दशहरा के दिन अपने संबोधन में क्या बोले आरएसएस के प्रमुख?

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हाल ही में आरएसएस के प्रमुख ने दशहरा के दिन अपना संबोधन दिया था! राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी समारोह के संबोधन में पूरे हिंदू समाज को संयमित व्यवहार करने की नसीहत दी। साथ ही कहा कि अगर किसी ने कुछ गलत किया है तो उसके लिए पूरे वर्ग को जिम्मेदार मानकर उपद्रव करना गलत है। संघ प्रमुख ने कहा कि समाज में विविधताएं हैं लेकिन यह अलगाव नहीं है ये विशिष्टता है। ऐसी बातों को लेकर आपस में लड़ना ठीक नहीं है। हम सब संवेदनशील रहते हैं इन बातों को लेकर वो ठीक है लेकिन उन्हें प्रकट करने का रास्ता संयम का होता है। कानून व्यवस्था को धत्ता बताकर उपद्रव करना, किसी ने कुछ गलत किया पूरे वर्ग को जिम्मेदार मानना ये गलत है। गुस्सा कितना भी हो असंयम से बचना चाहिए। भागवत ने कहा कि मन वाणी और कर्म से किसी की श्रद्धा का, श्रद्धा वाले स्थान का, महापुरुष, ग्रंथ, अवतारों, संतों का अपमान ना हो इसका ध्यान अपने व्यवहार में रखना चाहिए। अगर किसी से ऐसा हो गया तो भी खुद पर संयम रखना चाहिए। असंयम के बदले असंयम से संयम निर्माण नहीं होता। बैर से बैर की शांति नहीं होती। उन्होंने कहा कि संयत व्यवहार करना सीखें। सब बातों से ऊपर समाज की एकता और सद्भावना जरूरी है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 साल अगले साल हो जाएंगे। संघ अब समरसता और सद्भावना का अभियान तेज करेगा। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हिंदुओं में अलग अलग जातियों के लोगों को मिलकर रहने और एक दूसरे के संतों, त्योहारों को साथ मनाने की अपील की। संघ प्रमुख ने हिंदू समाज को एकजुट होने की अपील करते हुए कहा कि समाज को संगठित और सशक्त रहना चाहिए। दुर्बलों की परवाह देव भी नहीं करते। उन्होंने कहा कि हम शताब्दी वर्ष के बाद समाज में यह विषय लेकर जाएंगे। समाजिक समरसता और सद्भावना लेकर हम जाएंगे। भागवत ने कहा कि विषमता इतनी हो गई है कि हमने अपने संतों को, त्योहार को बांट दिया।उन्होंने कहा कि ये मैं किसी को लड़ाने या डराने के लिए नहीं कह रहा है, ये परिस्थिति है, इसलिए कह रहा हूं। बाल्मीकि जयंती बाल्मीकि बस्ती में ही क्यों पूरा हिंदू समाज बनाए। उन्होंने कहा कि मंदिर, पानी, श्मशान सबके लिए खुले हों, ऐसा वातावरण चाहिए। उन्होंने कहा कि संघ- समरसता, पर्यावरण, कुटुंबप्रबोधन, नागरिक अनुशासन और स्वदेशी, इन पांच चीजों को लेकर समाज में अभियान चलाएगा।

संघ प्रमुख ने कहा कि कई जगह कट्टरपंथ को उकसाकर उपद्रव किए जाते हैं। समाज में असंतोष के कई कारण हो सकते हैं। असंतोष को व्यक्त करने के तरीके भी संविधान में बताए हैं। उसका पालन होना चाहिए उसे ताक में रखकर और कहीं किसी ने कुछ किया और पूरे समाज को जिम्मेदार मानकर जो उपद्रव होते हैं, ये गुंडागर्दी होती है। कहीं ये समाज के कट्टरस्वभाव के कारण होती है कई बार कोई उपद्रवी लोग बीच में आकर ऐसा करते हैं। भागवत ने कहा कि गणेश उत्सव के दौरान विसर्जन के जुलूसों पर पथराव क्यों हुआ, कोई वजह नहीं थी। ऐसी बातों का नियंत्रण तुरंत करना प्रशासन का काम है। लेकिन समाज को तैयार रहना चाहिए, गुंडागर्दी किसी की नहीं चलने देनी है, अपना और अपनों का प्राण और वस्तु की रक्षा करना मूलभूत अधिकार है। जो पुलिस, प्रशासन को करना है वो उन्हें ही करने देना चाहिए लेकिन उनके आने तक अपनों के और अपने प्राण को बचाना अपना अधिकार है। उसके लिए समाज को सजग रहना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि ये मैं किसी को लड़ाने या डराने के लिए नहीं कह रहा है, ये परिस्थिति है, इसलिए कह रहा हूं।

संघ प्रमुख ने कोलकाता के हॉस्पिटल में हुए रेप केस का जिक्र करते हुए कहा कि एक द्रोपदी के वस्त्र को हाथ लगा महाभारत हो गया, सीता का हरण हुआ रामायण हो गया। लेकिन कोलकाता के आरजी कार हॉस्पिटल में क्या हुआ… समाज को कलंकित करने वाली घटना है। भागवत ने कहा कि मन वाणी और कर्म से किसी की श्रद्धा का, श्रद्धा वाले स्थान का, महापुरुष, ग्रंथ, अवतारों, संतों का अपमान ना हो इसका ध्यान अपने व्यवहार में रखना चाहिए। अगर किसी से ऐसा हो गया तो भी खुद पर संयम रखना चाहिए।घटना हो ही नहीं इसलिए चौकन्ना रहना चाहिए। लेकिन वहां घटना होने के बाद भी जिस तरह अपराधियों को संरक्षण देने की कोशिश हुई, ये जो अपसंस्कृति फैली है और उसके साथ अपराध और राजनीतिक का गठबंधन हो गया है उसका यह नतीजा है।