पश्चिम बंगाल सरकार में मंत्री रहे पार्थ चटर्जी की सहयोगी अर्पिता मुखर्जी के घर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की छापेमारी सुखिर्यों में है। अब तक 53 करोड़ रुपये से ज्यादा कैश और पांच किलो से ज्यादा सोना बरामद हो चुका है। कयास लगाए जा रहे हैं कि कैश का आंकड़ा 100 करोड़ तक जा सकता है। कमरों में फर्श पर पड़ी नोटों की गड्डियां देख हर कोई हैरान है। जो इसे देख रहा, वो यही सवाल कर रहा कि आखिर अब इन नोटों की गड्डियों का क्या होगा?
पहले जानिए वह घोटाला, जिसमें फंसे पार्थ चटर्जी-अर्पिता मुखर्जी
क्या थे दोनों संस्थाओं के हलफनामे में?
एसएससी ने अपने हलफनामे में कहा कि उसने अपनी ओर से किसी भी नियुक्ति के लिए चिट्ठी नहीं जारी की, जबकि डब्ल्यूबीएसएसई ने कहा कि उसे एक पेन ड्राइव में डेटा मिला था। इसी के तहत इन लोगों की नियमानुसार नियुक्ति हुई थी।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि एसएससी पैनल का कार्यकाल खत्म होने के बाद बंगाल बोर्ड में 25 नहीं बल्कि 500 से ज्यादा लोगों को नियुक्त कर दिया गया। इनमें से ज्यादातर अब राज्य सरकार से वेतन ले रहे हैं। मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है।
कैसे हुई ईडी की एंट्री, निशाने पर क्यों आए पार्थ और अर्पिता?
ईडी ने इस मामले में मई में जांच शुरू कर दी। 22 जुलाई को ही एजेंसी ने पार्थ चटर्जी के ठिकानों समेत 14 जगहों पर छापेमारी की। पार्थ चटर्जी के ठिकानों पर छापेमारी के दौरान ईडी को अर्पिता मुखर्जी की प्रॉपर्टी के दस्तावेज मिले थे।
इसके बाद ईडी ने जांच का दायरा बढ़ाया और अभिनेत्री अर्पिता मुखर्जी के फ्लैट पर छापेमारी की।
एजेंसी को अर्पिता के फ्लैट से करीब 21 करोड़ रुपए कैश, 60 लाख की विदेशी करेंसी, 20 फोन और अन्य दस्तावेज मिले। इसके बाद ईडी ने बुधवार को अर्पिता के दूसरे ठिकानों पर छापेमारी की। ईडी को अर्पिता के घर से 27.9 करोड़ रुपए कैश और सोना मिला है। इस तरह से कुल 53 करोड़ से ज्यादा की रकम मिल चुकी है।
अब जानिए ईडी के पास क्या-क्या अधिकार है?
ये समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता चंद्र प्रकाश पांडेय से संपर्क किया। उन्होंने कहा, ‘ईडी को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 के तहत संपत्ति जब्त करने का अधिकार है। जांच एजेंसी जिस कानून के तहत काम करती है, उसी के तहत उसे छापा मारने, जब्त करने और जब्त सामान को मालखाने या भंडारघर में जमा करने का अधिकार होता है।’
उन्होंने बताया, ‘छापे में कई चीजें बरामद हो सकती हैं। इनमें दस्तावेज, कैश और गहने व अन्य कीमती सामान मिल सकते हैं। छापेमारी में जब्त की गई चीजों का पंचनामा बनाया जाता है। इसके बाद पंचनामे पर दो स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर होते हैं। जिस व्यक्ति का सामान जब्त होता है, उसके भी हस्ताक्षर होते हैं। पंचनामा बनने के बाद जब्ती का सामान केस प्रॉपर्टी बन जाता है।
जब्त किए गए कैश, गहने और संपत्ति का क्या करती है ईडी?
किसी के पास से जब्त की गई रकम को ईडी अपने साथ ले जाती है। उसमें से जो रकम सबूत के तौर पर कोर्ट में पेश करने होते हैं, उन्हें सील बंद लिफाफे में रख दिया जाता है। बाकी रकम केंद्र सरकार के खाते में जमा कर दी जाती है।
कोर्ट का फैसला आने के बाद तय होता है कि उस रकम का क्या होगा? कोर्ट में जांच एजेंसी को साबित करना होता है कि जब्त किया गया कैश या अन्य संपत्ति गैर कानूनी या गलत ढंग से हासिल की गई है। अगर एजेंसी ये साबित नहीं कर पाती है तो उसे जब्त की गई पूरी रकम लौटानी होती है। वहीं, अगर एजेंसी आरोप साबित कर देती है तो सरकार पूरी रकम अपने पास रख सकती है या कुछ जुर्माना लगाकर उसे वापस कर सकती है।
इसी तरह ईडी के पास प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट 2002 के सेक्शन 5 (1) के तहत संपत्ति को अटैच करने का अधिकार है। अदालत में संपत्ति की जब्ती साबित होने पर इस संपत्ति को पीएमएलए के सेक्शन 9 के तहत सरकार कब्जे में ले लेती है। जब ईडी किसी की प्रॉपर्टी को अटैच करती है, तो उस पर बोर्ड लगा दिया जाता है, जिस पर लिखा होता है इस संपत्ति की खरीद-बिक्री या इसका इस्तेमाल नहीं हो सकता है।
कई मामलों में घर और कॉमर्शियल प्रॉपर्टी को अटैच किए जाने पर उनके इस्तेमाल को लेकर छूट भी है। पीएमएलए के तहत ईडी अधिकतम 180 दिन यानी 6 महीने के लिए किसी संपत्ति को अटैच कर सकती है। अगर तब तक ईडी संपत्ति अटैच करने को अदालत में वैध नहीं ठहरा पाती है तो 180 दिन बाद संपत्ति खुद ही रिलीज हो जाएगी, यानी वो अटैच नहीं रह जाएगी।