आज हम आपको बताएंगे कि राहुल गांधी विपक्षी नेता बन पाएंगे या नहीं! कांग्रेस में यह मांग तेज हो रही है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में आना चाहिए। विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद पिछली दो लोकसभा में कांग्रेस 10 फीसदी सीटें भी नहीं ला पाई थी, जिसके चलते उसे नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला। इस बार पार्टी को 99 सीटें मिली है। इसके बाद कांग्रेस का नेता प्रतिपक्ष के पद का दावा बनता है। कांग्रेस के भीतर एक राय है कि राहुल गांधी को नेता प्रतिपक्ष बनना चाहिए। पिछले दिनों कांग्रेस वर्किंग कमिटी की मीटिंग से लेकर कांग्रेस संसदीय दल की बैठक तक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सहित तमाम नेताओं ने एक सुर से राहुल गांधी के सामने अपनी मांग रखी। इस मांग पर राहुल गांधी ने सोचने के लिए कुछ वक्त मांगा है। वैसे राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष बनने को लेकर पार्टी के भीतर मानना है कि अब वक्त आ गया है कि राहुल गांधी को आगे बढ़कर पार्टी को लीड करना चाहिए। पार्टी के एक सीनियर नेता का कहना था कि जिस तरह से राहुल गांधी ने अपनी भारत छोड़ो यात्रा के दौरान पार्टी की अगुआई की, पार्टी चाहती है कि वैसा ही नेतृत्व वह लोकसभा में पार्टी का करें। पार्टी का मानना है कि नेता प्रतिपक्ष के लिए राहुल गांधी पहली पसंद हैं और नेतृत्व की भूमिका में आने के लिए एक बेहतरीन मौका है।
पार्टी के एक अन्य नेता का कहना था कि पार्टी के भीतर यह राय पुख्ता है कि राहुल गांधी को अपने पिता वह पूर्व पीएम राजीव गांधी और मां सोनिया गांधी की तरह नेता प्रतिपक्ष बनकर सदन में लोगों के मुद्दे उठाने चाहिए। सूत्रों के मुताबिक, राहुल गांधी यह जिम्मेदारी लेते हैं तो इसका फायदा उन्हें और पार्टी दोनों को होगा। एक अहम सूत्र के मुताबिक, इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि राहुल के वायनाड छोड़ने से स्थानीय लोगों के बीच की नाराजगी को दूर करने का अच्छा तरीका रहेगा कि गांधी परिवार के किसी सदस्य को वहां से उतार दिया जाए।नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में आने के बाद विपक्षी खेमे के भीतर भी राहुल गांधी को लेकर सोच बदलेगी। यात्राओं ने राहुल गांधी को एक निर्विवाद जन नेता बना दिया है, जिसका लोहा सहयोगी दलों के साथ-साथ सत्तारूढ़ दल सहित देश भी मान रहा है। नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद उन लोगों की सोच भी बदलेगी, जो अब भी राहुल गांधी को लेकर असहज महसूस करते हैं।
राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में अपने परिवार की पारंपरिक सीट रायबरेली के साथ-साथ केरल के वायानाड से भी जीते हैं। उन्हें इन दोनों में से एक सीट छोड़नी होगी। हालांकि राहुल गांधी ने अभी तक यह साफ नहीं किया है कि वह कौन-सी सीट छोड़ेंगे। उन्होंने रायबरेली और वायनाड दोनों ही जगह अपनी धन्यवाद सभा में लोगों के सामने दोनों सीटों को लेकर मन में चल रही दुविधा का जिक्र किया था। माना जा रहा है कि राहुल गांधी वायनाड की सीट छोड़ सकते हैं। वायनाड को लेकर चर्चा है कि अगर राहुल यह सीट छोड़ते हैं तो प्रियंका गांधी चुनाव लड़ सकती हैं। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि राहुल के वायनाड छोड़ने से स्थानीय लोगों के बीच की नाराजगी को दूर करने का अच्छा तरीका रहेगा कि गांधी परिवार के किसी सदस्य को वहां से उतार दिया जाए।
बताया जाता है कि कांग्रेस की केरल इकाई की ओर से यह सुझाव आया है। रायबरेली को लेकर पार्टी के भीतर तर्क है कि पिछले 70 सालों से रायबरेली और पिछले साढ़े चार दशक से अमेठी से गांधी परिवार का लगातार रिश्ता रहा है। अगर राहुल यह सीट छोड़ते हैं तो गांधी परिवार का दशकों पुराना रिश्ता छूटेगा। राहुल गांधी को आगे बढ़कर पार्टी को लीड करना चाहिए। पार्टी के एक सीनियर नेता का कहना था कि जिस तरह से राहुल गांधी ने अपनी भारत छोड़ो यात्रा के दौरान पार्टी की अगुआई की, पार्टी चाहती है कि वैसा ही नेतृत्व वह लोकसभा में पार्टी का करें। पार्टी का मानना है कि नेता प्रतिपक्ष के लिए राहुल गांधी पहली पसंद हैं और नेतृत्व की भूमिका में आने के लिए एक बेहतरीन मौका है।दूसरी ओर एक तर्क यह भी है कि साल 2009 के बाद कांग्रेस ने यूपी में इतना अच्छा प्रदर्शन किया है। 2009 में कांग्रेस को 21 सीटें मिली थीं, जबकि पिछले दो बार से यूपी में क्रमशः दो और एक सीट लाने वाली कांग्रेस इस बार छह सीटों पर जीती है।