Home Global News संयुक्त राष्ट्र की आम सभा (यूएनजीए) में भारत पाकिस्तान एक मंच पर कैसे आ गये ?

संयुक्त राष्ट्र की आम सभा (यूएनजीए) में भारत पाकिस्तान एक मंच पर कैसे आ गये ?

संयुक्त राष्ट्र की आम सभा (यूएनजीए) में भारत  पाकिस्तान एक मंच पर  कैसे आ गये  ?
भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध

संयुक्त राष्ट्र की आम सभा (यूएनजीए) में रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन पर हमले को लेकर निंदा प्रस्ताव 141-5 वोट से पास हो गया.

इस प्रस्ताव में कहा गया है कि रूस यूक्रेन से अपने सैनिकों को बिना शर्त वापस बुलाए. यूएजीए में कुल 193 देशों में से 141 देशों ने रूस के ख़िलाफ़ वोटिंग की और पाँच देशों ने रूस का साथ दिया. यूएनजीए में अपने ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास होने पर रूस के विदेश मंत्री ने कहा है कि उसे कई दोस्तों का साथ मिला और पश्चिम अलग-थलग करने में नाकाम रहा है.इन पाँचों में एक ख़ुद रूस भी है. 35 देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. इनमें भारत, पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश और श्रीलंका भी शामिल हैं.इससे पहले भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के ख़िलाफ़ निंदा प्रस्ताव पर हुई वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया था. यूएनजीए के दो दिन के विशेष आपातकालीन सत्र में वोटिंग से पहले 120 देशों, क्षेत्रों और संस्थानों यूक्रेन संकट पर अपना भाषण दिया था.

25 फ़रवरी को सुरक्षा परिषद में यह प्रस्ताव रूस के वीटो के कारण पास नहीं हो पाया था. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का भारत अस्थायी सदस्य है. भारत सुरक्षा परिषद में दो बार रूस के ख़िलाफ़ वोटिंग से चीन और यूएई के साथ बाहर रहा था. सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पास नहीं होने के बाद ही इसे संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में लाया गया था.

यूएनजीए में रूस के ख़िलाफ़ इस प्रस्ताव के 96 देश सह-प्रायोजक थे. इसे पास करने के लिए दो तिहाई बहुमत की ज़रूरत थी. 24 फ़रवरी को रूस ने यूक्रेन में विशेष सैन्य अभियान की घोषणा की थी.

यूएनजीए में पास किए गए प्रस्ताव में कहा गया है कि रूस की ओर से बलपूर्वक हासिल किए गए किसी भी क्षेत्र को मान्यता नहीं मिलेगी. इसके अलावा यूक्रेन से तत्काल, पूरी तरह और बिना शर्त के सैनिकों को वापस बुलाने के लिए कहा गया है.

यूएनजीए में वोटिंग से पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की फ़ोन पर बात हुई थी. सरकार का कहना है कि दोनों राष्ट्राध्यक्षों के बीच यूक्रेन में फँसे भारतीय छात्रों को सुरक्षित निकालने पर बात हुई थी.

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने भारत के वोटिंग से बाहर रहने के बाद कहा कि यूक्रेन में फँसे भारतीय नागरिकों और ख़ास कर छात्रों को सुरक्षित निकालना मुख्य प्राथमिकता है. तिरुमूर्ति ने टकराव वाले इलाक़ों में तत्काल युद्धविराम की अपील की और कहा कि मानवीय मदद पहुँचाने से नहीं रोकना चाहिए. भारत ने उम्मीद जताई है कि रूस और यूक्रेन के बीच दूसरे चरण की वार्ता में कुछ नतीजे निकलेंगे.

भारत की मुश्किल  क्या है ?

कहा जा रहा है कि रूस ने भारत को उसके हितों को लेकर असहज  कर दिया है . विश्लेषकों का कहना है कि भारत को पश्चिम और रूस के बीच संतुलन बनाने में काफ़ी मुश्किल हो रही है.भारत के लिए एक मुश्किल यह भी है कि चीन ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा की यथास्थिति अप्रैल 2020 से पहले की नहीं रहने दी है और भारत इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन बताता है.

जबकि रूस ने यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन किया तो भारत ने निंदा से परहेज़ किया. चीन के बारे में कहा जा रहा है कि रूस के साथ उसका खुलकर आना उसके हित में है लेकिन भारत के लिए सब कुछ इतना स्पष्ट नहीं है. पाकिस्तान का रूस के विरोध में वोट नहीं करने के बारे में कहा जा रहा है कि वह कोई नया ठिकाना खोज रहा है क्योंकि शीत युद्ध के दौरान जिस अमेरिकी खेमे में था, वहां उसके हित नहीं सध रहे हैं.बुधवार को तिरुमूर्ति ने कहा, ”भारत ने सभी सदस्य देशों से कहा है कि यूएन चार्टर के सिद्धांतों, अंतरराष्ट्रीय नियमों और संप्रभुता के साथ क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन नहीं करें.”

भारत पाकिस्तान एक साथ कैसे ?

यूएनजीए में रूस के ख़िलाफ़ वोटिंग से भारत के बाहर रहने पर कई विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया आ रही है. एशिया प्रोग्राम के उपनिदेशक और द विल्सन सेंटर में साउथ एशिया के असोसिएट माइकल कगलमैन ने ट्वीट कर कहा, ”भारत और पाकिस्तान यूएनजीए में रूस के ख़िलाफ़ वोटिंग से बाहर रहे लेकिन बांग्लादेश और श्रीलंका ने भी ऐसा ही किया. बांग्लादेश के संबंध शुरू से ही रूस से अच्छे रहे हैं.”

अंतरराष्ट्रीय संबंधों के अध्येता सैमुएल रमानी ने लिखा है, ”रूस के ख़िलाफ़ वोटिंग से भारत और पाकिस्तान दोनों का बाहर रहना एक अपवाद स्वरूप गठजोड़ है.”

अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू की नेशनल और डिप्लोमैटिक अफेयर्स एडिटर सुहासिनी हैदर ने लिखा है, ‘2017 में भारत ने अमेरिका के ख़िलाफ़ यरुशलम दूतावास ले जाने पर वोट किया था और भूटान वोटिंग से बाहर रहा था.”