वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर काफी सवाल खड़े हो रहे हैं! 1977 का वक्त था, जब देश के मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए गए शामलाल शकधर। पोलिंग बूथ लूटे जाने से उन्हें यह आइडिया आया कि देश में आम चुनाव भी इलेक्ट्रॉनिक तरीके से हों। तब शकधर ने सरकार से चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक मशीनों के इस्तेमाल की संभावना तलाशने को कहा था। उनका यह विचार आखिरकार रंग लाया। केरल की पेरावायूर विधानसभा सीट पर मई, 1982 में चुनाव कराए गए, जिसमें इसके 123 पोलिंग बूथों में से 50 पर पहली बार परंपरागत बैलेट पेपर की जगह इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का इस्तेमाल किया गया। हालांकि, तब से अब तक EVM की हैकिंग और उसकी सुरक्षा में सेंध को लेकर सवाल उठते रहे हैं। बार-बार ईवीएम को अग्निपरीक्षा देनी पड़ी। सुप्रीम कोर्ट से लेकर चुनाव आयोग तक ईवीएम को पाक-साफ ठहरा चुका है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद विपक्षी दलों ने फिर ईवीएम को कटघरे में खड़ा किया है। विवाद तब शुरू हुआ, जब कांग्रेस ने आरोप लगाया कि मुंबई में एनडीए के एक प्रत्याशी के सहयोगी का मोबाइल फोन ईवीएम से जुड़ा था। इस विवाद में इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलट सिस्टम पर भी सवाल उठाए गए। इस विवाद में सरकार, विपक्ष, चुनाव आयोग और हजारों किलोमीटर दूर बैठे स्पेस एक्स के मालिक एलन मस्क भी कूद पड़े। इलेक्ट्रॉनिकली ट्रांसमिटेड पोस्टल बैलेट सिस्टम (ETPBS) सर्विस वोटर्स के लिए होता है। मतपत्रों की जगह इसका इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, वोट कभी इलेक्ट्रॉनिक रूप से नहीं भेजे जाते हैं। ETPBS से सर्विस वोटर्स को इलेक्ट्रॉनिक रूप से बैलेट पेपर इनक्रिप्टेड रूप में भेजे जाते हैं, जिसमें कई स्तरों पर पासवर्ड्स और पिन के इंतजाम होते हैं। रिसीव करने और डाउनलोड करने के बाद पोस्टल बैलेट्स पर अपना वोट दर्ज करता है। इसे फिर पोस्ट के जरिए संबंधित रिटर्निंग ऑफिसर को भेज दिया जाता है।
पहले हर सर्विस वोटर के लिए एक बैलेट पेपर प्रिंट किया जाता था। फिर उसे लिफाफे में रखकर सर्विस वोटर के पते पर भेजा जाता था। इसमें काफी वक्त और पैसा लगता था। अब यही बैलेट मेल के जरिए एनक्रिप्टेड रूप में सर्विस वोटर को मिलता है। चुनाव आयोग ने ETPBS के लिए एक पोर्टल बनाया है, जिसे संबंधित चुनाव अधिकारी लॉग इन कर सकते हैं। पोर्टल पर लॉग इन करने के लिए रिटर्निंग ऑफिसर संबंधित चुनाव अधिकारी के रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर एक ओटीपी भेजता है। इसके बाद रिटर्निंग ऑफिसर पासवर्ड प्रोटेक्टेड पोस्टल बैलेट संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के लिए तैयार करता है, जहां इसे डाउनलोड कर लिया जाता है। इसके बाद वहां से इसे संबंधित सर्विस वोटर को भेजा जाता है।
पोस्टल बैलेट की गणना ईवीएम से पहले होती है। काउंटिंग से पहले बैलेट पेपर के लिफाफे पर लिखे यूनीक सीरियल नंबर्स का मिलान किया जाता है। इसके बाद काउंटिंग ऑफिसर ETPBS में लॉग इन करता है। चुनाव आयोग ने 2017 में ऐसे ही आरोपों के जवाब में एक प्रेस रिलीज जारी कर कहा था कि ईवीएम कंप्यूटर कंट्रोल नहीं है। यह महज एक मशीन है, जो इंटरनेट या किसी नेटवर्क से कभी भी जुड़ी नहीं होती है। ऐसे में रिमोट डिवाइस से ईवीएम की हैकिंग नहीं की जा सकती है। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी भी अलग-अलग मीडिया प्लेटफॉर्मों पर ईवीएम में हैकिंग की बात को बेबुनियाद करार दे चुके हैं।
दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और चुनाव विश्लेषक राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि पहली बार 1982 में ईवीएम का इस्तेमाल होना शुरू हुआ था, तब से अब तक करीब 42 साल हो चुके हैं। हालांकि, इस दौरान ईवीएम को कम से कम 42 बार अग्निपरीक्षा भी देनी पड़ी। बार-बार ऐसे आरोपों या सवालों से संवैधानिक संस्थाएं कमजोर होती हैं। अब यह रुकना चाहिए, क्योंकि देश अब बैलेट पेपर से चुनाव कराने के लिए पीछे नहीं लौट सकता है। 2019 में विपक्ष के ईवीएम की हैकिंग के आरोपों पर जवाब देने के लिए पोल पैनल का गठन किया था। तब पोल पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ईवीएम टेंपर प्रूफ है। इससे छेड़छाड़ तभी संभव है, जब इस तक फिजिकली पहुंच हो और ईवीएम की सीलिंग प्रॉसेस को रोका जाए। हैदराबाद में मौलाना आजाद उर्दू यूनिवर्सिटी (MANNU) में प्रोफेसर और CSDS से जुड़े निशिकांत कोलगे के अनुसार, ईवीएम में छेड़छाड़ किसी भी सूरत में संभव नहीं है। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि इसे किसी इंटरनेट या वाई-फाई से कनेक्ट नहीं किया जा सकता है। इसे बेवजह का मुद्दा बनाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग भी इसे कई बार हरी झंडी दे चुका है।
2019 में विपक्ष के ईवीएम की हैकिंग के आरोपों पर जवाब देने के लिए पोल पैनल का गठन किया था। तब पोल पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ईवीएम टेंपर प्रूफ है। इससे छेड़छाड़ तभी संभव है, जब इस तक फिजिकली पहुंच हो और ईवीएम की सीलिंग प्रॉसेस को रोका जाए। हैदराबाद में मौलाना आजाद उर्दू यूनिवर्सिटी (MANNU) में प्रोफेसर और CSDS से जुड़े निशिकांत कोलगे के अनुसार, ईवीएम में छेड़छाड़ किसी भी सूरत में संभव नहीं है। इसके पीछे बड़ी वजह यह है कि इसे किसी इंटरनेट या वाई-फाई से कनेक्ट नहीं किया जा सकता है। इसे बेवजह का मुद्दा बनाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग भी इसे कई बार हरी झंडी दे चुका है।