधुनिक हरियाणा के फरीदाबाद, गुरुग्राम, महेंद्रगढ़ और राजस्थान के अलवर जिलों को मेवात क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र में रहने वाले लोग मेवाती कहलाते हैं। दिल्ली सल्तनत के दौरान सुल्तानों की मनमानियों के खिलाफ इन मेवातियों ने बागी तेवर दिखाए। मेवातियों ने दिल्ली के सुल्तानों की नींद हराम कर दी थी। सल्तनत के दौर के एक इतिहासकार मिनहाज के अनुसार, दिल्ली के तीसरे सुल्तान यानि नसीरूदीन महमूद के गद्दी पर बैठते ही मेवातियों ने अपने नेता मालवा के नेतत्व में विद्रोह कर दिया। हांसी के पास सुल्तान के एक कमांडर के खिलाफ आक्रमण किया और उसके ऊंटों पर लदे सामान लूटकर ले गए।

इतिहासकाज के अनुसार, जनवरी 1260 ई० में जब सुल्तान को मंगोलों के आक्रमणों से फुरसत मिली तो उसने उलूग खां यानी बलबन को बागी मेवातियों को सबक सिखाने भेजा। बलबन ने मेवात क्षेत्र में घेरा डाल दिया। उसने सैनिकों के बीच यह ऐलान किया कि जो भी किसी मेवाती का सिर लेकर आएगा उसे चांदी का एक टका मिलेगा। जिंदा पकड़कर लाने वाले को दो टके दिए जाएंगे। 20 दिन की लड़ाई के बाद मेवाती हार गए। 250 मेवाती पकड़े गए, जिन्हें हाथियों के पैरों के नीचे कुचलवा दिया गया।

एक इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी की किताब तारीखे-फिरोजशाही के अनुसार, मेवातियों के सरदार मलका की खाल उतरवाकर उसमें भूसा भर दिया गया और उसे दिल्ली दरवाजे के पास लटका दिया गया। बरनी कहता है कि उसने अपनी जिंदगी में इतना भयंकर दृश्य कभी नहीं देखा था, जितना दिल्ली द्वार हौज-ए-रानी पर देखा। हालांकि, इसके बाद भी मेवाती बागी बने रहे। बलबन ने मेवातियों के विद्रोह का दमन करने और पंजाब क्षेत्र में शांति कायम करने के बाद’जिल्ले-इलाही’ की उपाधि धारण की। उसने तुर्क प्रभाव को कम करने के लिए फारसी परंपरा पर आधारित ‘सिजदा’ (घुटने पर बैठकर सम्राट के सामने सिर झुकाना) और ‘पाबोस’ (पांव को चूमना) के प्रचलन को अनिवार्य कर दिया। वह अपने दरबार में वजीरों, अमीरों और सिपहसालारों को खड़ा रहने को मजबूर करता था। उसके सामने कोई बैठ नहीं सकता है। दरबार में सब खड़े ही रहते थे।

सुल्तान बनते ही बलबन ने मेवात के जंगलों को साफ करवाया क्योंकि इनमें मेवाती युद्ध के बाद छिप जाते थे। बरनी लिखता है कि बलबन ने सुल्तान बनने के बाद मेवात पर आक्रमण किए और वहीं डेरा डाले रखा। एक साल तक मेवातियों को ढूंढ़-ढ़ूढ़कर मौत के घाट उतारा जाता रहा। कहते हैं कि दिल्ली से मेवात तक खंभों पर मेवातियों के सिर काटकर रख दिए गए थे। वहीं, मेवातियों ने भी बलबन के 1 लाख सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। हालांकि, मेवातियों का विद्रोह इसके बाद भी नहीं थमा।

बलबन ने मेवात में स्थाई शांति कायम करने के लिए गोपालगीर में एक किला बनवाया और अपनी एक छोटी सैन्य टुकड़ी वहां रख दी। कई जगहों पर थाने बनवाए गए। बलबन खुद इसका दौरा करता था। बलबन के शासन के अंतिम दिनों में मेवाती फिर विद्रोही हो गए। एक अंग्रेज इतिहासकार सर वुलजले हेग कहते हैं कि कड़े दमनकारी कदमों के बाद भी बलबन मेवात को पूरी तरह शांत नहीं कर सका।

दिल्ली सल्तनत के दौर में सिकंदर लोदी के शासनकाल में आलम खां मेवाती दिल्ली के दरबार का एक महत्वपूर्ण अमीर था। इब्राहिम लोदी के समय में हसन खां मेवाती ने अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया। उसने एक बड़े राज्य की स्थापना की जिसमें मेवात यानी गुरुग्राम, फरीदाबाद, नारनौल और अलवर के आसपास के क्षेत्र शामिल थे। उसके पास 10,000 मेवातियों की एक सेना थी। वह एक तरफ दिल्ली के सुल्तानों से दोस्ती बनाए रखता था तो दूसरी ओर वह राजस्थान के राजपूत सरदारों से भी गठजोड़ बनाए रखता था। हसन खां दिल्ली सल्तनत का हमेशा वफादार बना रहा। यहां तक कि उसने पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी का साथ दिया। हालांकि, यह जंग इब्राहिम लोदी हार गया था।