Tuesday, December 3, 2024
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क्या साल 2024 रहा है सबसे ज्यादा गर्म?

यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या साल 2024 सबसे ज्यादा गर्म रहा है या नहीं! साल 2024 मानवता के इतिहास में सबसे गर्म साल बनने की राह पर तेजी से बढ़ रहा है। इस साल के जून, जुलाई और अगस्त धरती पर सबसे गर्म महीने रहे। मौसम की निगरानी से जुड़ी यूरोपीय संघ की संस्था कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (C3S) की रिपोर्ट में यह डरावनी तस्वीर उभरी है। रिपोर्ट में चेताया गया है कि धरती अनुमान से कहीं अधिक तेजी से गर्म हो रही है। गर्मी की यह तीव्रता और बढ़ेगी। अगर सितंबर से दिसंबर तक तापमान सामान्य से 0.30 डिग्री सेल्सियस कम रहता है तो 2024 को सबसे गर्म साल बनने से रोका जा सकता है, लेकिन इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ। रिपोर्ट के अनुसार, इस साल जून से अगस्त तक वैश्विक तापमान में औसत बढ़त 1.5 डिग्री के स्तर को पार कर गई। अगस्त 2024 तो वैश्विक स्तर पर सबसे ज्यादा गर्म रहा। जमीनी सतह पर हवाओं का औसत तापमान 16.82 डिग्री सेल्सियस रहा। यह सामान्य से 0.71 डिग्री अधिक है। प्री इंडस्ट्रियल एरा यानी औद्योगीकरण युग से पहले से तुलना करें तो तापमान 1.51 डिग्री अधिक गर्म रहा। अहम बात यह है कि बीते 14 महीनों में यह 13वां महीना है, जब वैश्विक औसत तापमान प्री इंडस्ट्रियल एरा की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म रहा।

बीते 12 महीनों यानी सितंबर 2023 से अगस्त 2024 के बीच वैश्विक औसत तापमान सबसे ज्यादा रहा। ये धरती के सबसे गर्म 12 महीने रहे हैं। इस दौरान औसत तापमान सामान्य से 0.76 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा। वहीं प्री इंडस्ट्रियल एरा (1850-1900) की तुलना में यह 1.64 डिग्री अधिक गर्म रहा। 2024 में जनवरी से अगस्त के बीच वैश्विक तापमान औसत से 0.70 डिग्री ज्यादा गर्म रहा। यह 2023 के मुकाबले 0.23 डिग्री अधिक गर्म है। इससे पहले सबसे गर्म साल का रेकार्ड 2023 के नाम था। यूरोप में औसत तापमान सबसे अधिक रहा। वहां अगस्त 2024 सामान्य से 1.57 डिग्री सेल्सियस ज्यादा गर्म रहा। यूरोप में यह दूसरा सबसे गर्म अगस्त रहा। इससे पहले 2022 में अगस्त में तापमान सामान्य से 1.73 डिग्री अधिक गर्म रहा था। यूरोप के अलावा पूर्वी अंटार्कटिका, टेक्सस, मेक्सिको, कनाडा, नार्थ-ईस्ट अफ्रीका, ईरान, चीन, जापान और ऑस्ट्रेलिया काफी गर्म रहे। वहीं, पूर्वी रूस, अलास्का, अमेरिका के पूर्वी हिस्सा, साउथ अमेरिका का कुछ हिस्सा सामान्य से कम गर्म रहे।

अगस्त 2024 औसत तौर पर शुष्क महीनों में शामिल रहा। यूरोप में सदर्न यूके, आयरलैंड, आल्प्स, पश्चिमोत्तर रूस आदि में सूखे की स्थिति रही और जंगलों में आग लगी। वहीं, ईस्टर्न नॉर्थ अमेरिका, सेंट्रल रूस, ईस्टर्न चीन, ईस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में ज्यादा बारिश हुई। भारतीय उपमहाद्वीप में मॉनसूनी बारिश अच्छी हुई। आर्कटिक सागर में बर्फ सामान्य से 17% कम रही। सबसे कम बर्फबारी वाला वाला चौथा अगस्त रहा। यही नहीं आपको बता दें कि अपनी खास बनावट के लिए जाने जाने वाले ओम पर्वत पर बर्फ से बनी ‘ऊं’ की आकृति हट गई है। एक्सपर्ट के अनुसार इसका हटना वैश्विक और स्थानीय पर्यावण के संकट को दर्शा रहा है। अगस्त के तीसरे हफ्ते में यह बर्फ गायब हुई थी। वैज्ञानिकों के अनुसार, इसे जलवायु परिवर्तन के असर के तौर पर देखा जा सकता है।ओम पर्वत भारत, चीन और नेपाल की सीमा से लगा हुआ है और समुद्र तल से करीब 5900 मीटर ऊंचाई पर है। यह पर्वत कैलाश मानसरोवर यात्रा का महत्वपूर्ण पड़ाव भी है। चीन सीमा से सटे लिपुलेख तक सड़क बनने के बाद यहां पर्यटकों की संख्या भी बढ़ गई।

अल्मोड़ा के जीबी पंत इंस्टीट्यूट में सेंटर फॉर एनवायरमेंटल असेसमेंट एंड क्लाइमेट चेंज सेंटर के जेसी कुनियाल के अनुसार, विश्वभर में मौसमी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। जलवायु परिवर्तन का असर ओम पर्वत पर भी दिखाई दिया है। वैश्विक तापमान बढ़ रहा है और ग्लेशियर इससे सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि जंगलों में आग की घटनाएं और इसका दायरा बढ़ रहा है। जंगल की आग से निकला ब्लैक कार्बन ग्लेशियर पर असर डालता है। ग्लेशियर की अच्छी सेहत के लिए उसके नीचे के बुग्यालों में अच्छी घास होनी चाहिए। अल्पाइन क्षेत्र में वनों की सेहत अच्छी होनी चाहिए। इन सबसे तापमान संतुलित रहता है। इन सबको मिलाकर एक साथ देखने की जरूरत है।

UN की 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिमालयी क्षेत्र के एक तिहाई ग्लेशियरों पर ग्लोबल वार्मिंग का संकट है। तापमान बढ़ने से 2000 से ग्लेशियर के पिघलने की दर बढ़ गई है। ग्लेशियर्स से 58 बिलियन टन बर्फ हर साल कम हो रही है। यह फ्रांस और स्पेन में होने वाले पानी की कुल खपत के बराबर है। वहीं द इंटरनैशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेडेट माउंटेन डिवेलपमेंट ICIMOD के अनुसार तापमान बढ़ने की दर हिंदुकुश हिमालयी क्षेत्र में वैश्विक दर से काफी अधिक है। साल 2023-24 की सर्दियों में समूचे क्षेत्र में रेकॉर्ड कम बर्फबारी हुई। खास तौर पर पश्चिमी हिमालय में कम या बिलकुल बर्फबारी नहीं हुई।

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