Saturday, July 27, 2024
HomeIndian Newsआखिर क्या है रेलवे की गजराज तकनीक?

आखिर क्या है रेलवे की गजराज तकनीक?

आज हम आपको रेलवे की गजराज तकनीक के बारे में जानकारी देने वाले हैं! देशभर में ट्रेनों की टक्कर से होने वाली हाथियों की मौतों को रोकने के लिए रेलवे ‘गजराज’ नाम की नई तकनीक पर काम कर रहा है। रेलवे का दावा है कि इस स्वदेशी तकनीक के माध्यम से ट्रेनों से हाथियों के टक्कर लगने से होने वाली मौतों को 99 फीसदी से भी अधिक मामलों में रोका जा सकता है। इसका असम के कई एलीफेंट प्रोन रेलवे रूट पर पायलट प्रोजेक्ट के तहत ट्रायल किया गया, जो बेहद कामयाब रहा। अब इस तकनीक को देशभर में उन तमाम रेलवे ट्रैक के आसपास लगाया जाएगा, जहां-जहां रेलवे लाइनों पर हाथियों के आने का अधिक खतरा बना रहता है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि अगले सात-आठ महीनों में देश के तमाम उन रेलवे लाइनों पर इस सिस्टम को लगा दिया जाएगा, जहां-जहां रेलवे लाइनों पर हाथियों के आने का खतरा रहता है। फिलहाल आंकड़ों पर गौर किया जाए तो देश में 2012 से 2022 तक ट्रेनों की टक्कर से करीब 200 हाथियों की मौतें हुई। इनमें सबसे अधिक 55 हाथी पश्चिम बंगाल में मारे गए। दूसरे नंबर पर असम में 33 हाथी मरे। इसके अलावा 14 हाथी उड़ीसा, नौ उत्तराखंड में और अन्य राज्यों में भी ट्रेनों से टक्कर लगने से हाथियों की मौतें हुईं। हाथियों की इन्हीं मौतों को रोकने के लिए रेलवे ने पिछले दिनों नॉर्थ-ईस्टर्न फ्रंटियर इलाके में असम में न्यू अलीपुरद्वार और लामडिंग जंक्शन रेलवे रूट पर इसका पायलट रन किया।

इस इंट्रूयशन डिटेक्शन सिस्टम में ऑप्टिकल फायबर के जरिए हाथियों के पैर रखने की धमक का पता लगाया जाता है। जमीन के अंदर पड़ी इन केबिल पर जब भी एक निश्चित वजन से अधिक की प्रेशर वेव जाती है। यह तुरंत समझ जाती हैं कि कोई भारी चीज उपर से गुजरी है। इसमें हाथी हो या फिर इसी तरह से अन्य वजन का कोई और जानवर या अन्य कुछ चीज। यह सिस्टम हाथी के रेलवे लाइन से 200 मीटर की दूरी पर रहने के दौरान ही पता लगते ही तुरंत कंट्रोल रूम को सूचना देता है, जहां से उस लाइन पर उस समय गुजरती ट्रेन के लोको पायलट को वायरलेस या मोबाइल फोन सिस्टम के जरिए तुरंत सूचित कर हाथी के बारे में बताया जाता है। इससे पायलट समय रहते ट्रेन की स्पीड कम कर लेता है और हाथी की जान बच जाती है। लोको पायलट को लगता है कि धीमी स्पीड से ट्रेन निकाली जा सकती है तो वह स्लो स्पीड से ट्रेन निकालता है और अगर हाथी रेलवे लाइन पार कर रहे हैं तो वह ट्रेन को रोक लेता है।

रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का कहना है कि असम में इस सिस्टम को लगा दिया गया है। सात-आठ महीनों में देश के करीब 700 किलोमीटर रेलवे ट्रेक की पहचान की गई है। जहां हाथी अधिक रहते हैं। इनमें पश्चिम बंगाल और असम के अलावा, उड़ीसा, केरल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और तमिलनाडू समेत अन्य वह तमाम राज्य शामिल हैं। जहां-जहां हाथियों के ट्रेनों से टक्कर लगने के मामले सामने आते हैं। इनमें उत्तराखंड के राजाजी पार्क इलाके में भी इस सिस्टम को लगाया जाएगा। आपको बता दें कि वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की एक रिपार्ट के अनुसार झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और दक्षिण पश्चिम बंगाल का 21 हजार वर्ग किलोमीटर के इलाके में जंगली हाथियों का विचरण होता है। इन इलाकों में अधिकांश जंगली हाथियों की मौत का कारण करंट लगना होता है।

हाथियों के इसी झुंड ने तीन दिन पहले अहिल्यापुर थाना क्षेत्र में एक 55 वर्षीय व्यक्ति और उसकी पोती को कुचलकर मार डाला था। इसके पहले 20 नवंबर को पूर्वी सिंहभूम जिले के मुसाबनी वन क्षेत्र के ऊपरबांधा जंगल के पास करंट लगने से पांच हाथियों ने एक साथ दम तोड़ दिया था। इन हाथियों की मौत की जानकारी वन विभाग को अगले रोज तब हुई, जब कुछ ग्रामीण सूखी लकडियां और पत्ते लाने के लिए जंगल में गये। नवंबर के पहले हफ्ते में पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला अनुमंडल अंतर्गत श्यामसुंदरपुर थाना क्षेत्र के मचाड़ी गांव और चाकुलिया वन क्षेत्र स्थित बडामारा पंचायत के ज्वालभांगा में दो अलग-अलग घटनाओं में करंट से दो हाथियों की मौत हुई थी। करंट से हाथियों की मौत की घटनाओं पर वन विभाग एवं बिजली विभाग एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं।

वन विभाग का कहना है कि हाथियों के कॉरिडोर वाले इलाके में बिजली के तार बेहद कम ऊंचाई से गुजरे हैं और इस वजह से अक्सर हादसे हो रहे हैं। इस संबंध में बिजली विभाग को कई बार पत्र लिखे गए हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जाती। दूसरी तरफ, ग्रामीणों का कहना है कि वन विभाग ने हाथियों के कॉरिडोर वाले इलाके में ट्रेंच की खुदाई कर मिट्टी के ऊंचे टीले बना दिए हैं। इन टीलों से होकर गुजरने के दौरान हाथी बिजली तार के संपर्क में आ जाते हैं।

RELATED ARTICLES

Most Popular

Recent Comments