Friday, May 17, 2024
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आखिर कांग्रेस में क्या अहमियत रखते हैं के सी वेणुगोपाल?

आज हम आपको बताएंगे कि के सी वेणुगोपाल कांग्रेस में क्या अहमियत रखते हैं! कांग्रेस के संगठन महासचिव के. सी. वेणुगोपाल काफी चर्चा में हैं। यह चर्चा तारीफ से ज्यादा आलोचना के रूप में हो रही है। हाल ही में कांग्रेस से निकाले गए मुंबई के मुखर नेता संजय निरूपम ने के. सी. वेणुगोपाल को लेकर न सिर्फ जमकर निशाना साधा, बल्कि उन्हें पार्टी का पांचवां पावर सेंटर तक करार दिया। निरूपम का कहना था कि पार्टी में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के अलावा सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी के बाद अगला पावर सेंटर वेणुगोपाल हैं। यह कोई पहला मौका नहीं था, जब पार्टी छोड़ने वालों ने उन पर ऐसे आरोप लगाए हों। इससे पहले भी कुछ लोग वेणुगोपाल की ओर इशारा कर चुके हैं। संगठन के भीतर उनके बढ़ते कद और वर्चस्व को लेकर उनकी तुलना लगभग दो दशकों तक सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव रहे अहमद पटेल से होने लगी। वेणुगोपाल राहुल गांधी के काफी करीबी और भरोसेमंद माने जाते हैं। अशोक गहलोत के बाद जब राहुल गांधी ने तमाम सीनियर नेताओं की वरिष्ठता को दरकिनार करते हुए दक्षिण से आए अपेक्षाकृत इस युवा चेहरे को संगठन महासचिव जैसी अहम जिम्मेदारी दी तो पार्टी के भीतर तमाम नजरें तिरछी हुई थीं। समय के साथ वेणुगोपाल इतने मजबूत होते चले गए कि पार्टी के भीतर बाकायदा उनका एक कैंप माना जाने लगा, जिसमें तमाम लोग उनकी गुड लिस्ट में अपनी जगह बनाने के लिए कड़ी मशक्कत करते दिखे। ऐसा नहीं है कि वेणुगोपाल सिर्फ पार्टी छोड़ने वालों के ही निशाने पर हों, बल्कि पार्टी के भीतर भी कई लोग असंतुष्ट बताए जाते हैं।

पार्टी के भीतर उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने संगठन महासचिव के दायरे से आगे जाकर पावर हाथ में लेने की कोशिश की है। ऐसा ही एक उदाहरण पार्टी के भीतर कांग्रेस अध्यक्ष और संगठन के चुनाव से जुड़ी एआईसीसी डेलीगेट्स बनाने की प्रक्रिया लेकर दिया जाता है। इसकी लिस्ट वेणुगोपाल की ओर से उनके दस्तखत से जारी की गई है। डेलिगेट्स बनाने का काम पार्टी के केंद्रीय चुनाव संघ का होता है। उनके आलोचकों का कहना था कि पार्टी के आज तक के इतिहास में यह पहला मामला होगा, जहां एआईसीसी डेलिगेट्स की लिस्ट सीईए की बजाय संगठन महासचिव की ओर से जारी की गई हो। यह वेणुगोपाल के बढ़ते प्रभाव का ही संकेत है कि वह पार्टी की तमाम अहम मीटिंग में अक्सर शामिल रहते हैं। पार्टी ने उन्हें I.N.D.I.A. की समन्वयक टीम में भी रखा है। राहुल गांधी से उनकी नजदीकी का संकेत इससे भी मिलता है कि 2019 में यह वेणुगोपाल ही थे, जिन्होंने राहुल गांधी को अमेठी के साथ-साथ केरल की वायनाड सीट से न सिर्फ लड़ने का सुझाव दिया, बल्कि उन्हें लड़ने के लिए तैयार भी किया। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के दोनों चरणों में वेणुगोपाल लगातार उनके साथ रहे।

छात्र राजनीति से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले वेणुगोपाल फिलहाल राजस्थान से राज्यसभा सांसद हैं। वह केरल की अलापुझा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। स्कूल-कॉलेज में वॉलीबॉल खेलने वाले वेणुगोपाल ने मैथमेटिक्स में मास्टर किया और उसके बाद सक्रिय राजनीति में कदम रखा। केरल के पूर्व सीएम के. करुणाकरण वेणुगोपाल के राजनीतिक गुरु रहे हैं, लेकिन आगे चलकर उनका अपने गुरु से वैचारिक मतभेद हो गया। इसके बाद उन्होंने प्रदेश की राजनीति में अपने समय के तमाम युवा नेताओं को साथ लेकर एक अलग खेमा तैयार किया, जो केरल की आगामी राजनीति की दिशा बदलने का सूत्रधार बना। इस खेमे में उनके साथ रमेश चेनिथल्ला, जी. कार्तिकेयन और एम. आई. शानवाज जैसे लोग थे।

वेणुगोपाल के राजनीतिक गुरु करुणाकरण ने 1991 में पहली बार कासरगोड से उन्हें विधायक का चुनाव लड़ाया, हालांकि वह जीत नहीं पाए। 1996 में वह अलापुझा से पहली बार विधायक चुने गए। समय के साथ वेणुगोपाल इतने मजबूत होते चले गए कि पार्टी के भीतर बाकायदा उनका एक कैंप माना जाने लगा, जिसमें तमाम लोग उनकी गुड लिस्ट में अपनी जगह बनाने के लिए कड़ी मशक्कत करते दिखे। ऐसा नहीं है कि वेणुगोपाल सिर्फ पार्टी छोड़ने वालों के ही निशाने पर हों, बल्कि पार्टी के भीतर भी कई लोग असंतुष्ट बताए जाते हैं।2001 और 2006 में एक बार फिर उन्होंने यहां से असेंबली का रास्ता तय किया। 2004 में वह ओमन चांडी सरकार में मंत्री भी रहे। केरल की राजनीति कर रहे वेणुगोपाल का राष्ट्रीय राजनीति में आना 2009 में तब हुआ, जब वह पहली बार अलापुझा से जीत कर लोकसभा पहुंचे। 2014 में भी वेणुगोपाल यहां से जीते। 2019 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। इस बार एक बार फिर वह इसी सीट से मैदान में हैं।

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